अंबाला। भारतीय लोकतंत्र जिस मजबूत खंभे पर टिका था उसकी नींव आपातकाल ने हिला कर रख दी। कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि किसी लोकतंत्र में आपातकाल जैसी कोई चीज भी लागू हो सकती है। पर इंदिरा गांधी ने दिखा दिया था कि किसी देश के प्रधानमंत्री के पास कितनी असीम शक्तियां होती हैं। हालांकि इस आपातकाल ने विपक्ष को इतना शक्तिशाली बना दिया कि उन्हें इंदिरा गांधी और कांग्रेस को ध्वस्त करने में अधिक समय नहीं लगा। दरअसल इस आपातकाल की नींव 1971 के चुनाव के समय ही रख दी गई थी।
-राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश नाम से मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावों में धांधली का दोषी पाया था। 12 जून 1975 को सख्त जज माने जाने वाले जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने निर्णय में उनके रायबरेली से सांसद के रूप में चुनाव को अवैध करार दे दिया।
-अदालत ने साथ ही अगले छह साल तक इंदिरा के कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा में जाने का रास्ता भी नहीं बचा। अब उनके पास प्रधानमंत्री पद छोड़ने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। कई जानकार मानते हैं कि 25 जून, 1975 की आधी रात से आपातकाल लागू होने की जड़ में यही फैसला था।
-दरअसल मार्च 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी। कुल 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा (352) सीटें हासिल हुई।
-इस चुनाव में इंदिरा गांधी लोकसभा की अपनी पुरानी सीट यानी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं। लेकिन इस सीट पर उनके प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण ने उनकी इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। यही मुकदमा इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के नाम से चर्चित हुआ।
-हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार और सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। राजनारायण के वकील शांतिभूषण थे।
-यही वह समय भी था जब गुजरात और बिहार में छात्रों के आंदोलन के बाद देश का विपक्ष कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हो चुका था। लोकनायक कहे जाने वाले जयप्रकाश नारायण यानी जेपी पूरे विपक्ष की अगुआई कर रहे थे। ऐसे में कोर्ट के इस फैसले ने विपक्ष को और आक्रामक कर दिया।
-हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट भी गर्इं, लेकिन वहां से कोई खास मोहलत नहीं मिली।
-26 जून, 1975 की सुबह राष्ट्र के नाम अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा कि आपातकाल जरूरी हो गया था। सेना को विद्रोह के लिए भड़काया जा रहा है। इसलिए देश की एकता और अखंडता के लिए यह फैसला जरूरी हो गया था।
-इसके बाद भारतीय लोकतंत्र ने वह दिन देखा जब पूरा देश आपातकाल की त्रासदी को झेलता रहा। इस आपातकाल का परिणाम यह हुआ कि 1977 का चुनाव कांग्रेस जैसी दिग्गज पार्टी के लिए सबसे बुरा दिन लेकर आया।
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