Editorial Aaj Samaaj: नेपाल संकट से सबक लेने का सही समय

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Editorial Aaj Samaaj: नेपाल संकट से सबक लेने का सही समय
Editorial Aaj Samaaj: नेपाल संकट से सबक लेने का सही समय

Editorial Aaj Samaaj | डा. अवधेश कुमार | पिछले कुछ दिनों से चल रहे जेन-जेड आंदोलन के चलते नेपाल में राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया है। इस जनआंदोलन की शुरूआत भले ही सोशल मीडिया से प्रतिबंध हटाने की मांग को लेकर हुई, लेकिन इसकी चिंगारी ने संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री निवास और कांतिपुर जैसे मीडिया हाउस को जलकर खाक कर दिया। इसे नेपाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा हमला कहा जा सकता है।

इस संकट से निपटने के लिए सेना को सड़क पर उतरना पड़ा। सत्ता व्यवस्था संचालित करने के लिए अंतरिम सरकार के गठन की कवायद भी शुरू हो गई है। संविधान बदलने की बात की जा रही है। इसका परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन यह जनआंदोलन नई पीढ़ी को नजर अंजाद करने वाले दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के सत्ताधीशों के लिए सबक है। साथ ही नेपाल के राजनीतिक संकट के कारणों की पड़ताल कर सीख लेने का सही समय भी।

नेपाल दक्षिण एशिया का सबसे युवां लोकतांत्रिक देश है, क्योंकि यहां 17 साल पहले अर्थात 2008 के जनआंदोलन के चलते राजशाही का अंत और लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की शुरूआत हुई। तब से अब तक 14 सरकारें बदल चुकी हैं। मार्च 2024 तक कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के नेता पुष्प कुमार दहान ‘प्रचंड’ कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (एकीकृत माक्र्सवादी-लेनिनवादी) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनें। बजट और अन्य नीतिगत मुद्दों पर मदभेद होने के कारण कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (एकीकृत माक्र्सवादी-लेनिनवादी) ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे प्रचंड सरकार अल्पमत में आ गई।

इसके बाद, नेपाली कांग्रेस के समर्थन से 15 जुलाई 2024 को कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (एकीकृत माक्र्सवादी-लेनिनवादी) के नेता केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री तो बन गये, लेकिन भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता और युवाओं की अनदेखी के आरोप से अपनी सरकार को नहीं बचा सके। विश्व बैंक की माने तो 2024 में नेपाल की प्रति व्यक्ति आय मात्र 1447 यूएस डॉलर थी। इसके बावजूद नेपाली राजनेताओं के बच्चों का अलीशान जीवन शैली देखने को मिला, जो सोशल मीडिया पर ‘नेपो किड्स’ के नाम से ट्रेड होता रहा। इससे आक्रोशित बेरोजगार युवाओं ने जेन-जेड मूवमेंट हैशटैग से लाखों लोगों को जोड़ने का काम किया।

यह देख नेपाल सरकार ने 4 सितम्बर को फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक, एक्स (ट्विटर) सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, इस संदर्भ में ओली सरकार का दावा था कि ये प्लेटफॉम्र्स नेपाली कानून के तहत पंजीकृत नहीं थे। नेपाली जनता ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया और सरकार के खिलाफ लामबंद होना शुरू कर दिया, क्योंकि नेपाल की आबादी 3 करोड़ के करीब है, जिनमें से 90 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। सोशल मीडिया को युवां रोजगार, जनसम्पर्क और जनजागरण का माध्यम मानते हैं। नेपाल में युवा बेरोजगारी 20 प्रतिशत से अधिक है। यहां के लोग प्रतिदिन हजारों की संख्या में रोजगार हेतु विदेशों में पलायन करते हैं। इससे आक्रोशित जेन जेड (18-25 वर्ष के युवा) ने बांग्लादेश, श्रीलंका और इंडोनेशिया के युवा जनआंदोलनों से प्रेरणा ली और सड़क पर उतर गये।

राजधानी काठमांडू 8 सितम्बर को शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू हुआ। भीड़ बढ़ने पर स्थिति बेकाबू होने लगी तो पुलिस को गोली चलानी पड़ी। इस दौरान 19 लोगों की मौत हो गई। 400 से अधिक घायल हुए। इलाज के दौरान भी दर्जन भर घायलों ने दम तोड़ दिया। प्रदर्शनकारियों ने 9 सितम्बर को संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट और सिंह दरबार को आग के हवाले कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, पुष्पकमल दहाल ‘प्रचंड’ और झलनाथ खनाल के घरों को आग लगा दी। इस दौरान गंभीर रूप से झुलसी पूर्व प्रधानमंत्री खनाल की पत्नी रविलक्ष्मी चित्रकार की मौत हो गई। राजनेताओं को विदेश भागने से रोकने के लिए त्रिभुवन हवाई अड्डा में भी आग लगा दी।

प्रदर्शनकारियों को नेपाल की मीडिया पर भी भरोसा नहीं था, तभी तो सबसे बड़े मीडिया हाउस ‘कांतिपुर’ के सेंट्रल बिजनेस पार्क स्थित मुख्यालय में जबरन घुस गये और कर्मचारियों को बाहर निकालने के बाद आग के हवाले कर दिया। इस दौरान कोई घायल तो नहीं हुआ, लेकिन कांतिपुर की वेबसाइट्स पर पल-पल की अपडेट बंद हो गईं। टेलीविजन चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज के ऑनलाइन प्रसारण पर ब्रेक लग गया। यह जनआंदोलन काठमांडू से निकलकर पोखरा, वीराटनगर, नेपालगंज समेत कई शहरों में फैलकर बेकाबू होने लगा तो प्रधानमंत्री ओली और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने अपने पद से इस्तीफा दे़ दिया। गृहमंत्री रमेश लेखक, कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी समेत चार अन्य मंत्रियों ने भी नैतिक के नाते अपना पद छोड़ दिया। इससे नेपाल में राजनीतिक शून्यता स्थिति उत्पन्न हो गई।

इतना बड़ा निर्णय जनता ने अचानक नहीं लिया। सच जानने के लिए जड़ों को खोदना जरूरी है। ललिता निवास जमीन घोटाला से नेपाल की जनता काफी नाराज थी। ललिता निवास करीब 15 एकड़ में फैला है। इसी परिसर में नेपाल के प्रधानमंत्री का अधिकारिक निवास, नेपाली राष्ट्र बैंक मुख्यालय व कई अन्य वीआईपीयों के आवास हैं। इसके बावजूद परिसर की एक-तिहाई से अधिक जमीन को अवैध तरीके से निजी व्यक्तियों और व्यवसायियों को हस्तांतरित कर दिया गया, जिसकी कीमत अरबों रूपये बतायी जा रही है।

यह घोटाला 1991 में शुरू हुआ था, जिसकी जांच के लिए 2017 में तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने एक समिति का गठन किया। इस मामले में 175 लोगों के खिलाफ विशेष अदालत में ममला दर्ज किया गया, जिनमें 131 लोगों दोषी ठहराये जाने के बाद दो-दो वर्ष कारावास की सजा हुई। तीन पूर्व मंत्रियो को विशेष अदालत ने बरी कर दिया। मार्च 2025 से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस घोटाला ने सरकार और सुप्रीम कोर्ट से जनता के विश्वास को कमजोर किया।

नेपाल की अर्थव्यवस्था रेमिटेंस पर निर्भर है। बेरोजगारी दर बढ़ने से युवाओं का भारत के अलावा मलेशिया व खाड़ी देशों में पलायन बढ़ा है। नेपाली युवाओं को रोजगार के सिलसिले में भारत आने पर न तो पाबंदी है और न तो वीजा की जरूरत है, लेकिन मलेशिया व खाड़ी देशों में बगैर वीजा के नहीं जा सकते हैं। वीजा घोटाला ने बेरोजगारों का सड़क पर उतरने के लिए विवश किया। इसमें सोशल मीडिया के उपयोग पर पाबंदी ने आग में घी का काम किया। आंदोलनकारियों का उद्देश्य भले ही सकारात्मक था, लेकिन हिंसा ने नकारात्मक बना दिया।

इसने नेपाल की अर्थव्यवस्था तबाह कर दिया। कफ्र्यू और हिंसा से व्यापार बंद हुआ, पर्यटन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है और विदेशी निवेश भी कम हो गया है। ऐसी स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक देशों में उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। इस बात का ध्यान सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को रखना चाहिए। लोकतांत्रिक देशों में सत्ताधीश बने राजनीतिज्ञों को नेपाल संकट से सबक लेना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सबसे बड़ी ताकत है, वह सत्ता के सिंहासन पर बैठा सकती है और कार्यकाल पूरा होने से पहले जबरिया उतार भी सकती है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।) 

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