H-1B Visa Fees : अमेरिका में एच-1बी वीजा शुल्क का विरोध

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H-1B Visa Fees : अमेरिका में एच-1बी वीजा शुल्क का विरोध
H-1B Visa Fees : अमेरिका में एच-1बी वीजा शुल्क का विरोध

ट्रंप के फैसले के बाद 20 राज्य पहुंचे हाईकोर्ट, कैलिफोर्निया के अटार्नी जनरलरॉब बोन्टा कर रहे केस की अगुवाई

H-1B Visa Fees (आज समाज), नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अजीब फैसलों का विरोध न केवल विश्व के दूसरे देशों में हो रहा है बल्कि अमेरिका में भी उनके द्वारा लिए जा रहे फैसलों का विरोध हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति की टैरिफ नीति को लेकर जहां सुनवाई वहां के सुप्रीम कोर्ट में चल रही है वहीं अब ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा शुल्क में की गई वृद्धि का भी बड़े स्तर पर विरोध शुरू हो चुका है।

इतना ही नहीं अमेरिका के 20 राज्यों ने इस फैसले के विरोध में वहां की हाईकोर्ट में अपील दायर की है। जिसकी अगुवाई कैलिफोर्निया के अटार्नी जनरलरॉब बोन्टा कर रहे हैं। कोर्ट में दायर अपील में इन राज्यों ने कहा है कि यह फैसला गैरकानूनी है और इससे स्कूलों, अस्पतालों और अन्य जरूरी सेवाओं में स्टाफ की कमी और गंभीर हो जाएगी।

ट्रंप ने 19 सितंबर 2025 को लागू की थी नई फीस

ट्रंप ने 19 सितंबर 2025 को एक आदेश जारी कर एच-1बी वीजा शुल्क बढ़ाने को कहा। इसके बाद 21 सितंबर 2025 के बाद दाखिल होने वाले एच-1बी वीजा आवेदनों पर यह नियम लागू कर दिया गया। ऐसे में डीएचएस के सचिव को यह अधिकार दिया गया कि किन आवेदनों पर फीस लगेगी और किसे छूट मिलेगी। इस नियम के चलते अमेरिका में इस वीजा के अधीन जहां पहले 960 डॉलर से 7,595 डॉलर तक फीस देनी पड़ती है। वहीं अब इसके लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर फीस निर्धारित कर दी गई है।

ये राज्य कर रहे फीस वृद्धि का विरोध

ट्रंप प्रशासन के खिलाफ कोर्ट पहुंचे 20 राज्यों में कैलिफोर्निया और मैसाचुसेट्स के साथ-साथ एरिजोना, कोलोराडो, कनेक्टिकट, डेलावेयर, हवाई, इलिनॉय, मैरीलैंड, मिशिगन, मिनेसोटा, नेवादा, नॉर्थ कैरोलाइना, न्यू जर्सी, न्यूयॉर्क, ओरेगन, रोड आइलैंड, वर्मोंट, वॉशिंगटन और विस्कॉन्सिन जैसे राज्य शामिल है।

बता दें कि यह मुकदमा होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट (डीएसएस) की उस नीति के खिलाफ है, जिसमें एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों से बहुत ज्यादा फीस लेने की बात कही गई है। एच-1बी वीजा का इस्तेमाल आमतौर पर अस्पताल, विश्वविद्यालय और सरकारी स्कूल जैसे संस्थान करते हैं, ताकि वे विदेश से कुशल कर्मचारियों को रख सकें।

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