Editorial Aaj Samaaj: अब ‘जंगलराज’ पर जद्दोजहद कितना जायज

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Editorial Aaj Samaaj: अब ‘जंगलराज’ पर जद्दोजहद कितना जायज

Editorial Aaj Samaaj | राजीव रंजन तिवारी | बिहार में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया आरंभ है। हर तरफ चुनावी शोर है। इस शोर में जब बात जंगलराज की होती है तो लोगों के कान खड़े हो जाते हैं। ज्यादातर लोग इसे नजरअंदाज करते हैं। बावजूद इसके जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा प्रभावशाली और जिम्मेदार शख्सियत कथित जंगलराज की याद दिलाकर डराने की कोशिश करता है तो लोग सोचने को विवश होते हैं। दिलचस्प यह है कि जंगलराज को चुनावी मुद्दा बनाने की नाकाम कोशिशें चल रही हैं। वजह स्पष्ट है कि जनता का ध्यान इधर नहीं है। खैर, बिहार के कथित जंगलराज की बात को थोड़ा विस्तार देते हैं और समझते हैं कि आखिर यह है क्या। इस पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है।

राजीव रंजन तिवारी, संपादक, आज समाज।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को बिहार के मुजफ्फरपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस और राजद पर बड़ा हमला बोला और कहा कि राजद के शासनकाल के दौरान कांग्रेस और राजद ने मिलकर कई कारनामे किए थे। मोदी ने उन कथित कारनामों को पांच शब्दों में बताया। उन्होंने कहा कि ये पांच शब्द कट्टा, क्रूरता, कटुता, कुशासन और करप्शन है। ये बिहार में जंगलराज की पहचान बन गई थी। उन्होंने पूछा कि जंगलराज वालों ने बिहार के लिए क्या किया है। मोदी ने कहा कि जहां कटुता बढ़ाने वाली राजद और कांग्रेस होती है, वहां समाज में बदलाव मुश्किल होता है। जहां कांग्रेस और राजद का कुशासन हो, वहां विकास का जिक्र नहीं हो सकता। जहां करप्शन हो वहां सामाजिक न्याय नहीं होता। राजद-कांग्रेस गरीबों का हक लूटने वाली है। इनके दौर में सिर्फ कुछ परिवार ही फलते-फूलते हैं। क्या ऐसे लोग कभी भी बिहार का भला कर सकते हैं?

इस संदर्भ में भाजपा के प्रवक्ता और अरवल से राजग प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे चर्चित नेता मनोज शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर मुहर लगाते हैं। मनोज शर्मा का कहना है कि याद कीजिए उस दौर को जब लोग सांझ ढले घरों से निकलने में डरते थे। रात की तो बात ही अलग थी। दिनदहाड़े अपराध होते थे और पूरे राज्य में भय और दहशत का माहौल रहता था। जबसे बिहार में राजग की सरकार है तब स्थितियां काफी बदल चुकी हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग डर के मारे कांप रहे हैं। उन्हें हिम्मत नहीं होती कि कोई अपराध कर सकें। कानून-व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है। हर तरफ विकास ही विकास दिख रहा है। मनोज शर्मा कहते हैं कि इस चुनाव में भी जनता ने राजग उम्मीदवारों को ही जीताने का फैसला किया है। बिहार में इस बार भी राजग की ही सरकार बनेगी। चाहे कोई कुछ कर ले।

लगभग 77 साल की उम्र में लगातार स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे राजद प्रमुख लालू प्रसाद अब सक्रिय राजनीति के केंद्र में नहीं हैं, लेकिन वे पार्टी के शुभंकर बने हुए हैं, जो राजद को बचाए भी रखते हैं और उस पर बोझ भी डालते हैं। दो दशक से अधिक बीत चुके हैं जब लालू का शासन समाप्त हुआ था, लेकिन जंगलराज का आरोप आज भी राजद का पीछा नहीं छोड़ रहा। जंगलराज शब्द की उत्पत्ति के कई क़िस्से हैं। एक संस्करण में लालू प्रसाद खुद अपनी आत्मकथा में बताते हैं कि यह शब्द तब आया जब उन्होंने पटना गोल्फ कोर्स को शेरों के लिए सफारी पार्क में बदलने की कोशिश की थी। दूसरा और शायद ज्यादा लोकप्रिय संस्करण यह है कि यह शब्द पहली बार अगस्त 1997 में पटना उच्च न्यायालय द्वारा इस्तेमाल किया गया था, जब अदालत ने राज्य में खराब नागरिक परिस्थितियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि बिहार में जंगलराज है।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने चारा घोटाले के आरोपों के बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया था। अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के वंशवाद के विरोध से करने वाले लालू प्रसाद ने अंततः अपना ही एक वंश स्थापित किया। उन्होंने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव पर तरजीह देते हुए अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना। तेजस्वी का राजनीति में प्रवेश क्रिकेट में अपना करियर बनाने की कोशिश के बाद हुआ। 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव पहली बार था जब तेजस्वी ने स्वतंत्र रूप से अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने जंगलराज की आलोचना से पार्टी को दूर करने के लिए अभियान के पोस्टरों से लालू की तस्वीरें भी हटा दी थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैलियों में तेजस्वी को जंगल राज का युवराज कहा था।

प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जिस जंगलराज की बात हो रही है, वह महागठबंधन के नेताओं को पसंद नहीं है। तर्क दिया जाता है कि राजग से जुड़े लोग फर्जी बातें करके आम जनता को गुमराह करने की कोशिश में जुटे हैं। राजद की तेजतर्रार राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका भारती कहती हैं कि पिछले तकरीबन बीस वर्षों से बिहार में नीतीश कुमार की सरकार है। 11 वर्षों से दिल्ली यानी केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है। फिर जंगलराज की बात कहना न सिर्फ बेमानी है बल्कि आम जनता को मुद्दों से भटकाने की कोशिश है। प्रियंका भारती कहती हैं कि इस बार का बिहार चुनाव बहुत कुछ परिवर्तन करने वाला है। लगभग पूरी केंद्र सरकार बिहार में प्रचार अभियान में जुटी है। लेकिन जनता को सब समझ में आ रहा है। प्रियंका का कहना है कि राजग नेताओं का फर्जी प्रलाप जनता को समझ में आ चुका है। अब वह गुमराह होने वाली नहीं है। यहां महागठबंधन की सरकार बनेगी और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राजद मुख्य रूप से एक मुस्लिम-यादव (एम-वाई) की पार्टी की अपनी पहचान से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही है। तेजस्वी यादव ने इसे बाप (बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी और पुअर) पार्टी के रूप में फिर से परिभाषित करने की कोशिश की है। इस चुनाव में राजद युवा तेजस्वी यादव और 74 वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच एक अंतर बनाने की कोशिश कर रही है। सवाल यह है कि क्या राजद के ये छोटे-छोटे कदम उसे चुनावी परिदृश्य में अपनी स्थिति फिर से हासिल करने में मदद करेंगे। समझा जा रहा है कि तेजस्वी यादव का यह प्रयास राजग के जंगलराज वाली बात पर भारी पड़ सकता है। तेजस्वी की कोशिशों ने जंगलराज जैसे मुद्दे को सियासी परिदृश्य से गायब कर दिया है। भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेता जंगलराज की बात करके चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसका असर बहुत अधिक नहीं है।

राजग के जंगलराज की चर्चा के बीच ग्रामीण बिहार में प्रशांत किशोर एक नई धुरी बने हुए हैं। वो ऐसे शख्स बने हुए हैं, जिसकी परीक्षा अभी नहीं हुई है और जो कभी भी बदल सकता है। लिहाजा एक अपरीक्षित शख्स पर मतदाता अपना वोट बर्बाद करने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर, राज्य के शहरों में जन सुराज पार्टी के प्रमुख के विचार को कुछ सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। खासतौर पर उन लोगों के बीच जो एनडीए से परे विकल्प तलाश रहे हैं, लेकिन जो महागठबंधन को वोट देने में असहज हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के चमकीले पीले पोस्टर बिहार के परिदृश्य पर छाए हुए हैं, जो लोगों से उनके बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा और नौकरियों के लिए वोट करने का आग्रह कर रहे हैं। पार्टी का नारा है गरीबी से निकलने का रास्ता, हर घर स्कूल का बस्ता। कई लोगों के साथ गूंजता है। लेकिन संदेशवाहक, न कि संदेश, परीक्षा के दायरे में है।

दरअसल, अभी किशोर परीक्षण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। लोग उन पर अपना वोट बर्बाद करने को तैयार नहीं हैं। कई लोग अगले विधानसभा चुनाव तक इंतजार करना चाहते हैं। देखना चाहते हैं कि क्या किशोर और उनकी पार्टी अगले चुनाव तक प्रासंगिक बने रहते हैं? अभी तो हाल कुछ ऐसा है कि लोगों में जेएसपी के चुनाव चिन्ह और उम्मीदवारों के नाम याद रखने की क्षमता भी कम दिखाई पड़ती है। इसके विपरीत, किशोर का दावा है कि कई दशकों में पहली बार, बिहार में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, हालांकि ग्रामीण मतदाता पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं, उनका कहना है कि यह मुकाबला द्विध्रुवीय ही है। दरअसल, मतदाता की राय की प्रबलता उसकी अपनी विचारधारा पर निर्भर करती है। सत्तारूढ़ एनडीए और महागठबंधन के समर्पित मतदाताओं की राय अधिक मजबूत है।

खैर, बात जंगलराज की हो रही थी। इसलिए यह स्पष्ट करना जरूरी है कि बिहार में कथित रूप से अपराध व भ्रष्टाचार अब चरम पर है। हाल ही में हुई हत्याओं पर राजद नेता तेजस्वी यादव ने सवाल खड़ा किया है। तेजस्वी ने पूछा कि इसे क्या कहते हैं। राज्य के हर जिले में अमूमन रोज ही एकाध हत्याएं हो रही हैं। इससे साबित हो रहा है कि बिहार की कानून व्यवस्था चरमराई हुई है। हालांकि राजग से जुड़े लोग नीतीश कुमार के राज को सुशासन का राज करार दे रहे हैं, लेकिन स्थितियां अनुकूल नहीं है। सीवान में एक एएसआई की गला रेतकर हत्या कर दी गई। मोकामा में राजद समर्थक की हत्या हुई। इस तरह लोगों में भय और दहशत का आलम है। लोग सोच रहे हैं कि आखिर इससे कैसे निजात मिलेगा। इसके लिए इस चुनाव को बड़ा मौका माना जा रहा है। बदलाव होगा कि नहीं, यह तो 14 नवंबर को ही पता चलेगा, लेकिन लोगों में मौजूदा हालात से डर है। (लेखक आज समाज के संपादक हैं।) 

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