(National News) अजीत मेंदोला। नई दिल्ली। कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान राजस्थान समेत कई और प्रदेशों में चलाया जाएगा।लेकिन जिस तेजी से इस अभियान को आगे बढ़ना चाहिए था अभी नहीं बढ़ पाया है।क्योंकि मध्यप्रदेश,गुजरात,उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे प्रदेशों में पर्यवेक्षकों को मजबूत जिलाध्यक्षों की खोज में खासा जूझना पड़ रहा है। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इन तीनों राज्यों में खुद शुरुआत कर निष्पक्ष तरीके से काम करने को कहा था।लेकिन गुजरात को छोड़ मध्यप्रदेश और हरियाणा में दिग्गज नेताओं की आपसी खींचतान कहीं ना कहीं आड़े आ रही है।उत्तर प्रदेश में पार्टी नया संगठन तैयार करने की कोशिश कर रही हैं ,क्योंकि तीन दशक से ज्यादा समय से वहां कांग्रेस सत्ता में नहीं है। इसके चलते बाकी राज्यों को लेकर कुछ तय नहीं हो पाया है।दो लोकसभा और कई राज्यों का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने निचले स्तर से पार्टी को मजबूत करने का फैसला किया।पार्टी जिलाध्यक्ष की हैसियत कार्यसमिति के सदस्य के बराबर करना चाहती है।मतलब प्रत्याशी चयन से लेकर पार्टी के हर फैसले में जिलाध्यक्ष की अहम भूमिका रहेगी।
पार्टी संगठन चुनाव से चुने गए जिलाध्यक्षों पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रही।तीन साल पहले संगठन चुनाव की प्रक्रिया पूरी करने के बाद जिलाध्यक्ष चुने गए थे।आलाकमान ने मौजूद जिलाध्यक्षों और उनसे योग्य दूसरे नेताओं का पता लगाने के लिए दूसरे राज्यों के नेताओं को पर्यवेक्षक बना कर इन तीन प्रदेशों में भेजा है।लेकिन इसमें भी शिकायतें आने लगी है।जैसे हरियाणा के एक जिले के नेता को मध्यप्रदेश में पर्यवेक्षक बनाया गया।उसके जिले में जब पर्यवेक्षक पहुंचे तो वह जानकारी या दावेदारी से वंचित रह गया।दूसरा पर्यवेक्षक मौजूदा ताकतवर जिलाध्यक्षों के बारे जानकारी ठीक से नहीं जुटा पा रहे हैं।आलाकमान की तरफ से निर्देश हैं कि जिलाध्यक्ष के अलावा उस जिले में और कौन नेता हैं जो साफ छवि के साथ साथ सक्रिय भी हो।
गुजरात में पर्यवेक्षकों को खासी मशक्कत करनी पड़ी।उन्होंने अपनी रिपोर्ट राहुल गांधी को सौंप दी,लेकिन बात बन नहीं पा रही है
हरियाणा और गुजरात जैसे राज्य में पर्यवेक्षकों के पसीने छूट रहे हैं क्योंकि नेता ही गिनती के बचे हुए।इन नेताओं में यह भी पता लगाना है कि बीजेपी से किसी का कोई संबंध तो नहीं है।क्योंकि राहुल गांधी बार बार कह चुके हैं कि पार्टी के अंदर उन नेताओं का पता लगाया जाना जरूरी है जो बीजेपी के संपर्क में रहते हैं।गुजरात में पर्यवेक्षकों को खासी मशक्कत करनी पड़ी।उन्होंने अपनी रिपोर्ट राहुल गांधी को सौंप दी,लेकिन बात बन नहीं पा रही है।सूत्रों का कहना राहुल और एक्सरसाइज चाहते हैं।यही वजह है कि गुजरात के जिलाध्यक्षों की जो लिस्ट मई में जारी होनी थी अभी तक हो नहीं पाई है।हरियाणा में भी पर्यवेक्षकों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है।
पार्टी को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है
क्योंकि वहां पर सालों से कोई जिला कमेटी बनी ही नहीं।मध्यप्रदेश में कमेटी हैं।उनमें बदलाव करना है।लेकिन वहां पर संकट यह है कि मौजूदा अधिकांश जिलाध्यक्ष किसी ना किसी बड़े नेता से जुड़े हुए हैं।इसके चलते इलाके में ताकतवर भी हैं।तीन प्रदेशों में पार्टी ने संगठन को मजबूत करने की जो कवायद शुरू की है उसमें ही पार्टी को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।इसलिए पार्टी जल्दबाजी में बाकी राज्यों को अभी नहीं छेड़ रही।पार्टी की पहली प्राथमिकता यूं तो कमजोर राज्य हैं,लेकिन वह धीरे धीरे सभी राज्यों के जिलाध्यक्षों में बदलाव करेगी।