Chandigarh News: जीवन मे सरलता ही असली गहना

0
54
Chandigarh News

Chandigarh News: जीवन को ईमानदारी से जानने और समझने का प्रयास बहुत कम लोग करते हैं। ऐसे व्यक्तियों में चुनिंदा लोग ही जीवन को सही मायने में समझ पाते हैं। जीवन क्या है? यह प्रश्न जीवन से भी ज्यादा कठिन है। जीवन एक पहेली है, एक चुनौती है, एक संघर्ष है। इसे समझकर और इससे टक्कर लेते हुए ही हम आगे बढ़ सकते हैं।

सार्थक जीवन जीकर किसी बड़े उद्देश्य की प्राप्ति यदि हम कर सकें, तो वही सच्चा जीवन है। जीवन लेने के लिए नहीं, बल्कि परसेवा में देने के लिए बना है। जीवन रहते यदि हमने किसी भटके को सही राह नहीं दिखायी, किसी भूखे को भोजन नहीं कराया, किसी गिरे असहाय-निर्बल को नहीं उठाया, तो ऐसे जीने का महत्व ही क्या है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर-24 तुलसी सभागार में जनसभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे आज समाज में हर व्यक्ति स्वार्थपूर्ति के लिए जीवन जी रहा है। लोगों की सोच संकुचित हो रही है। इसीलिए लोगों का नैतिक पतन तेजी से हो रहा है। जिसने जीवन को समझ लिया, वह जीवन को एक निश्चित दिशा देता है। उसके जीवन का लक्ष्य ही बन जाता है-नि:स्वार्थ सेवा करना। उसके लिए जीवन मजबूरी नहीं, महोत्सव बन जाता है।

जीवन व्यथा नहीं, बल्कि मनुष्य की सच्ची कथा होनी चाहिए। उसके लिए जीवन के कांटे भी फूल ही दिखते हैं। फूल सरीखी जिंदगी बनाने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी की हुई पुरानी गलतियों में सुधार कर आगे बढ़ें। सतर्कता, सजगता और सावधानी जैसे मूलमंत्रों का सहारा लेकर हम जीवन को सफल बना सकते हैं।

प्रसन्न रहना, संतुष्ट रहना, शांत रहना, हमेशा कर्म करने के लिए उत्साहित रहना, प्रेममय वातावरण रखना, ये जीवन को प्रसन्न रखने के सूत्र हैं। आज हमारे पास समस्त भौतिक संसाधन हैं, किंतु कहीं न कहीं कोई अभाव कई बार जरूर खटकता है। बिखरे जीवनक्रम को व्यवस्थित कर हम इसे संवार सकते हैं। ईश्वर के प्रति आस्था, लोगों के प्रति आपसी प्रेम व भाईचारे के सहारे हमारा जीवन सफल हो सकता है।

जीवन में एक अच्छी सोच का होना नितांत आवश्यक है। कहा गया है,जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। अच्छे विचारों से मानव देवता बनकर जीवन को बुलंदियों की तरफ ले जा सकता है, तो वहीं बुरे विचारों से उसका जीवन बर्बाद भी हो सकता है। इसलिए अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन को आबाद करना सीखें, बर्बाद करना नहीं। जीवन का सच्चा अर्थ शायद यही है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया कहा आमतौर पर देखा जाता है कि व्यक्ति अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों से, परिवार के बच्चों से, मित्रों के बच्चों से या फिर अपने रिश्तेदारों के बच्चों से करता है। ऐसी तुलना बच्चों को बहुत संकीर्ण बना देती है उनके मन मस्तिष्क को बहुत छोटा और कमजोर कर देती है यहां तक कि उनकी सोच को बहुत ही सीमित बना देती है। वे तंग खानों में बटने लगते है, टुकड़ों में जीने लगते है और छोटे जीवन को तेयार करने में लगते है।

ऐसा करना प्राकृतिक नियमों के खिलाफ है, मानव जीवन के विपरीत है। यह कितना दुखद है कि जब कोई यह कहता है कि बेटा तेरे अंक तेरे चाचा के बेटे से कम नहीं आने चाहिए, तेरे मेरिट आनी ही चाहिए और तू टॉपर बनना ही चाहिए।

यह कितनी छोटी और संकीर्ण बाते हैं कि एक पिता अपने बेटे को सारी दुनिया की अच्छाईयों से दूर कर रहा है, उसके हौसलों को कमजोर कर रहा है, उसकी क्षमताओं को नजर अंदाज कर रहा है और उसके दायरे को भी सीमित कर रहा है। माता पिता को चाहिए तो यह कि वे अपने बच्चों से कहें कि बेटी तू तेरी तुलना स्वयं से कर तू तेरी तुलना कल की अच्छाईयों से कर, तू तेरी तुलना स्वयं के संकल्पों से कर, स्वयं की योग्यताओं को बढ़ाने के रूप में कर और अपने बीते जीवन को और अच्छा बनाने के लिए कर।