PM Modi Karnataka VIsit : संबोधन में 15वें अध्याय की प्रेरणा, ‘लक्ष कंठ गीता पारायण’ कार्यक्रम में पहुंचे पीएम

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PM Modi Karnataka VIsit : संबोधन में 15वें अध्याय की प्रेरणा, 'लक्ष कंठ गीता पारायण’ कार्यक्रम में पहुंचे पीएम
PM Modi Karnataka VIsit : संबोधन में 15वें अध्याय की प्रेरणा, 'लक्ष कंठ गीता पारायण’ कार्यक्रम में पहुंचे पीएम

PM Modi Karnataka VIsit, (आज समाज), कर्नाटक :  कर्नाटक के लिए शुक्रवार का बेहद खास रहा, वो इसलिए कि जब उडुपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृष्ण मंदिर के समीप बने सुवर्ण तीर्थ मंडप का विधिवत उद्घाटन किया,तो यह पल कर्नाटक वासियों के लिए ऐतिहासिक बन गया। कार्यक्रम में पहुँचने पर देशभर से आए श्रद्धालुओं और संतों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भव्य और विशेष स्वागत किया।

एक लाख लोगों ने एक साथ श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ किया

उन्होंने पवित्र कनकना किंडी के लिए कनक कवच (सोने का आवरण) भी समर्पित किया, जिसके लिए मान्यता है कि ये वही दिव्य झरोखा, जहाँ से संत कनकदास ने भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन किए थे। बता दें कि यह कार्यक्रम न केवल एक धार्मिक समागम था, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक एकता की एक विशाल अभिव्यक्ति थी, जिसमें करीब एक लाख लोगों ने एक साथ श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ भी किया।

भारत की सनातन परंपरा की दिव्यता का जीवंत प्रमाण

इस खास मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इतने प्रतिष्ठित गुरुओं के सान्निध्य में होना किसी सौभाग्य से कम नहीं है। उन्होंने हाल ही में अपने कुरुक्षेत्र दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि कैसे कुछ दिन पहले एक लाख लोगों द्वारा एक साथ गीता पाठ करने का अद्भुत दृश्य भारत की सनातन परंपरा की दिव्यता का जीवंत प्रमाण था। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष उन्होंने समुद्र के भीतर द्वारकाधीश के दर्शन किए थे और वहां से मिले आध्यात्मिक आशीर्वाद ने उनके कर्तव्यपथ को और दृढ़ बनाया।

ये शाश्वत संदेश न केवल व्यक्तिगत जीवन को दिशा देते हैं, बल्कि…..

पीएम मोदी ने सभा को संबोधित करते हुए श्रीमद्भगवद् गीता के 15वें अध्याय (पुरुषोत्तम योग) के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि किस प्रकार गीता के ये शाश्वत संदेश न केवल व्यक्तिगत जीवन को दिशा देते हैं, बल्कि राष्ट्र की नीतियों और “सबका साथ, सबका विकास” जैसे सिद्धांतों का भी आधार बनते हैं। भगवद् गीता के 15वें अध्याय को ‘पुरुषोत्तम योग’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘उत्तम पुरुष का योग’ या ‘परम पुरुष की प्राप्ति’. यह अध्याय भगवान श्रीकृष्ण के परम स्वरूप, आत्मा और संसार के स्वरूप को बहुत ही गूढ़ और सरल तरीके से समझाता है।

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