
Vande Mataram 150th Anniversary, (आज समाज), नई दिल्ली : वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर लोकसभा में आयोजित विशेष चर्चा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन की शुरुआत वंदे मातरम से की। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘वंदे मातरम’ पर बोलते हुए इसे भारत की राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संघर्ष की आत्मा बताया, तो संसद का माहौल देशभक्ति की भावनाओं से भर उठा।
आंदोलन को संगठित रूप दिया और जनसहभागिता बढ़ाई
केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “वंदे मातरम सिर्फ एक शब्द नहीं है, यह एक भावना है, एक दर्शन है। यह भारत के स्वाभिमान और आजादी का प्रतीक है।” राजनाथ सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय चेतना को दिशा देने के लिए उस समय ‘वंदे मातरम समिति’ का गठन किया गया था, जिसने आंदोलन को संगठित रूप दिया और जनसहभागिता बढ़ाई। राजनाथ सिंह ने याद दिलाया कि 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ चले व्यापक आंदोलन के दौरान ‘वंदे मातरम’ की गूंज पूरे देश में गूंज उठी थी, जिसने क्रांतिकारियों से लेकर आम जनता तक, सभी के दिलों में स्वतंत्रता की आग पैदा की।
ब्रिटिश हुकूमत भी इतनी विचलित और घबराई हुई थी
उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम’ के प्रभाव से ब्रिटिश हुकूमत भी इतनी विचलित और घबराई हुई थी कि इसके विरोध में एक विशेष सर्कुलर जारी किया गया, जिसमें इस गाने पर सार्वजनिक रूप से पाबंदी लगाने का आदेश जारी किया गया। उन्होंने अपने ओजस्वी अंदाज में कहा, “इंग्लिश हुकूमत इतने दमन के बाद भी भारतीयों के मानस से वंदे मातरम को कभी मिटा नहीं सकी।” रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 1906 में जब पहली बार भारत देश का पहला राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया गया, तब उसके मध्यभाग में ‘वंदे मातरम’ लिखा गया था।
स्वाभिमान, साहस और आत्मबल जगाने का काम किया
राजनाथ सिंह ने कहा, “वंदे मातरम ने भारतीयों में स्वाभिमान, साहस और आत्मबल जगाने का काम किया। यही वह नारा था, जो स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष की प्रेरणा बना।” उन्होंने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि संविधान, तिरंगे और वंदे मातरम जैसे प्रतीकों का सम्मान करना हर भारतीय का नैतिक कर्तव्य है। राजनाथ ने आगे यह भी उल्लेख किया कि उस समय ‘वंदे मातरम’ नाम से एक अखबार भी प्रकाशित होता था, जो उस दौर में स्वतंत्रता की आवाज बनकर उभरा।
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