Radish Farming: मूली की खेती कैसे करें, जानें सही विधि

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Radish Farming: मूली की खेती कैसे करें, जानें सही विधि
Radish Farming: मूली की खेती कैसे करें, जानें सही विधि

विटामिन बी 6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और रिबोफलेविन से भरपूर होती है मूली
Radish Farming, (आज समाज), नई दिल्ली: मूली की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय हो सकता है, अगर यदि इसे सही तरीके से किया जाए। मूली जड़ वाली सब्जी है। मूली का प्रयोग आचार, सलाद और कई प्रकार के पकवानों में किया जाता है। मूली विटामिन बी 6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और रिबोफलेविन का मुख्य स्त्रोत है। इसमें एसकॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड और पोटाश्यिम भी भरपूर मात्रा में होता है।

इसकी खाद्य जड़ें विभिन्न रंगो जैसे सफेद से लाल रंग की होती हैं। हरियाणा, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटका, पंजाब और आसाम मुख्य मूली उत्पादक राज्य हैं। किसानों को मूली की खेती से मोटा मुनाफा कमाने के लिए, बुवाई से लेकर रख-रखाव तक कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होगा। इस लेख में हम आपको बताएंगे मूली उगाने का उपयुक्त समय और रख-रखाव के तरीके।

मिट्टी

इस फसल को मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है पर यह भुरभुरी, रेतली दोमट मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। भारी और ठोस मिट्टी में खेती करने से परहेज करें, इसकी जड़ें टेढ़ी होती है फसल के बढ़िया विकास के लिए मिट्टी का पीएच 5.5-6.8 होना चाहिए। खेत की हल से जोताई करें और खेत को नदीनों और ढेलियों रहित करें।

प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें। खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 5-10 टन प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाएें अच्छी तरह से ना गली हुई रूड़ी की खाद को ना डालें। इससे जड़ें दोमुंही हो जाती हैं।

खेती का समय

मूली की खेती भारत में लगभग पूरे वर्ष की जा सकती है, लेकिन कुछ विशेष मौसमों में इसकी खेती अधिक उपयुक्त होती है। खरीफ (जुलाई-अगस्त), रबी (अक्टूबर-नवंबर) और जायद (फरवरी-मार्च) तीनों मौसमों में मूली की खेती की जा सकती है।

किस्में

  • जापानी व्हाइट: यह किस्म नवंबर-दिसंबर में बोने के लिए उपयुक्त है और उत्तरी मैदानों में पिछेती बिजाई के लिए भी अच्छी है। इसकी जड़ें बेलनाकार और सफेद रंग की होती हैं।
  • पूसा चेतकी: यह किस्म अप्रैल-अगस्त में बोने के लिए उपयुक्त है और जल्दी पक जाती है. इसकी जड़ें नर्म, बर्फ जैसी सफेद और मध्यम लंबी होती हैं।
  • पूसा हिमानी: यह किस्म जनवरी-फरवरी में बोने के लिए उपयुक्त है, और इसकी जड़ें सफेद और शिखर से हरी होती हैं।
  • पंजाब पसंद: यह किस्म मार्च के दूसरे पखवाड़े में बोने के लिए उपयुक्त है और जल्दी पक जाती है। इसकी जड़ें लंबी, सफेद और बालों रहित होती हैं।
  • जौनपुरी मूली: यह एक पारंपरिक किस्म है जो अपने तीखे स्वाद के लिए जानी जाती है।
  • पूसा देशी: यह किस्म उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है और उत्तरी मैदानी इलाकों में अगस्त के मध्य से अक्टूबर तक बोई जाती है।
  • हिसार मूली नं 1: यह किस्म भी लोकप्रिय है।
  • कल्याणपुर 1: यह एक और किस्म है जो किसानों के बीच लोकप्रिय है।

बीज की मात्रा, और बिजाई का तरीका

एक एकड़ खेत में 4-5 किलोग्राम बीज काफी हैे जड़ों के उचित विकास के लिए बिजाई मेंड़ों पर करें। पंक्ति से पंक्ति में फासला 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 7.5 सैं.मी. का फासला रखें। अच्छी पैदावार के लिए, बीजों को 1.5 सैं.मी. गहरा बोयें। बिजाई पंक्तियों में या बुरकाव विधि द्वारा की जा सकती है। बिजाई के समय गली हुई रूड़ी की खाद, के साथ नाइट्रोजन 25 किलो (यूरिया 55 किलो), फासफोरस 12 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो) प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

हानिकारक कीटों से करें बचाव

  • काली भुंडी और पत्ते की सुंडी: इनका हमला यदि खेत पर दिखाई दें तो, इसे रोकने के लिए मैलाथियॉन 50 ई सी 1 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दोबारा 2-3 बार स्प्रे करें।
  • मुरझाना: पत्तों पर पीले रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। इनका हमला ज्यादातर बारिश वाले मौसम में होता है। फलियों और बीजों पर फंगस लग जाती है और विकास धीमा हो जाता है। इनका हमला रोकने के लिए, मैनकोजेब 2 ग्राम और कार्बेनडाजिम 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

25 से 60 दिन में तैयार हो जाती है मूली

फसल की किस्म के अनुसार, मूली बिजाई के 25-60 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। पुटाई हाथों से पौधे को उखाड़कर की जाती है। उखाड़ी गई जड़ों को धोएं और इनके आकार के अनुसार छांटे।

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