- समय पर कार्रवाई न करने पर ‘आपरेशन सफल, मरीज मृत’ वाली स्थिति
याचिकाओं पर 7 महीने बाद भी फैसला लंबित
बता दें कि कांग्रेस में शामिल हुए 10 बीआरएस विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर 7 महीने बाद भी फैसला लंबित है और इसी के चलते शीर्ष अदालत ने फैसला लेने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को तीन माह का समय दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला 10वीं अनुसूची से जुड़ा हुआ है, जिसमें दलबदल की स्थिति में अध्यक्ष को जल्द निर्णय लेना होता है।
पीठ ने जताई नाराजगी
पीठ ने इस बात नाराजगी जताई कि स्पीकर ने 7 महीने तक अयोग्यता याचिकाओं पर कोई नोटिस ही जारी नहीं किया। उन्होंने कहा कि जब ऐसी याचिकाओं पर इतना विलंब होता है, तो यह लोकतंत्र को कमजोर करता है। केवल अदालत में याचिका दायर होने के बाद नोटिस जारी करना, न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है।
विधायकों को प्रक्रिया में विलंब न करने दें
पीठ ने कहा, स्पीकर विधायकों को प्रक्रिया में विलंब न करने दें। अगर ऐसा होता है तो उनके खिलाफ प्रतिकूल परिणाम निकाला जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा, राजनीतिक दलबदल देश के लोकतांत्रिक सिस्टम के लिए गंभीर खतरा हैं। यदि इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो यह एक समय में पूरी प्रणाली को अस्थिर बना सकता है। पीठ ने संसद से भी अपील की कि वह विचार करे कि क्या दलबदल के मामलों में विधानसभा स्पीकर को ही फैसला करने का मौजूदा तंत्र उचित है अथवा इसमें बदलाव की आवश्यकता है।
उच्च न्यायालय का आदेश कैंसिल
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना उच्च न्यायालय का वह आदेश भी कैंसिल कर दिया जिसमें स्पीकर को उचित समय पर निर्णय लेने के लिए कहा गया था। शीर्ष अदालत ने माना कि पहले के आदेशों की वजह से कार्रवाई में विलंब हुआ है, जबकि संविधान की मंशा त्वरित फैसला लेने की थी।
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