Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | बिहार में चुनाव हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है, जहां हर तरफ से दावे उछाले जाते हैं, लेकिन हकीकत जमीन पर उतरकर ही पता चलती है। इस बार भी यहां की सियासत हकीकत और फसाने के बीच फंसी पड़ी है। आसन्न विधानसभा चुनाव-2025 का पहला चरण खत्म हो चुका है और क्या कमाल का मतदान हुआ है! छह नवंबर को 121 सीटों पर वोटिंग हुई और टर्नआउट 64.66 प्रतिशत रहा, जो बिहार के इतिहास में सबसे ज्यादा है। मतलब साफ है, बिहार के वोटर इस बार कुछ ज्यादा ही जागरूक और उत्साहित दिखाई पड़े। अब सवाल यह है कि इस रिकॉर्ड मतदान के मायने क्या हैं? क्या ये बदलाव की लहर है या फिर साइलेंट वोटर्स की ताकत जो किसी एक पक्ष को फायदा पहुंचा रही है?

इतना ज्यादा वोटिंग क्यों हुई। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 3.75 करोड़ वोटर्स में से करीब 2.42 करोड़ ने वोट डाले। ये 2020 के पहले चरण से करीब नौ प्रतिशत ज्यादा है। इसके पीछे वजहें कई हैं। एक तो छठ पूजा के बाद कई प्रवासी मजदूर और युवा अभी गांवों में ही रुके हुए थे, जिन्होंने वोट किया। दूसरा, महिलाओं की भागीदारी जबरदस्त रही। पुरुषों से ज्यादा महिलाएं मतदान केंद्रों पर पहुंचीं। चुनाव आयोग ने खुद कहा कि महिलाओं ने चमक दिखाई। अब ये महिलाओं का वोट किसे जाएगा? ये बड़ा सवाल है। बिहार में महिलाएं हमेशा से नीतीश कुमार की फैन रही हैं। नीतीश कुमार की सरकार ने महिलाओं के लिए कई योजनायें चलाईं, जैसे साइकिल योजना, शराबबंदी और अब 10 हजार रुपये की सीधी मदद। 2020 में भी महिलाओं ने एनडीए को सपोर्ट किया था, जब तीसरे चरण में महिलाओं का वोट पुरुषों से 11 प्रतिशत ज्यादा था। महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव ने रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा पर फोकस किया है और उनकी रैलियों में भी महिलाओं की अच्छी भीड़ देखी गई है।
अब बात करते हैं दोनों गठबंधनों के दावों की। एनडीए, जिसमें बीजेपी, जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी (आर) और अन्य छोटे दल हैं। एनडीए कह रहा है कि यह उच्च मतदान उनकी जीत की निशानी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद सोशल मीडिया पर लिखा कि एनडीए बिहार में फिर से सरकार बनाएगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी कहते हैं कि महिलाओं और महादलितों का वोट उनके साथ है। चिराग पासवान भी दावा कर रहे हैं कि पासवान वोट एकजुट है। दूसरी तरफ, महागठबंधन यानी आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां हैं। तेजस्वी यादव और उनके भाई तेज प्रताप दोनों ने पहले चरण में वोट डाले। राजद नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि ये रिकॉर्ड टर्नआउट जंगल राज के डर से नहीं, बल्कि बदलाव की चाह से हुआ है। वे कहते हैं कि युवा और बेरोजगार उनके साथ हैं। लेकिन हकीकत क्या है? ग्राउंड रिपोर्ट्स मिली-जुली हैं। कुछ इलाकों में, जैसे उत्तर बिहार में एनडीए मजबूत दिख रहा है, जहां नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और नीतीश कुमार का जातीय समीकरण काम कर रहा हैं। लेकिन मगध और भोजपुर इलाके में आरजेडी की पकड़ थोड़ी मजबूत दिखाई दे रही है, जहां दलित और यादव वोटर्स ज्यादा हैं।
कौन बढ़त में है, ये कहना मुश्किल है, लेकिन कुछ संकेत हैं। पहले चरण में 18 जिलों में वोटिंग हुई और 2020 में इसी चरण में महागठबंधन ने एनडीए से ज्यादा सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार उच्च मतदान से एनडीए को फायदा हो सकता है, क्योंकि जब वोटिंग बढ़ती है, तो अक्सर सत्ताधारी पक्ष को नुकसान होता है, लेकिन महिलाओं के कारण उल्टा भी हो सकता है। कुछ जानकार कहते हैं कि अगर पुरुष ज्यादा वोट करते, तो महागठबंधन को फायदा होता, लेकिन महिलाओं की वजह से एनडीए आगे दिख रही है। खतरा किसे है? एनडीए को खतरा है अगर जन सुराज जैसी नई पार्टियां उनके वोट काट लें। महागठबंधन को खतरा है अगर यादव वोट बंट जाए या युवा उनके साथ न रहें। कुल मिलाकर, बढ़त एनडीए की लग रही है, क्योंकि वह सत्ता में हैं और नीतीश कुमार की इमेज अभी भी सुशासन बाबू की बनी हुई है। लेकिन तेजस्वी यादव की अपील युवाओं में मजबूत है और वे कहते हैं कि बेरोजगारी और महंगाई से लोग तंग आ चुके हैं।
अब जन सुराज का क्या हुआ? प्रशांत किशोर की यह नई पार्टी चुनाव में डेब्यू कर रही है। प्रशांत किशोर यानी पीके जो पहले चुनावी रणनीतिकार थे, अब खुद मैदान में हैं। उन्होंने कहा कि ये उच्च मतदान बदलाव की निशानी है और जन सुराज एक नया विकल्प है। वे 243 सीटों पर लड़ रहे हैं और कम से कम 40 महिलाओं को टिकट दिए हैं। उनका फोकस युवाओं, प्रवासियों और महिलाओं पर है। उन्होंने वादा किया है कि अगर सरकार बनी तो कोई बिहारी 10-12 हजार की नौकरी के लिए बाहर नहीं जाएगा। ग्राउंड पर जन सुराज का असर दिख रहा है, खासकर युवा मुस्लिम और स्विंग वोटर्स में। कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि वो छह से 10 सीटों पर महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकते हैं और चार सीटों पर एनडीए को। लेकिन बड़ा असर नहीं, क्योंकि उनकी पार्टी नई है और संगठन मजबूत नहीं। प्रशांत किशोर कहते हैं कि प्रवासी मजदूरों ने एक्स फैक्टर का रोल प्ले किया। लेकिन कई लोग कहते हैं कि जन सुराज सिर्फ वोट कटवा की भूमिका निभाएगी और मुख्य लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच रहेगी।
कुल मिलाकर, ये चुनाव बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। रिकॉर्ड मतदान दिखाता है कि लोग अब चुप नहीं बैठे, वो बदलाव चाहते हैं। लेकिन बदलाव किस तरफ है? नीतीश कुमार की पुरानी साख, मोदी की लोकप्रियता या तेजस्वी यादव की युवा अपील? महिलाओं का वोट निर्णायक होगा। दोनों गठबंधनों के दावे बड़े हैं। हालातों के दृष्टिगत फिलहाल एनडीए को बढ़त मिलती प्रतीत हो रही है। महागठबंधन को खतरा है अगर वो युवाओं को नहीं जोड़ पाए। दूसरे चरण में देखते हैं क्या होता है। बिहार की जनता ने तो अपना काम कर दिया, अब रिजल्ट का इंतजार। 14 नवंबर को ही पता चलेगा कि सियासी दलों के दावे हकीकत की धरातल पर खरे उतरेंगे अथवा फसाना साबित होंगे। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)
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