Chandigarh News: चंडीगढ़ प्रेस क्लब मे हीटवेव और कृषि पर आधारित मीडिया वर्कशॉप आयोजित

0
110
Chandigarh News

Chandigarh News: प्रेस क्लब में मंगलवार को हीटवेव और कृषि पर केंद्रित एक मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें 50 से अधिक पत्रकारों, कृषि वैज्ञानिकों और जलवायु विशेषज्ञों ने भाग लिया। कार्यशाला का उद्देश्य पंजाब की कृषि पर अत्यधिक गर्मी और असमान वर्षा के बढ़ते प्रभाव को गहराई से समझना था।

यह पहल पंजाब स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी और क्लीन एयर पंजाब जैसे अग्रणी सरकारी संस्थानों के सहयोग से चलाई गई। इसका मुख्य उद्देश्य पत्रकारों को वैज्ञानिक समझ, जलवायु परिवर्तन से जुड़े आंकड़ों के उपयोग और रिपोर्टिंग की प्रभावी रणनीतियों से लैस करना था, ताकि वे पंजाब में तेजी से उभरती जलवायु संबंधी चुनौतियों को गहराई, सटीकता और जिम्मेदारी के साथ प्रस्तुत कर सकें।
कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए चंडीगढ़ प्रेस क्लब के प्रेसिडेंट और पत्रकार सौरभ दुग्गल ने कहा कि मैं चंडीगढ़ प्रेस क्लब की ओर से सभी वक्ताओं, अतिथियों और सदस्यों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। हीटवेव और असमान बारिश का कृषि पर पड़ने वाला प्रभाव आज के समय की सबसे जरूरी चर्चाओं में से एक है। जैसे-जैसे जलवायु असंतुलन बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हमारे किसानों की चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं। पत्रकारों के लिए यह सिर्फ मौसम की खबर नहीं, बल्कि खाद्य सुरक्षा, आजीविका और नीति निर्माण से सीधा जुड़ा हुआ मुद्दा है। हमें इस मंच का उपयोग जिम्मेदारी और गंभीरता के साथ इन मुद्दों को उजागर करने के लिए करना चाहिए।
सभा को संबोधित करते हुए पंजाब स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर  इंजीनियर प्रितपाल सिंह ने कहा कि जब पंजाब जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे समय में यह अत्यंत आवश्यक है कि हमारे मीडिया साझेदार इन मुद्दों को स्पष्टता और गहराई के साथ रिपोर्ट करने में सक्षम हों। विज्ञान-आधारित पत्रकारिता न केवल आम जनता को जागरूक बना सकती है, बल्कि नीति-निर्माताओं को भी सही और सूचित निर्णय लेने में मदद कर सकती है। यह समय समावेशी जलवायु कार्रवाई के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) के कृषि मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख एवं प्रोफेसर डॉ. पी.एस. किंगरा ने कहा कि हीटवेव अब कोई असामान्य घटना नहीं रही — यह अब सामान्य स्थिति बनती जा रही है। ये चरम मौसमी घटनाएं पहले से ही फसलों को नुकसान पहुँचा रही हैं, मिट्टी की नमी तेजी से घटा रही हैं और किसानों को गंभीर तनाव में डाल रही हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि “मीडिया की अहम भूमिका है कि वह इस सच्चाई को जनता की समझ और नीतिगत चर्चाओं तक पहुँचाए।पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) की प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. प्रभज्योत कौर ने डेटा-आधारित रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि हम तापमान की चरम स्थितियों और अनियमित वर्षा में स्पष्ट वृद्धि देख रहे हैं, जो हमारी पारंपरिक फसली चक्रों को प्रभावित कर रही है। इस प्रकार की कार्यशालाएँ विज्ञान और पत्रकारिता के बीच की खाई को पाटने का काम करती हैं — ताकि पत्रकार इस चुनौती की गंभीरता और व्यापकता को प्रभावी ढंग से आम जनता तक पहुँचा सकें।
द टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ सहायक संपादक इख़लाक सिंह औजला ने कहा कि कृषि क्षेत्र की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे बदलते मौसम पैटर्न — जैसे हीटवेव और बढ़ते तापमान — और उनके फसलों व उत्पादन पर पड़ने वाले अल्पकालिक व दीर्घकालिक प्रभावों को समझें और उजागर करें। हीटवेव से खेती की पैदावार में कमी आ सकती है, जो अंततः खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।
आशीष तिवारी, रेज़िडेंट एडिटर  चंड़ीगढ़ व पंजाब, अमर उजाला, चंडीगढ़ ने हीटवेव पर रिपोर्टिंग कैसे करें विषय पर बोलते हुए बताया कि हीटवेव के कृषि पर प्रभाव की रिपोर्टिंग करते समय पत्रकारों को सटीक और आंकड़ों पर आधारित जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए, जो किसानों और खाद्य सुरक्षा पर इसके तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभावों को उजागर करे। रिपोर्ट में ज़मीन से जुड़े किसानों, कृषि विशेषज्ञों और जलवायु वैज्ञानिकों की आवाज़ें शामिल करना ज़रूरी है ताकि फसल उत्पादन, गुणवत्ता और कटाई चक्र पर पड़ रहे प्रभाव का संतुलित दृष्टिकोण सामने आ सके। इस मुद्दे को व्यापक जलवायु परिवर्तन और नीति प्रतिक्रियाओं के संदर्भ में पेश करना जनता को जागरूक करने और कार्रवाई की दिशा में प्रेरित करने में सहायक होगा। उन्होंने यह भी कहा कि दृश्य प्रमाण, क्षेत्रीय तुलना और तकनीकी शब्दों की सरल व्याख्या रिपोर्ट को अधिक प्रभावशाली और व्यापक दर्शकों के लिए सुगम बना सकती है।
कार्यशाला में जलवायु डेटा, हीटवेव के रुझान, गेहूं व धान जैसी प्रमुख फसलों पर असर, जल संकट और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर प्रस्तुतियाँ दी गईं। साथ ही फेक न्यूज़ से बचने, वैज्ञानिक स्रोतों के उपयोग और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में कृषि समाचारों की रिपोर्टिंग के व्यावहारिक सुझाव भी साझा किए गए।
कार्यक्रम का समापन इस साझा संकल्प के साथ हुआ कि मीडिया और वैज्ञानिक संस्थानों के बीच साझेदारी को और मजबूत किया जाएगा ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए जनसंवाद को बेहतर बनाया जा सके।