Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर जोरदार हमला बोला है। यह हमला विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) को लेकर है, जो मतदाता सूची की जांच और अपडेट करने की एक प्रक्रिया है। ममता बनर्जी का कहना है कि एसआईआर के नाम पर असली मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं और यह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को पीछे के दरवाजे से लागू करने की कोशिश है। उन्होंने चुनाव आयोग को बीजेपी कमीशन तक कह डाला और चेतावनी दी कि अगर बंगाल में उन्हें निशाना बनाया गया तो वह पूरे देश में बीजेपी की नींव हिला देंगी। इस मुद्दे पर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है, जहां एक तरफ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सड़कों पर उतर आई है, वहीं बीजेपी इसे घुसपैठियों और फर्जी वोटरों को साफ करने का जरिया बता रही है। आइए समझते हैं कि SIR क्या है, ममता क्यों इतनी नाराज हैं और इसका क्या अंजाम हो सकता है।

एसआईआर का पूरा नाम स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन है। यह चुनाव आयोग की एक नियमित प्रक्रिया है, जिसमें मतदाता सूची से मृत, डुप्लिकेट या गलत नामों को हटाया जाता है और नए नाम जोड़े जाते हैं। इस बार यह प्रक्रिया पश्चिम बंगाल समेत 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चल रही है। चुनाव आयोग का कहना है कि यह हर साल होता है, लेकिन इस बार इसे विशेष रूप से गहन बनाया गया है ताकि चुनावी प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी हो। बंगाल में यह नवंबर 2025 से शुरू हुआ है और दिसंबर तक चलेगा। लेकिन ममता बनर्जी इसे राजनीतिक साजिश बता रही हैं। उन्होंने कहा कि एसआईआर के दौरान बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) पर दबाव डाला जा रहा है और कुछ बीएलओ की संदिग्ध मौतें हुई हैं। ममता बनर्जी ने दावा किया कि केंद्र की बीजेपी सरकार चुनाव आयोग के जरिए बंगाल के मतदाताओं को डराने की कोशिश कर रही है।
ममता की बौखलाहट की वजह साफ है। पश्चिम बंगाल में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिया भी बहुत हैं। ममता बनर्जी का आरोप है कि एसआईआर के नाम पर असली नागरिकों के नाम काटे जा रहे हैं, जो उनके वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकता है। बोंगांव में एक बड़ी रैली में उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी मुझे पश्चिम बंगाल में मारने की कोशिश करेगी, तो मैं पूरे देश में उसकी नींव हिला दूंगी। घायल शेर जीवित शेर से ज्यादा खतरनाक होता है। यह रैली उत्तर 24 परगना जिले में हुई, जहां मतुआ समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। ममता ने मतुआ लोगों से अपने पुराने रिश्तों को याद दिलाया और खुद को उनके रक्षक के रूप में पेश किया। उन्होंने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि वह बीजेपी के इशारे पर काम कर रहा है और एसआईआर को जल्दबाजी में लागू किया जा रहा है। टीएमसी नेताओं ने दिल्ली में चुनाव आयोग से मिलकर इसकी शिकायत भी की।
दूसरी तरफ, बीजेपी का कहना है कि ममता बनर्जी की नाराजगी इसलिए है क्योंकि एसआईआर से फर्जी वोटरों का पता चलेगा। बीजेपी नेता सुकांत मजूमदार और अन्य ने कहा कि बंगाल में लाखों घुसपैठिए हैं, जो टीएमसी के वोट बैंक हैं। छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि ममता बनर्जी एसआईआर का विरोध क्यों कर रही हैं? सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने घुसपैठियों को अपना वोट बैंक बना रखा है। बीजेपी का दावा है कि बंगाल में 88 लाख मृत लोगों के नाम अभी भी वोटर लिस्ट में हैं और एसआईआर से यह साफ होगा। उन्होंने ममता पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि SIR एक सामान्य प्रक्रिया है और यह बिहार जैसे राज्यों में सफलतापूर्वक हो चुकी है, जहां कोई समस्या नहीं आई। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मुद्दे पर सुनवाई हो रही है, जहां विपक्ष ने अपनी बात रखी है।
यह विवाद सिर्फ बंगाल तक सीमित नहीं है। अन्य विपक्षी नेता जैसे एमके स्टालिन और अखिलेश यादव ने भी एसआईआर पर सवाल उठाए हैं,। ममता की रणनीति अलग है। वह सड़क पर उतरकर अपने समर्थकों को एकजुट कर रही हैं।। इसका कारण राजनीतिक है। 2026 में बंगाल विधानसभा चुनाव हैं और एसआईआर से अगर वोटर लिस्ट छोटी हुई तो टीएमसी को नुकसान हो सकता है। ममता को डर है कि बीजेपी इससे फायदा उठाएगी। वहीं, बीजेपी इसे अवसर के रूप में देख रही है, क्योंकि वह बंगाल में मजबूत होना चाहती है। अंजाम क्या होगा? सबसे पहले, कानूनी मोर्चे पर। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और कोर्ट ने चुनाव आयोग को हिदायत दी है कि प्रक्रिया निष्पक्ष हो। अगर कोर्ट एसआईआर को रोक देता है, तो ममता की जीत होगी और विपक्ष मजबूत होगा। लेकिन अगर यह जारी रहा, तो बंगाल में राजनीतिक हिंसा बढ़ सकती है। पहले ही बीएलओ पर दबाव की शिकायतें हैं। राजनीतिक रूप से, अगर एसआईआर से लाखों नाम कटे, तो 2026 चुनाव में टीएमसी की मुश्किलें बढ़ेंगी। बीजेपी इसे घुसपैठ के खिलाफ कदम बताकर हिंदू वोटर्स को लुभा सकती है। लेकिन अगर SIR में गड़बड़ी साबित हुई, तो चुनाव आयोग की साख पर सवाल उठेंगे।
समाज पर असर भी बड़ा होगा। मतुआ जैसे समुदाय डरे हुए हैं। वे बांग्लादेश से आए हैं और सीएए-एनआरसी से पहले ही चिंतित थे। एसआईआर से अगर उनके नाम कटे, तो नागरिकता का संकट गहरा सकता है। चुनाव आयोग ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति फॉर्म भरकर नाम जुड़वा सकता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में जागरूकता कम है। ममता बनर्जी की रैलियां इसी जागरूकता को बढ़ा रही हैं। कुल मिलाकर, एसआईआर विवाद बंगाल की राजनीति का नया मोड़ है। ममता बनर्जी अपनी छवि को मजबूत करने के लिए लड़ रही हैं, जबकि केंद्र और बीजेपी इसे चुनावी सुधार बता रहे हैं। अंजाम चाहे जो हो, यह साफ है कि 2026 चुनाव इससे प्रभावित होंगे। अगर एसआईआर सफल रहा, तो बंगाल में साफ-सुथरी वोटर लिस्ट बनेगी, लेकिन अगर राजनीतिक हो गया, तो विवाद बढ़ेगा। अब गेंद सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के पाले में है। जनता को चाहिए कि वह सतर्क रहे और अपना हक सुरक्षित करे। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)
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