शयन करते हुए करवट लेते हैं भगवान श्री हरि
, (आज समाज), नई दिल्ली: परिवर्तिनी एकादशी की शुरूआत 3 सितंबर 2025 को सुबह 3 बजकर 53 मिनट से होगी और इसकी समाप्ति 4 सितंबर 2025 की सुबह 4 बजकर 21 मिनट पर होगी। उदया तिथि के अनुसार ये एकादशी इस साल 3 सितंबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
कहा जाता है कि एकादशी पर भगवान श्री हरि शयन करते हुए करवट लेते हैं इसलिए ही इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। परिवर्तिनी एकादशी को पार्श्व एकादशी और पद्मा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा का विशेष महत्व माना गया है।
व्रत पारण
पंचांग के मुताबिक 3 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा। फिर 4 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 4 बजकर 7 तक मिनट तक व्रत का पारण कर सकते हैं।
पूजा विधि
- पूजा के लिए सबसे पहले एक साफ चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं और उसपर भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित कर दें।
- इसके बाद आप प्रभु को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं।
- अब आप पीले फूल, पीले फल और चंदन लगाएं।
- इसके बाद विष्णु जी को तुलसी दल और मिठाई चढ़ाएं।
- इसके बाद आप पंचामृत, हलवा या धनिया पंजीरी का भोग प्रभु को लगा सकते हैं। हालांकि इसमें तुलसी के पत्ते को अवश्य शामिल करें।
- अब शुद्ध घी का दीपक और धूप जला लें।
- परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा का पाठ करें।
- भगवान विष्णु की चालीसा पढ़ें और अंत में सुख-समृद्धि की कामना करते हुए परिवार संग आरती करें।
- अगले दिन व्रत पारण के बाद आप जरूरतमंदों को अन्न का दान करें।
भगवान विष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥