Rahul Gandhi ने लंगड़े घोड़ों की बात कर पार्टी में नई बहस छेड़ी, गुटबाजी को मिलेगी और हवा

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Rahul Gandhi
Rahul Gandhi: राहुल ने लंगड़े घोड़ों की बात कर पार्टी में नई बहस छेड़ी, गुटबाजी को मिलेगी और हवा

Rahul Compares Party Leaders With Horses, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को भोपाल में पार्टी के एक कार्यक्रम में अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की तुलना तीन प्रकार के घोड़ों से कर बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। राहुल ने घोड़ों को तीन वर्गों में बांट नेताओं को समझाते हुए चेताया कि वह खुद तय करें किस वर्ग में आते हैं। नेता अब परेशान हैं कि वह कैसे तय करें किस वर्ग में आते हैं।

बीजेपी की इस बात पर कांग्रेस खुद उठाए थे सवाल

बीजेपी ने जब 75 वर्ष की उम्र तय कर मार्ग दर्शक मंडल की बात की थी तो सबसे ज्यादा सवाल कांग्रेस ने ही उठाए थे। कांग्रेस ने कहा था, हमारे यहां उम्र दराज नेताओं की उपेक्षा नहीं होती। राहुल ने उम्र की बात न कर तेज, सुस्त और लंगड़े होने की बात की है। जो नौजवान घोड़ा होता है वह रेस में शामिल होता है। जो कुछ ज्यादा उम्र का होता है उसे रेस में शामिल नहीं करते वह शादी में शामिल किया जाता है। तीसरा वर्ग लंगड़ा घोड़ा होता है। उम्र ज्यादा होने पर जब घोड़ा चल फिर नहीं पाता उसे लंगड़ा घोड़ा कहते हैं।

सीधे नहीं बोले राहुल, इशारे में कहकर खड़ा किया विवाद

सेना के बारे में जानने वालों को पता होगा कि लंगड़े और उम्र दराज घोड़े के साथ क्या किया जाता है। राहुल ने भी सीधे कुछ नहीं बोला, लेकिन इशारे में समझाकर पार्टी में विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने घर बिठाने जैसी बात कही। हालांकि राजनीति में उम्र की कोई सीमा नहीं होती है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता शीशराम ओला तो 90 साल की उम्र में मंत्री थे। द्रमुक नेता एम करुणानिधि की उम्र तो 100 के आसपास होने वाली थी। प्रकाश सिंह बादल भी अंतिम समय तक सक्रिय रहे।

पार्टी के पास राहुल के मापदंड का नहीं कोई जवाब

राजनीति में न तो कोई उम्र दराज नेता होता है और ना ही लंगड़ा होता है। राहुल ने ही ऐसा मापदंड खुद तय कर दिया जिसका जवाब पार्टी के पास है ही नहीं। राजनीति में अनुभवी और बुजुर्ग नेताओं का अपना महत्व होता है। लेकिन राहुल ने मंगलवार को लंगड़ा घोड़े की बात कर नई बहस को जन्म दे दिया। शादी और रेस के घोड़े वाली बात अभी तक कहते आए थे। अब कांग्रेस में बहस छिड़ गई है कि तेज दौड़ने वाले समझदार नेता कार्यकर्ता कौन हैं,उसके बाद शादी में यूज किए जाने वाले घोड़े वाले नेता कार्यकर्ता कौन है। तीसरे वे लंगड़े नेता, कार्यकर्ता कौन हैं जिन्हें वह चाहते हैं कि सेना की तरह जैसा व्यवहार न कर उन्हें घर बैठना चाहिए।सेना में तो उम्र के हिसाब से तय होता है।जानकार तो यही मान रहे हैं कि राहुल ने भी उम्र के हिसाब से तय किया होगा।

कांग्रेस में उम्रदराज नेताओं की लंबी सूची

राहुल गांधी ने घोड़ों की बात कर उम्र को माप दंड बनाया है तो पार्टी में उम्र दराज नेताओं की लंबी सूची है। भोपाल सभा में शामिल कई नेता उम्र दराज थे। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे कई नेता वहां मौजूद थे। राहुल की मां सोनिया गांधी,पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे खुद उम्र दराज नेताओं में आते हैं। राहुल गांधी ने ऐसा पहली बार नहीं किया है। वह पहले भी ऐसा कर चुके हैं। अंतर इतना है कि तब झगड़ा युवा बनाम अनुभव ओर बुजुर्ग नेताओं के बीच हुआ था। तब राहुल को युवा नेता माना जाता था। पार्टी उन्हें आज भी युवा नेता ही मानती है।

युवा बनाम बुजुर्ग झगड़े ने हर चुनाव में नुकसान पहुंचाया

2009 में शुरू हुआ युवा बनाम बुजुर्ग झगड़े ने पार्टी को 2014 और उसके बाद हर चुनाव में नुकसान ही पहुंचाया। क्योंकि 2019 के आम चुनाव तक राहुल गांधी ने अध्यक्ष रहते हुए ही अनुभवी पुराने अधिकाश नेताओं को साइड कर दिया था।उनसे बातचीत और चर्चा बंद कर दी थी।तेज दौड़ने वाले युवा सलाहकारों पर ज्यादा भरोसा करते थे।जब पार्टी की करारी हार हुई तो राहुल ने ठीकरा बड़े और बुजुर्ग नेताओं पर फोड़ा।करारी हार के बाद उनके तेज दौड़ने वाले अधिकांश युवा सहयोगियों ने पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया।बाकी कुछ अनुभवी और बुजुर्ग नेताओं ने पार्टी छोड़ दी।लेकिन बीजेपी में शामिल नहीं हुए।

जानकार नेताओं ने राहुल से अलग राह पकड़ी

आपरेशन सिंदूर के बाद भी अनुभवी और जानकार नेताओं ने राहुल से अलग राह पकड़ ली है।पी चिदंबरम,शशि थरूर,सलमान खुर्शीद,आनंद शर्मा, मनीष तिवारी आदि ने आपरेशन सिंदूर में सरकार का साथ दे एक तरह से राहुल की नीति को गलत साबित किया।हो सकता है आने वाले समय में यह नेता भी कांग्रेस छोड़ अलग राह पकड़े।अब सवाल यही खड़ा हो रहा है कि राहुल के वह तेज दौड़ने वाले सलाहकार कौन हैं जो आपरेशन सिंदूर पर सवाल उठा फिर पार्टी को 2019 की स्थिति में ले जाना चाहते हैं।

कांग्रेस का यह अभियान भी पूरी तरह विफल

कांग्रेस ने आपरेशन सिंदूर को लेकर पूरे देशभर में जय हिंद सभा अभियान की घोषणा की थी। इस सभा में पूर्व सैनिकों के सम्मान के साथ आपरेशन सिंदूर पर सवाल उठाने थे। लेकिन यह अभियान पूरी तरह से फ्लॉप रहा। गिनती की आम सभा ही हो पाई। बड़े नेता इस अभियान में शामिल नहीं हुए।लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी हों या पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे जैसे बड़े नेता किसी भी सभा में शामिल नहीं हुये।इसके बाद भी कांग्रेस और विपक्ष अपने मुद्दे छोड़ने को तैयार नहीं है। विपक्ष की तरफ से तो कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी तो एक कदम आगे हैं। उन्होंने ही सबसे पहले भारत के कितने विमान गिरे जैसे सवाल उठाए।

ठीक 2019 वाली राजनीति करते दिख रहे राहुल

राहुल ने गत मंगलवार को फिर दोहराया कि प्रधानमंत्री मोदी अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप से डर गए। जबकि ट्रंप कई बार बयान बदल चुके हैं। भारत के फैसले को अधिकांश जानकार सही ठहरा रहे हैं। राहुल गांधी ठीक 2019 वाली राजनीति करते दिख रहे हैं। उन्होंने उस समय अधिकाशं वरिष्ठ नेताओं की नहीं सुनी और रेस में तेजी से दौड़ रहे घोड़ों वाले सलाहकारों पर ज्यादा भरोसा कर राफेल और चौकीदार चोर जैसे मुद्दों को तूल दिया।नतीजन पार्टी की करारी हार हुई।राहुल आज भी उसी तरह की राजनीति करते दिख रहे हैं।घोड़ों वाले बयान से पार्टी के अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं के मनोबल पर तो असर पड़ेगा ही पार्टी की चुनौतियां भी बढ़ेंगी।राहुल गांधी यूं भी राज्यों में चल रही आपसी खींचतान से जूझ रहे हैं।कोई समाधान उनके पास नहीं है।उनके बयान के बाद खींचतान और बढ़ेगी।

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