Varanasi Tirangi Barfi, (आज समाज), नई दिल्ली: सन 1942… भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बज चुका था। महात्मा गांधी के आह्वान पर देशभर में आज़ादी के नारों की गूंज थी। बनारस (अब वाराणसी) की गलियों में भी क्रांतिकारी जुलूसों की लहर दौड़ रही थी। 9 से 28 अगस्त तक यहां आज़ादी के परचम के लिए रैली, विरोध और प्रदर्शन लगातार हो रहे थे।
11 अगस्त को कचहरी पर तिरंगा फहराया गया, लेकिन 13 से 28 अगस्त के बीच चार दिनों में हुई अंग्रेजों की फायरिंग में 15 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए। बढ़ते जनाक्रोश को देखकर ब्रिटिश हुकूमत ने एक बेहद कठोर आदेश जारी कर दिया — “तिरंगा लेकर चलना और तिरंगा फहराना प्रतिबंधित है।”
जब तिरंगे पर लगी पाबंदी
तिरंगे पर रोक लगते ही बनारस के राष्ट्रप्रेमी और बुद्धिजीवी सोच में पड़ गए — अब देशभक्ति का इज़हार कैसे होगा? तभी आगे आए काशी के हलवाई समाज के लोग।
ठठेरी बाजार के मदन गोपाल गुप्ता और कचौड़ी गली के बचानू साव जैसे मशहूर हलवाइयों ने सोचा — अगर हाथ में तिरंगा नहीं ले सकते, तो उसे मिठाई में उतार देंगे! कई दिनों के प्रयोग के बाद तैयार हुई बादाम, पिस्ता और केसर से सजी तिरंगी बर्फी।
‘जवाहर लड्डू’ और ‘गांधी गौरव’ भी बने आज़ादी के प्रतीक
मदन गोपाल गुप्ता के साथियों ने सिर्फ तिरंगी बर्फी ही नहीं, बल्कि उस दौर के महान नेताओं से प्रेरित मिठाइयां भी बनाईं — जवाहर लड्डू, गांधी गौरव और वल्लभ संदेश। काशी के संस्कृति कर्मी अमिताभ भट्टाचार्य बताते हैं — “हलवाई समाज सिर्फ व्यापार के लिए मिठाई नहीं बनाता था, बल्कि देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाता था। तिरंगी बर्फी और जवाहर लड्डू उसी का जीता-जागता सबूत हैं।”
तिरंगी बर्फी का सफर
बीएचयू के इतिहास विभाग के प्रो. ताबिर कलाम कहते हैं — “तिरंगे पर प्रतिबंध लगने के बाद, तिरंगी बर्फी लोगों के बीच राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बन गई थी। लोग इसे देशभक्ति दिखाने के एक मीठे तरीके के रूप में अपनाने लगे।” आज भी 15 अगस्त और 26 जनवरी को वाराणसी में तिरंगी बर्फी और जवाहर लड्डू की बिक्री कई गुना बढ़ जाती है।
अब ये बर्फी बादाम-पिस्ता के बजाय काजू और मावा से बनाई जाती है। तिरंगी बर्फी की कीमत ₹600 प्रति किलो, और जवाहर लड्डू ₹1000 प्रति किलो है। इतिहास और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए, 2024 में तिरंगी बर्फी को भारत सरकार की तरफ से जीआई (Geographical Indication) टैग भी मिल चुका है।
मीठा संदेश, मीठा इतिहास
तिरंगी बर्फी सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि उस दौर की जनता की जुगत, रचनात्मकता और देशभक्ति का प्रतीक है। जब ब्रिटिश हुकूमत ने तिरंगे को रोकने की कोशिश की, तो काशी के हलवाइयों ने इसे लोगों के दिल और स्वाद दोनों में जगह दिला दी।