विसर्जन से पहले होता है सिंदूर खेला
Durga Visarjan,(आज समाज), नई दिल्ली: आज विजयादशमी के अवसर पर मां दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाएगा। मातारानी पालकी में प्रस्थान करेंगी, जो एक शुभ संकेत है। इस दिन देवी दुर्गा का विधि विधान से विसर्जन होता है। यह दूर्गा पूजा का अंतिम दिन माना जाता है। इस दिन लोग मां दुर्गा को खुशी खुशी विदा करते हैं और अगले साल फिर आने की कामना करते हैं। विसर्जन से पहले सिंदूर खेला होता है। आइए जानते हैं दुर्गा विसर्जन मुहूर्त, विधि और महत्व के बारे में।
दुर्गा विसर्जन मुहूर्त
दुर्गा विसर्जन के लिए आश्विन शुक्ल दशमी तिथि का प्रारंभ 1 अक्टूबर को शाम 07:01 पीएम से है, जबकि इसका समापन 2 अक्टूबर को शाम 07:10 पीएम पर होगा। उदयातिथि के आधार पर दुर्गा विसर्जन 2 अक्टूबर को है। दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त सुबह में 06:15 एएम से 08:37 एएम तक है।
श्रवण नक्षत्र में विसर्जन करना उत्तम
उत्तम होता है। ऐसे में विजयादशमी पर श्रवण नक्षत्र सुबह 09:13 एएम बजे लेकर 3 अक्टूबर को सुबह 09:34 एएम बजे तक है। इस आधार पर आप दुर्गा विसर्जन सुबह 09:13 एएम से कर सकते हैं।
रवि योग और सुकर्मा योग में दुर्गा विसर्जन
इस बार दुर्गा विसर्जन रवि योग और सुकर्मा योग में होगा। सुकर्मा सुबह से लेकर रात 11:29 पीएम तक है। वहीं रवि योग पूरे दिन है। इस दिन का अभिजीत मुहूर्त 11:46 एएम से 12:34 पीएम तक है।
पालकी पर विदा होंगी मां दुर्गा, मिलेगी सुख-समृद्धि
इस बार मां दुर्गा गुरुवार को विदा हो रही हैं। उनका प्रस्थान का वाहन मनुष्य की सवारी है यानि पालकी। माता का पालकी पर प्रस्थान करना शुभ संकेत है। मां दुर्गा का प्रस्थान लोगों के लिए सुख और समृद्धि प्रदान करने वाला है।
दुर्गा विसर्जन का मंत्र
मूर्ति विसर्जन के समय गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।। मंत्र बोलना चाहिए।
दुर्गा विसर्जन विधि
सबसे पहले मां दुर्गा अक्षत, सिंदूर, फूल, धूप, नैवेद्य आदि से पूजा करें। फिर आरती उतारें। ढोल-नगाड़ों और भक्ति गीतों के साथ कुछ लोग मिलकर मां दुर्गा की मूर्ति को पंडाल के स्थान से हटाएं। उनको वाहन पर रखें। कलश के पास जो जवारे उगे हुए हैं, उनको लोगों में बांट दें। कलश को स्थान से हटा दें। उसके पानी को किसी देव वृक्ष की जड़ में डाल दें।
पूजा और हवन सामग्री को भी रख लें। उसके बाद खुशी-खुशी मां दुर्गा को ढोल-नगाड़ों की थाप पर विदा करें। मूर्ति को किसी तालाब, पोखर या नदी के किनारे लेकर जाएं। वहां पर मातारानी से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें और अगले साल फिर आने का निवेदन करें। फिर मूर्ति का विसर्जन करें। मूर्ति विसर्जन का मतलब यह है कि पंचतत्व में विलीन होकर मां फिर से सृष्टि का हिस्सा बनती हैं।
बंगाल का दुर्गा विसर्जन है खास
बंगाल की दुगा पूजा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। बंगाल में दुर्गा विसर्जन भी खास है। यह दुर्गा मूर्ति को जल में प्रवाहित करने का अवसर भर नहीं है, इसमें भक्तों की भक्ति और भावना भी समाहित रहती है।
दुर्गा विसर्जन के समय लोग कहते हैं, बोलो मां, शोर्गो तुमाय धनो, आश्चे बोरोश आबार आशबे तुमी। इसका अर्थ है- हे मां, आपको स्वर्ग की शुभकामनाएं, आप अगले साल फिर आएंगी। कुछ लोग कहते हैं, जॉय मां दुर्गे, फिरे आशबेन आबार, इसका अर्थ है- जय मां दुर्गा, आप अगले साल फिर लौटकर आएंगी।
विसर्जन से पहले सिंदूर खेला
देवी दुर्गा की विदाई से ठीक पहले सुहागन महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जिसे सिंदूर खेला के नाम से जानते हैं। सिंदूर खेला का अर्थ है कि मां दुर्गा अपने मायके से वापस ससुराल कैलाश लौट रही हैं। उनके घर में सुख-समृद्धि बनी रहे। दुर्गा विसर्जन से ठीक पहले आरती और फूल अर्पित करते हैं। ये मां दुर्गा के प्रति कृतज्ञता और विदाई का प्रतीक है।
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