Editorial Aaj Samaaj: रायसीना की सत्ता के लिए लालू-राहुल का रस्सा और कुल्हाड़ी आत्मघाती

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Editorial Aaj Samaaj: रायसीना की सत्ता के लिए लालू-राहुल का रस्सा और कुल्हाड़ी आत्मघाती
Editorial Aaj Samaaj: रायसीना की सत्ता के लिए लालू-राहुल का रस्सा और कुल्हाड़ी आत्मघाती

Editorial Aaj Samaaj | आलोक मेहता | राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का एक ही लक्ष्य है। रायसीना हिल्स यानी भारत के सिंहासन पर कब्जा। लालू प्रसाद यादव की 2019 में प्रकाशित आत्म कथा  गोपालगंज से रायसीना’ इसी बात का संकेत था। इस किताब की प्रस्तावना कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 13 सितम्बर 2018 को ही लिखकर भेज दी थी।

आलोक मेहता, संपादकीय निदेशक, आज समाज-इंडिया न्यूज।

शायद उस समय दोनों को यह ग़लतफ़हमी हो गई थी कि 2019 के लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी को पर्याप्त बहुमत नहीं मिलेगा और फिर लालू प्रसाद यादव के समर्थन वाले कांग्रेस गठबंधन की सरकार राहुल गांधी के नेतृत्व में बन जाएगी। लेकिन मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह 2019 और 2024 में भी ये हकीकत में नहीं बदल सके। इसी आत्म कथा में लालू प्रसाद यादव ने अपने बेटे तेजस्वी यादव पर पूरा चैप्टर लिखकर अपने उत्तराधिकारी की तरह पेश कर दिया था।

अब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू के फार्मूले से तेजस्वी यादव ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने और खुद मुख्यमंत्री बनने की पतंग उड़ाई है। लालू प्रसाद यादव के पुराने फार्मूले पर ही तेजस्वी यादव और राहुल गांधी तथा इंडिया गठबंधन की उनकी पार्टियां घोटालों की जांच करने वाली केंद्रीय एजेंसियों सीबीआई, ईडी और चुनाव आयोग पर अधिकाधिक हमले कर जनता को भ्रमित करने में लगे हैं, ताकि चुनाव व्यवस्था की विश्वसनीयता ही खत्म हो जाए और पराजय के बाद वे अन्य तरीकों से असंतोष तथा अराजकता पैदा कर सकें।

असल में 1990 और 1995 के बिहार विधान सभा चुनावों में कांग्रेस की दुर्दशा के कारण लालू प्रसाद यादव के जनता दल (विभाजन के बाद राष्ट्रीय जनता दल नाम) को भारी बहुमत मिलने से उनकी महत्वाकांक्षा शिखर पर पहुंच गई थी। लालू अपने को केंद्र में गठबंधन के प्रधानमंत्री के रुप में प्रस्तुत करने लगे थे। अपनी सभाओं में लालू प्रसाद यादव अपनी जाति और मुस्लिम वोट की ताकत दिखाते हुए सार्वजनिक सभाओं में घोषणा करने लगे थे कि कोई माई का लाल अब आपको दिल्ली पर कब्ज़ा करने से नहीं रोक सकता।

दूसरी तरफ कभी राजीव गांधी के कैबिनेट सचिव रहे ईमानदार प्रशासक दक्षिण भारतीय टीएन सेशन को नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार ने चुनाव नियुक्त कर रखा था। वह पहले की तरह चुनावों में धांधली रोकने के लिए हर संभव कड़े कदम उठा रहे थे। इन क़दमों से बौखलाए मुख्यमंत्री पद पर बैठे लालू प्रसाद यादव ने अपने सुबह के दरबार में समर्थकों के बीच कहा था कि सेशन पगला सांड जैसा काम कर रहा है, उसे मालूम नहीं है कि हम रस्सा बांध के खटाल (जानवरों का बाड़ा) में बंद कर सकते हैं।

बाद में केंद्र में देवेगौड़ा और कांग्रेस की सरकार में भी चारा कांड की जांच तेज होने पर लालू प्रसाद यादव ने सीधे धमकियों का इस्तेमाल किया था। यह बात स्वयं लालू प्रसाद यादव ने 2008 में एक टेलीविजन इंटरव्यू में बताई थी। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा से हुई मुलाकात का विवरण देते हुए बताया था कि मैं 7 रेस कोर्स (पीएम निवास) गया और उनसे कहा कि आप मुझे क्यों लटका रहे हो? मैं बिहार में कैसे काम करूंगा? फिर हम दोनों में तीखी नोक झोंक हुई और मैं बहुत उत्तेजित हो गया।

बहुत बुरा सुनाया। वह रोने लगे और फेंट (मूर्छित से) हो गए। फिर एचडी देवेगौड़ा को लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के दबाव में हटना पड़ा और इन्दर कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बन गए। सीबीआई अपनी जांच तेज कर रही थी। सीबीआई के निदेशक जोगिन्दर सिंह थे। उन्होंने मेरे जैसे पत्रकारों को भी बताया कि लालू प्रसाद यादव के कारण गुजराल साहब ने भी 900 करोड़ रूपये के चारा घोटाले की जांच बहुत धीमे करने के निर्देश दिए थे।

यह पृष्ठभूमि यह ध्यान दिलाती है कि इसी फार्मूले से राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जांच एजेंसियों और गठबंधन की सरकार पर दबाव बनाने के लिए हर संभव अभियान चला रहे हैं। केंद्र में सत्ता उखाड़ने-बनाने के प्रदर्शन के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन को बिहार की सड़कों पर घुमाया गया। बिहार के लोग इस बात को हास्यास्पद बता रहे हैं कि स्टालिन से प्रभावित होकर क्या बिहार प्रदेश का कोई मतदाता वोट डाल सकता है?

यही नहीं कांग्रेस पार्टी के बिहार के ही नहीं राष्ट्रीय स्तर के पुराने कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के सबसे विश्वस्त दक्षिण भारतीय सहयोगी केसी वेणुगोपाल के हाथों में सारे निर्णय को लेकर भी परेशान हैं। तमिलनाडु और कर्नाटक में हिंदी और उत्तर भारतियों के विरुद्ध डीएमके और कांग्रेस के नेता आए दिन बयानबाजी करते रहते हैं। यही नहीं, बिहार में केसी वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खरगे, जयराम रमेश पर राहुल गांधी की निर्भरता से इंदिरा-राजीव युग के कांग्रेसी परेशान होकर नए रास्ते खोज रहे हैं।

राजद नेता तेजस्वी यादव कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के अभियान के मुकाबले के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल (यू), भारतीय जनता पार्टी, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी लालू प्रसाद यादव राज के दौरान अपराधियों माफिया से प्रदेश में रहे आतंक की याद दिला रहे हैं।  इस बात पर भी चिंता है कि राहुल-तेजस्वी के चुनावी विजय के दावों के कारण अपराधी अभी से ह्त्या, चोरी, अपहरण की गतिविधि कर रहे हैं, ताकि नीतीश सरकार को बदनाम किया जा सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माताजी को गालियां दी जाने, लालू-तेजस्वी के यादव मुस्लिम ईसाई समीकरण से भावनात्मक मुद्दे अंदर ही अंदर गर्म हो रहे हैं। तेजस्वी की पत्नी, स्टालिन और सोनिया गांधी के क्रिश्चियन कनेक्शन पर ध्यान दिलाया जा रहा है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भाजपा तथा नीतीश सरकार की कल्याण और विकास योजनाओं से मिले लाभ और महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के प्रयासों को चुनावी अभियान में महत्व दे रहे हैं।

बहरहाल, कह सकते हैं कि बिहार के सियासी मिजाज को समझना सबके वश की बात नहीं। फिलहाल वहां लालू-राहुल जिस तरह का अभियान चला रहे हैं, उससे वहां की जनता प्रभावित होने वाली नहीं है। पिछले दिनों राजग-भाजपा के बिहार बंद का पूर्ण सफल होना इस बात का द्योतक है कि यहां के लोग लालू-राहुल की बातों में आने वाले नहीं हैं। बिहार में एनडीए की पकड़ काफी अच्छी बताई जा रही है। खैर, देखते हैं कि विधानसभा चुनाव में होता क्या है?

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