- हिन्दी भाषा में नए नाटकों की रचना हो रही है कम : आनंद सिंह भाटी
Faridabad News , आज समाज , बल्लभगढ़। रंगकर्मियों को भी हिन्दी के नए मौलिक नाटकों में अपना योगदान देना होगा, हिन्दी भाषा में नए नाटकों की रचना कम हो रही है और जो कर भी रहे हैं तो उन्हें खेलने वाले लोग कम हैं। मौलिक हिन्दी नाटकों की चुनौतियों विषय पर एक सेमिनार में प्ररोफसर और रंगमंच निर्देशक आनंद सिंह भाटी बोल रहे थे। चतुर्थ हरियाणा रंग उत्सव ज्योति संग स्मृति नाट्य समारोह के अंतर्गत एक प्राइवेट कालेज,मिल्क प्लांट रोड, बल्लभगढ़ में रंगमंच पर आधारित सेमिनार और कार्यशाला का आयोजन किया गया।
समाज में बदलती समस्याओं को हिन्दी नाटकों में स्थान देना अनिवार्य
जिसमें शहर के रंगमंच से जुड़े विद्यार्थी और एम ए हिन्दी साहित्य से जुड़े विद्यार्थियों ने 21वीं शताब्दी में मौलिक हिन्दी नाटकों की चुनौतियों विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे। उषा शर्मा ने कहा कि समाज में तेज़ी से बदलती समस्याओं को हिन्दी नाटकों में स्थान देना अनिवार्य है। आज हिन्दी के उन्हीं पुराने नाटकों की मांग अधिक है जिनमें उस समय की समस्याओं को उजागर किया गया जैसे आधे अधूरे,गो हत्या, गबन,फुस की रात,ठाकुर का कुआं आदि।
वहीं मनोज ने कहा कि मौलिक हिन्दी नाटकों की चुनौतियों को अब पकड़ पाना अत्यंत कठिन हो गया है। नेशनल स्कुल आफ़ ड्रामा वाराणसी से पुनीत कौशल ने रंगमंचीय कार्यशाला के अंतर्गत शास्त्रीय मूवमेंट की जान देते हुए कहा कि पहले रामलीला,स्वांग,नौटंकी आदि के लिए कलाकार गांव स्तर पर ही मिल जाया करते थे।
अनपढ लोग भी कलाकार बनकर अभिनय करते थे ।आजकल कलाकारों की कमी दिखाई देती हैं ।इस मौक़े पर हिन्दी साहित्य की जानकार उषा शर्मा, मनोज कुमार, रंगकर्मी आनन्द सिंह भाटी तथा पुनीत कौशल ,दीपक पुषपदीप ने अपने विचार रखे।
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