Editorial Aaj Samaaj | अलोक मेहता | बिहार विधान सभा चुनाव का एक बड़ा मुद्दा प्रदेश को जंगल राज यानी सत्ता और अपरधियों-माफिया के गठजोड़ से बचाव भी है। निश्चित रूप से लालू प्रसाद यादव के राज में नेताओं और अपराधियों के गहरे संबंधों पर अनेक प्रामाणिक रिपोर्ट और पुस्तकें आती रही हैं। लालू राज के प्रारंभिक दौर में मैं स्वयं एक अखबार के संपादक के नाते कई घटनाओं से परिचित रहा और तब या बाद में भी विभिन्न अख़बारों और साप्ताहिक पत्रिका में रिपोर्ट्स और लेख प्रकाशित करता रहा हूं।

इसलिए आजकल अपराध मुक्त व्यवस्था के सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र में प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह के कई कड़े निर्णयों और पुलिस की कार्रवाई को अन्य राज्यों में भी पालन करने की बात कही जा रही है। पुलिस कार्रवाई में अपराधियों से मुठभेड़ में मारे जाने पर अवश्य सवाल उठाए जाते हैं। इसे लेकर पुलिस अधिकारी, मीडिया और कानूनविद की बहस जारी है। इस पृष्ठभूमि में मेरे जैसे पत्रकारों को इन आरोपों पर गंभीरता से सोचना पड़ता है कि क्या ऐसे मुठभेड़ में अपराधी को कानून से सजा के बजाय मारे जाने के प्रकरण भी हैं या जातीय और साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह से तो उन्हें नहीं मारा जा रहा है? अथवा क्या पिछले वर्षों के दौरान अदालतों ने जघन्य अपराधों में लिप्त लोगों को कठोर सजा दी या नहीं?
इस तरह के सवालों के दिलचस्प उत्तर मुझे उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार के जीवन खासकर एनकाउंटर एक्सपर्ट के नाते प्रामाणिक तथ्यों पर मूलतः पत्रकार, लेखक और फिल्म निर्माता अनिरुद्ध मित्रा की पिछले दिनों आई नई पुस्तक द इन्फोर्सर में मिले। प्रशांत कुमार उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के चर्चित चेहरा रहे हैं। वर्दी में अपने शुरुआती दिनों से लेकर उत्तर प्रदेश के शीर्ष पुलिस अधिकारी के रूप में अपने उत्थान तक, प्रशांत कुमार का करियर भारत के सबसे जटिल राज्यों में से एक में उच्च-दांव वाले अभियानों, सांप्रदायिक दंगों और अपराध नियंत्रण की क्रूर वास्तविकताओं से भरा रहा है।
किताब द इन्फोर्सर में बताया गया है कि किस तरह दबाव में भी शांत रहने के लिए पहचाने जाने वाले प्रशांत कुमार ने खूंखार बदमाशों के खिलाफ अनगिनत अभियानों का नेतृत्व किया। आतंकी मॉड्यूल पर नकेल कसी और राज्य के कुछ सबसे कठिन क्षणों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुझे सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह लगा कि जुलाई 2023 से मई 2025 तक यूपी पुलिस ने संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामलों में 93,000 से ज़्यादा लोगों को दोषी ठहराया, जिनमें से 65 मामलों में अदालतों से उन्हें मृत्युदंड मिला।
यही नहीं इनमें से 7,800 से ज़्यादा लोगों को अदालतों ने आजीवन कारावास और 1,395 लोगों को 20 साल से ज़्यादा की कैद की सज़ा सुनाई गई है। मतलब यह धारणा पूरी तरह गलत है कि गंभीर अपराधों पर पुलिस द्वारा पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराए जाने पर देश की अदालतें कठोर दंड दे रही हैं। इसलिए प्रदेशों में पुलिस बल भी पर्याप्त संख्या और साधन संपन्न हो एवं राज्य तथा केंद्र सरकारें ईमानदार पुलिसकर्मियों को समुचित संरक्षण दें तथा उनके कामकाज में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें।
बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश में अब पुलिस बल दोगुना हो गया है। इसकी संख्या 4 लाख से ज़्यादा बताई जाती है। साथ ही नई भर्ती का काम भी जारी है। जब भाजपा सरकार प्रदेश में सत्ता में आई थी, तब पुलिस बल की कुल संख्या केवल दो लाख थी। अब पुलिस बजट भी ढाई गुना बढ़ गया है। पुस्तक में मुठभेड़ों के पीछे रणनीतिक सोच, नैतिक अस्पष्टता और कानून के शासन व राजनीतिक मजबूरियों के बीच तार पर चलने की कहानी छिपी है।
द इन्फोर्सर भारतीय पुलिस व्यवस्था की गहराई में उतरती है, बदलती सरकारों, जनता की निगरानी और हिंसा की हमेशा मौजूद छाया के बीच कुमार के सफर को दर्शाती है। इससे पहले अनिरुद्ध मित्रा की एक बेस्ट सेलर बुक 90 डेज आई थी, जो राजीव गांधी हत्या कांड की जांच की दिलचस्प प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित है और उस पर एक टीवी सीरियल द हंट ओटीटी पर लोकप्रिय हो गया है। अनिरुद्ध मित्रा एक अनुभवी पत्रकार और फिल्म निर्माता हैं।
देश के एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार और मशहूर पत्रिका में समाचार रिपोर्टिंग के अपने सफल कार्यकाल (1982-93) के दौरान अनिरुद्ध मित्रा ने बोफोर्स घोटाला, राजीव गांधी की हत्या, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ड्रग युद्ध, बीसीसीआई बैंक द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग, जिसके कारण उसे बंद करना पड़ा, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार, भारतीय मॉडल से जासूस बनी पामेला बोर्डेस के जीवन और समय, धर्मगुरु चंद्रास्वामी पर कई खोजी रिपोर्ट लिखी। उन्होंने 1994 में मुंबई में यूटीवी के साथ टेलीविजन ड्रामा सीरीज़ लिखना और बनाना शुरू किया और इंडोनेशिया के एक संस्थान में रहकर फिल्में लिखी और निर्मित भी कीं।
दूसरी तरफ नई पुस्तक के नायक प्रशांत कुमार ने माफियाओं से निपटने के लिए किस तरह माफिया टास्क फोर्स का गठन किया और किस तरह माफिया गिरोहों की पहचान का पूरा विवरण बताया है। उत्तर प्रदेश में मुठभेड़ की घटनाओं पर प्रशांत कुमार ने यह स्पष्ट किया है कि पुलिस कोई घात लगाए बैठी नहीं है कि गोली चलाओ और मार डालो। हमें हथियार दिए गए हैं, वे हमारे लिए कोई आभूषण नहीं हैं। अगर कोई हम पर गोली चलाएगा तो हम जवाबी कार्रवाई करेंगे। हमारे लोग भी मारे गए हैं। प्रशांत कुमार के कार्यकाल में धार्मिक स्थलों से एक लाख लाउडस्पीकर हटाने का संवेदनशील मुद्दा भी शामिल है। उन्होंने कहा कि यह धर्म-निरपेक्ष है, ऐसा नहीं है कि हमने किसी एक समुदाय या धर्म को निशाना बनाया है।I
इस किताब में प्रशांत कुमार ने यह भी बताया है कि 31 माफिया लीडर और उनके 69 सहयोगियों को अदालत से सजा दिलाने में सफलता मिली। कई को आजीवन कारावास मिला। वे जेलों में बंद पड़े हैं। सन्देश साफ है कि अब यहां माफिया की कोई जगह नहीं है। माफिया विरोधी अभियान में`इन करीब 4059 करोड़ रुपए की जब्त किए गए। करीब 14 हजार करोड़ की अवैध संपत्ति को जब्त किया गया और उसके लिए क़ानूनी कार्रवाई की गई।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि मोदी सरकार द्वारा संसद से पारित न्याय संहिता 2023 के तहत 429 अपराधियों पर क़ानूनी कार्रवाई की गई। इसलिए केवल उत्तर प्रदेश, बिहार ही नहीं सम्पूर्ण देश में अपराधियों पर नियंत्रण के लिए साहसी ईमानदार पुलिसकर्मी को सरकार और अदालत से पूरा सहयोग और न्याय मिलना जरुरी है। दुनिया का कोई देश अपराध मुक्त नहीं कहा जा सकता। भारत में प्रशांत कुमार अकेले नहीं हैं, उनसे पहले भी देश भर में कई अच्छे अधिकारी रहे और अब भी हैं। वह मूलतः सिवान (बिहार) के हैं। इसलिए बिहार और उत्तर प्रदेश में उनके अनुभवों और इस किताब से प्रेरणा लेकर शांति कानून व्यवस्था का लाभ सरकारों और समाज को लेना चाहिए। (लेखक आज समाज-इंडिया न्यूज के संपादकीय निदेशक हैं।)
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