Turnip Farming: जानें शलजम की खेती करने की विधि

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Turnip Farming: जानें शलजम की खेती करने की विधि
Turnip Farming: जानें शलजम की खेती करने की विधि

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में उगाई जाती शलजम
Turnip Farming, (आज समाज), नई दिल्ली: शलजम, जिसे सफेद मूली या शकरकंद भी कहा जाता है, एक ठंडी जलवायु की फसल है जो भारत में विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में उगाई जाती है, खासकर सर्दियों के मौसम में। शलजम की खेती इसकी जड़ों और हरे पत्तों के लिए की जाती हैञ यह एक द्विवार्षिक पौधा है जो सरसों परिवार से संबंधित है।

इसकी जड़ें विटामिन सी का उच्च स्त्रोत होती हैं जबकि इसके पत्ते विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, फोलिएट और कैलशियम का उच्च स्त्रोत होते हैं। इसे भारत के समशीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। शलगम विटामिन सी, फाइबर और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसका सेवन सेहत के लिए फायदेमंद होता है। शलगम की बाजार में अच्छी मांग रहती है, जिससे किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सकता है।

अनुकूल मौसम और जलवायु

शलगम की खेती के लिए ठंडी और शीतल जलवायु सबसे उपयुक्त है। यह मुख्य रूप से सर्दियों में उगाई जाती है, क्योंकि इस फसल को बढ़ने और पकने के लिए कम तापमान की आवश्यकता होती है।

बुआई का सही समय

शलगम की बुआई का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है।यह अवधि फसल के लिए अनुकूल मानी जाती है, क्योंकि तापमान कम होता है और पौधे को बढ़ने में सहूलियत मिलती है।

तापमान

शलगम के पौधे 10 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच की तापमान सीमा में अच्छी तरह बढ़ते हैं। अगर तापमान बहुत अधिक हो जाए तो फसल में नुकसान हो सकता है। इसलिए ठंडे मौसम का ध्यान रखना चाहिए।

उपयुक्त मिट्टी का चयन

शलगम की अच्छी फसल के लिए उपजाऊ, भुरभुरी और जल निकासी वाली मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। बलुई दोमट मिट्टी या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसकी पीएच मात्रा 6.0 से 7.5 के बीच होनी चाहिए।

खेत की तैयारी

खेत की जुताई गहरी करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं। इसके बाद खेत को समतल करें और नव्यकोष जैविक खाद डालकर मिट्टी को उपजाऊ बनाएं। जैविक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।

सिंचाई और जल प्रबंधन

  • पहली सिंचाई: बीज बोने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो जाएं।
  • नियमित सिंचाई: फसल को हर 7-10 दिन पर सिंचाई दें। खासकर जब पौधे फूलने लगें, तब पर्याप्त पानी दें, लेकिन खेत में जलभराव न हो।

पोषक तत्व और खाद प्रबंधन

  • प्राकृतिक खाद: जैविक खाद का प्रयोग करें, जैसे गोबर की खाद, नव्यकोष जैविक खाद, कंपोस्ट या वर्मी-कंपोस्ट। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होते हैं।
  • खाद देने का समय: खेत तैयार करते समय जैविक खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं। फसल के बढ़ने के दौरान भी आवश्यकता के अनुसार खाद दें।

देखभाल और रोग प्रबंधन

फसल की देखभाल: फसल में खरपतवार न बढ़ने दें। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें और खेत को साफ रखें।

रोग प्रबंधन: शलगम की फसल में तना गलन और पत्तियों का पीला होना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।इसके लिए जैविक पद्धतियों से उपचार करें, जैसे नीम के तेल का छिड़काव।

शलगम की कटाई और उपज

  • कटाई का समय: शलगम की फसल को 60-90 दिनों में काटा जा सकता है, जब जड़ें पूरी तरह पक जाती हैं और पत्ते पीले होने लगते हैं। जड़ें मुलायम और आकार में ठीक हों, तब कटाई करें।
  • उपज: उचित देखभाल और अच्छी कृषि पद्धतियों के साथ प्रति हेक्टेयर 150-250 क्विंटल शलगम की उपज प्राप्त हो सकती है।

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