नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति चुनाव कल शांतिपूर्वक संपन्न हो गया है और एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने 452 वोट हासिल कर बाजी मारी है। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ गठबंधन के प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी को हराया है। रेड्डी को को 300 वोट मिले। राधाकृष्णन जल्द देश के 15वें उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण करेंगे।
भारत का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद
जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों से अचानक अपना इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद यह पद खाली हुआ था। बता दें कि उपराष्ट्रपति का पद भारत का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है और उनके पास संसद के ऊपरी सदन- राज्यसभा का दायित्व होता है। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष होता है। यह अवधि समाप्त होने पर भी उपराष्ट्रपति को अपने उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक पद पर बने रहने का अधिकार है।
लाभ का कोई दुसरा पद नहीं ग्रहण कर सकते
उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं और इस पद पर होते हुए वह लाभ का कोई दुसरा पद नहीं ग्रहण कर सकते। बतौर राज्यसभा सभापति उपराष्ट्रपति सदन में हाउस से जुड़े नियमों व संविधान की व्याख्या करने वाले अंतिम प्राधिकारी हैं। राज्यसभा को लेकर लिए गए उनके निर्णय बाध्यकारी मिसाल कायम करते हैं।
दल-बदल के अंतर्गत अयोग्य घोषित करने का निर्णय
राज्यसभा के सभापति यानी उपराष्ट्रपति ही यह निर्णय लेते हैं कि सदन का कोई सदस्य दल-बदल के अंतर्गत अयोग्य घोषित होगा अथवा नहीं। उनके पास राज्यसभा के कामकाज को बेहतर करने का भी दायित्व होता है। कई बार देखा गया है कि राज्यसभा सभापति ने सदन में प्रश्नकाल के दौरान सांसदों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद की है। विवाद की स्थिति रोककर सदन की मर्यादा को कायम रखना भी उपराष्ट्रपति की जिम्मेदारी होती है।
नोटिस के मामले में अनिवार्य होती है सभापति की सहमति
किसी राज्यसभा सदस्य के खिलाफ अगर विशेषाधिकार उल्लंघन का नोटिस दिया जाता है तो इसमें सभापति की रजामंदी जरूरी होती है। सभापति को ही यह तय करना होता है कि किसी विशेषाधिकार उल्लंघन मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजें अथवा नहीं। यह भी उन्हें ही देखना होता है कि वे इससे जुड़ी सिफारिशों को मानें या खारिज कर दें।
तीन सदस्यीय कमेटी का भी हिस्सा होते हैं उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति उस तीन सदस्यीय कमेटी का भी हिस्सा होते हैं, जो प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया के अध्यक्ष को नामित करती है। साथ ही वह राज्यसभा सदस्यों को हज समिति जैसे विभिन्न निकायों में नामित कर सकते हैं। संसद में कई दफा कोई बिल पेश होता है तो इसे अलग-अलग कमेटियों के पास भेजना होता है। कार्यपालिका की गतिविधियों व सरकार के खर्चों पर नजर रखन के लिए कई संसदीय कमेटियां भी गठित होती हैं और इनमें सदस्यों को नामित करने का राइट भी राज्यसभा के सभापति के पास होता है। वे समिति अध्यक्ष सेलेक्ट कर उन्हें निर्देश जारी कर सकते हैं।
राष्टÑपति का पद खाली होने पर करते हैं बतौर कार्यकारी राष्ट्रपति काम
किसी कारण वश अगर राष्ट्रपति का पद खाली होता है तो उपराष्ट्रपति उनके स्थान पर बतौर कार्यकारी राष्ट्रपति काम करते हैं। अगले राष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक या राष्ट्रपति पद खाली होने के छह महीने तक ही वह इस पर रह सकते हैं। नियमों के अनुसार अवधि तक राष्ट्रपति का पद भरना अनिवार्य होता है। राष्टÑपति के विदेश दौरे या अस्वस्थ होने की स्थिति में भी उपराष्ट्रपति ही उनकी जिम्मेदारी संभालते हैं। ऐसे में उन्हें राष्ट्रपति की सारी शक्तियां, लाभ व वेतन मिलते हैं।
जानिए कितना होता है वेतन व भत्ते और अन्य सुविधाएं
उपराष्ट्रपति पद के लिए कोई सैलरी नहीं होती। उन्हें वेतन व भत्ते बतौर राज्यसभा के पदेन सभापति काम करने के एवज में मिलते हैं। राज्यसभा के सभापति का वेतन चार लाख रुपए व अन्य भत्ते होते हैं। बतौर कार्यकारी राष्ट्रपति काम करने पर सीधे राष्ट्रपति का वेतन व भत्ते मिलते हैं। इस दौरान उन्हें राज्यसभा के सभापति का वेतन-भत्ता नहीं मिलता।
फ्री चिकित्सा सेवाएं, फ्री सरकारी आवास…
फ्री चिकित्सा सेवाएं, फ्री सरकारी आवास, लैंडलाइन व मोबाइल सेवा, ट्रेन-हवाई यात्रा भत्ता, आधिकारिक स्टाफ का खर्च और निजी खर्च भी मिलता है। सेवानिवृत्ति के बाद हर माह दो लाख रुपए पेंशन मिलती है। एक टाइप-8 बंगला व स्टाफ सपोर्ट का भी प्रावधान है। इसके अलावा उन्हें प्राइवेट सेक्रेटरी, एक्सट्रा सेक्रेटरी, प्राइवेट असिस्टेंट, डॉक्टर, नर्सिंग अफसर व 4 अटेंडेंट मिलते हैं। पूर्व-उपराष्ट्रपति के निधन के बाद उनकी पत्नी को आजीवन टाइप-7 आवास मिलता है।
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