Chandigarh News: सहज और शांत मन के जरिए करे जीवन यात्रा तय

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Chandigarh News: सहज और शांत मन के जरिए ही हम जीवन को जी सकते हैं। मन की शांति के लिए कुछ छोटे कदम मददगार साबित हो सकते हैं। किसी शांत जगह पर कुछ देर अकेले बैठें और अपने बारे में सोचें। अपनी जिंदगी, अपने विश्वासों, अपनी इच्छाओं और अपनी भावनाओं को लेकर विचार करें। अपनी जिंदगी के सभी पक्षों के बारे में विचार से आपको अपने लिए सही दिशा तलाशने में मदद भी मिलेगी।बंद आखों से आपकी एकाग्रता बढ़ जाती है, आपका दूसरी चीजों से ध्यान नहीं बंटता। अधिकांश लोग ध्यान करते वक्त जब अपनी आंखें बंद करते हैं, तब प्रकाश देखते हैं। हर व्यक्ति यह दावा कर रहा है कि जब वह अपनी आंखें बंद करता है, उसे प्रकाश दिखाई देता है। अब जब आप ध्यान करते हैं, तो हम आपको आंखें बंद करने के लिए कहते हैं, क्योंकि खुली आंखों की अपेक्षा बंद आंखों में आप अपने सृष्टा के थोड़े ज्यादा नजदीक होते हैं। ये शब्द मनीषीसंतश्रीमुनिविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-24 सी  अणुव्रत भवन  तुलसीसभागार में सभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा अक्सर हम जिन चीजों से सहमत नहीं होते, उन्हें अनदेखा करते जाते हैं, हम उनसे खुद को बहुत दूर मानते हैं, जबकि सच्चाई कुछ और होती हैं। अपने भीतर गहराई से प्रवेश करने, रास्ते खोजने की जगह हम ऐसी चीजों में उलझते जा रहे हैं, जिनका जड़ से कोई संबंध नहीं. हम बस तने में उलझे हुए हैं! हमने भीतर की चिंता ही छोड़ दी है।

मनीषीश्रीसंत ने कहा हमारे भीतर हिंसा हर जगह से ठूसी जा रही है। टीवी हमें गुस्सैल बनाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हमारे नेता, युवा खिलाडिय़ों को नेशनल टेलीविजन पर गालियां देते सगर्व गुस्सा फेंकते दिखते हैं। कैसी दुनिया बुनते जा रहे हैं, हम. जरा-जरा सी बात पर हम मरने-मारने पर उतारू हुए जा रहे हैं। हमारे चेतन, अवचेतन मन पर हिंसा के दाग गहरे होते जा रहे हैं. हम हिंसा से भरते जा रहे हैं. हमारा गुस्सैल, हिंसा से भरते जाना पेड़ की जड़ कटने जैसा है. जैसे जड़ कटने का अहसास एक दिन में नहीं होता, वैसे ही हिंसा का दीमक कब भीतर से प्रेम, सद्भाव, संवेदना को चट करता जाता है, पता ही नहीं चलता! हमारे आसपास जो कुछ घट रहा है, जिस तेजी से घटा है, उस पर सजग दृष्टि रखना बहुत जरूरी है. अक्सर हम जिन चीजों से सहमत नहीं होते, उन्हें अनदेखा करते जाते हैं. हम उनसे खुद को बहुत दूर मानते हैं, जबकि सच्चाई कुछ और होती है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया हमारे निर्णय लेने की क्षमता, चीजों को महसूस करने की शक्ति कमजोर होती जा रही है। हम सबके लिए दूसरों पर निर्भर होते जाते हैं। सब कुछ कीजिए. सुख चैन के सारे साधन जुटाइए. लेकिन इतना कुछ करते हुए बस इतनी चिंता कीजिए कि हमारे भीतर क्या भरता जा रहा है. हम बाहरी चीजों के ख्याल में इतने डूबे हैं कि भीतर का खोखलापन बढ़ता जा रहा है। उस साधु की हंसी को चेतावनी समझ, अपने किले को मजबूत बनाइए!