
Hearing On President-Governor Decision On Bills, (आज समाज), नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि विधानसभा से पास हुए विधेयकों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले के खिलाफ राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल नहीं कर सकतीं। शीर्ष अदालत आज यानी गुरुवार को यह तय करने पर सुनवाई कर रही थी कोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति को तय समय में विधानसभा से पास हुए विधेयकों पर फैसला लेने का निर्देश दे सकता है अथवा नहीं।
राज्य सरकार केवल लोगों के अधिकारों की रक्षा करती है : एसजी
चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई की। वहीं केंद्र सरकार की ओर से मामले में सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता पेश हुए। केंद्र का पक्ष रखते हुए उन्होंने दलील दी कि राज्य सरकार के पास कोई मौलिक अधिकार नहीं होता और वह केवल लोगों के अधिकारों की रक्षा करती है।
किसी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं राष्ट्रपति -राज्यपाल
एसजी तुषार मेहता ने कहा, राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट की इस बात पर राय लेना चाहती हैं कि क्या राज्य संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत इस तरह की पिटीशंस शीर्ष कोर्ट में दायर कर सकते हैं। मेहता के अनुसार राष्ट्रपति यह भी जानना चाहती हैं कि संविधान के अनुच्छेद 361 में क्या प्रावधान है। उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 361 में यह व्यवस्था है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति अपने अधिकारों व कर्तव्यों के निर्वहन के लिए किसी कोर्ट के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।
इस तरह के प्रश्नों पर पहले भी हुई है चर्चा : एसजी
सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने शीर्ष अदालत को बताया कि इस तरह के प्रश्नों पर पहले भी चर्चा हुई है, पर राष्ट्रपति का मानना है कि कोर्ट की स्पष्ट राय इसलिए आवश्यक है, क्योंकि भविष्य में इस तरह का मामला दोबारा उठ सकता है। तुषार मेहता ने कहा, अनुच्छेद 32 के अंतर्गत प्रेसिडेंट या गवर्नर के फैसलों को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा, ऐसे मामलों में न तो अदालत कोई निर्देश दे सकती है और न इस तरह के डिसीशंज को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। एसजी मेहता ने यह भी कहा कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर अनुच्छेद 32 का उपयोग तब किया जाता हैै। पर संवैधानिक ढांचे में राज्य सरकार स्वयं मौलिक अधिकार नहीं रखती। उसकी भूमिका अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है।