Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | अमेरिका और भारत के बीच व्यापार की दुनिया हमेशा से ही उतार-चढ़ाव वाली रही है। कभी दोस्ती निभाने की बात, तो कभी सख्ती दिखाने का खेल। सितंबर 2025 आते-आते ये रिश्ता फिर से सुर्खियों में आ गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अगस्त में भारत पर 25 फीसदी का अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। ये कुल मिलाकर 50 फीसदी हो गया। वजह, भारत का रूस से सस्ता तेल खरीदना। ट्रंप को ये नागवार गुजरा, क्योंकि वो रूस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश में थे। लेकिन अब लगता है हवा का रुख बदल रहा है।

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि अगले 8-10 हफ्तों में ये टैरिफ 10-15 फीसदी तक कम हो सकता है। दोनों देशों के प्रतिनिधि दिल्ली में मिले, बातें हुईं और सकारात्मक संकेत मिले। सवाल ये है कि क्या ट्रंप अपना रुख बार-बार बदलते रहेंगे। क्या भारत अमेरिका की हर शर्त मानेगा, या अपने हितों को पहले रखेगा। आइए, इसकी पड़ताल करते हैं।
सबसे पहले समझते हैं कि ये टैरिफ क्या बला है। टैरिफ का मतलब आयात पर लगने वाला कर। अमेरिका कहता है कि भारत उसके सामान पर ज्यादा टैक्स लगाता है, तो वह भी वैसा ही करेगा। ट्रंप का फॉर्मूला है रिसिप्रोकल टैरिफ यानी तुम जितना लगाओ, हम भी उतना ही थोपेंगे। असल में यह सिर्फ व्यापार का मुद्दा है ही नहीं। डोनाल्ड ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत को दबाव में लाना चाहते थे। भारत ने कहा कि भाई, हमें सस्ता तेल चाहिए।
ऊर्जा सुरक्षा हमारा हक है। रूस से तेल लेना हमारी जरूरत है, क्योंकि हम महंगाई से जूझ रहे हैं। ट्रंप ने गुस्से में 27 अगस्त को तानाशाही टाइप का एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी कर दिया। नतीजा, भारत के निर्यात पर असर पड़ा। दरअसल, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा बाजार है। भारत ने 2024 में वहां 86.5 अरब डॉलर का सामान भेजा था। अब टैरिफ बढ़ने से एक्सपोर्टर्स परेशान हैं। ज्वेलरी, टेक्सटाइल और फार्मा जैसी इंडस्ट्रीज को बड़ा झटका लगा है।
लेकिन डोनाल्ड ट्रंप का स्टाइल भी तो यही है। कभी सख्ती तो कभी नरमी। यानी यूटर्न लेना उनका शगल है। याद कीजिए 2019 का उनका भारत दौरा। तब भी व्यापार घाटे की शिकायत की थी। कहा था कि भारत टैरिफ किंग है। लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले, तो गले लग गए। अब 2025 में भी एकबार वैसा ही लग रहा। 16 सितंबर की रात को ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया।
जन्मदिन की बधाई दी। साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी बात की। ये पहली कॉल थी जून के बाद। इससे पहले टेंशन थी। लेकिन अब ट्रंप कह रहे हैं कि ट्रेड डील में कोई दिक्कत नहीं है। अमेरिकी टीम दिल्ली पहुंची। कॉमर्स सेक्रेटरी सुनील बर्थवाल ने कहा कि दोनों तरफ का पॉजिटिव माइंडसेट है। जी-7 मीटिंग में भी अमेरिका ने सहयोगियों से कहा कि चीन और भारत पर 100 फीसदी तक टैरिफ लगाओ, रूसी तेल खरीदने पर। लेकिन भारत के मामले में यह थोड़ा सॉफ्ट हो रहा। वजह स्पष्ट है, अमेरिका को भारत की जरूरत है। क्वाड, इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटजी में भारत पार्टनर है। चीन को काउंटर करने के लिए।
यूं कहें कि अब बातचीत का रास्ता भी बनता दिख रहा है। दिल्ली में अमेरिकी डेलिगेशन आया। दोनों देशों ने बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट (बीटीए) पर पर ध्यान केंद्रीत किया। भारत कहता है कि टैरिफ कम करो, फिर सौदा होगा। अमेरिका चाहता है बाजार एक्सेस। खासकर डेयरी और कृषि उत्पाद में। जबकि भारत के किसान और डेयरी फार्मर्स इसका विरोध करेंगे। हमारा बाजार संवेदनशील है। इससे लाखों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है। इस बाबत ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) का कहना है कि जब तक 25 फीसदी पेनल टैरिफ न हटे, तबतक ब्रेकथ्रू मुश्किल है। लेकिन सीईए नागेश्वरन का अनुमान सकारात्मक देखा गया है। वो कहते हैं कि पर्सनल फीलिंग से 10-15 फीसदी रेट आंखों में है। अगले दो महीने में सॉल्यूशन संभव है। जबकि डोनाल्ड ट्रंप का ट्रैकर दिखाता है कि वो रिसिप्रोकल टैरिफ बढ़ाने की धमकी देते हुए डील के लिए लीवरेज बनाते रहते हैं।
ट्रंप का भारत के प्रति रुख बदलते रहना कोई नई बात नहीं। यह उनका बिजनेस बैकग्राउंड है। वे डीलमेकर है। कभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स के माध्यम से धमकाते हैं तो कभी फोन करके से प्यार करते हैं। 2024 का चुनाव जीतने के बाद लौटे तो उनका पहला टारगेट चीन था। लेकिन भारत पर भी नजर पड़ गई। क्योंकि भारत अमेरिका का सबसे तेज बढ़ता ट्रेड पार्टनर है। 2024 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 190 अरब डॉलर के करीब रहा।
लेकिन घाटा अमेरिका का -30 अरब डॉलर रहा। डोनाल्ड ट्रंप इसे ही संतुलित करना चाहते हैं। लेकिन भारत कहता कि हम विकासशील देश हैं। हमें समय दो। फार्मा, आईटी में हम मजबूत, लेकिन एग्री में प्रोटेक्शन चाहिए। डोनाल्ड ट्रंप का रुख बदलने का कारण, घरेलू प्रेशर बताया जा रहा है। अमेरिकी किसान और बिजनेस मैन भारत का बाजार चाहते। साथ ही, ग्लोबल इकोनॉमी में विस्तार भी। टैरिफ वॉर से महंगाई बढ़ेगी। डोनाल्ड ट्रंप को यह पसंद नहीं। इसलिए यूके विजिट के दौरान ट्रेड एनाउंसमेंट्स हुए। भारत के साथ भी वैसा ही।
भारत का स्टैंड हमेशा से स्पष्ट रहा है। भारत पहले अपना हित देखता है। कोई भी यही करेगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने साफ कहा है कि ऊर्जा सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं होगा। रूस से तेल लेना जरूरी है। यूक्रेन युद्ध ने ग्लोबल एनर्जी प्राइसेज बढ़ा दिए है। भारत ने 40 फीसदी तेल रूस से लिया। सस्ता मिला, तो महंगाई कंट्रोल हुई। अमेरिका कहे, तो हम क्यों छोड़ें। भावी रणनीति के तहत विदेश मंत्री जयशंकर यूएनजीए में रुबियो से मिलेंगे।
वहां भी यह मुद्दा उठेगा। लेकिन भारत डिप्लोमेसी में माहिर है। इसकी मल्टी-अलाइनमेंट पॉलिसी सब पर भारी है। न रूस से दुश्मनी, न अमेरिका से। ट्रेड डील में भारत मानेगा या नहीं, शायद संभव नहीं। टैरिफ कम करने पर हामी हो सकती है, लेकिन डेयरी-एग्री पर समझौता असंभव जैसा प्रतीत हो रहा है। हमारा फोकस मेक इन इंडिया, एक्सपोर्ट बूस्ट करने पर है। अगर 10-15 फीसदी टैरिफ हो गया, तो निर्यात 10-15 फीसदी बढ़ सकता।
अब संभावित रास्ता पर नजर दौड़ाते हैं। फिलहाल बातचीत जारी है। अमेरिकी टीम के इंटेंसिफाई एफर्ट्स का भारत ने अभिनंदन किया है। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप की अनप्रेडिक्टेबल नेचर की चिंता है। वो कभी रैंट कर देते। लेकिन सीईए का अनुमान सही साबित हो सकता है। 8-10 हफ्तों में डील की संभावना है। अब विचारणीय है कि सौदे में क्या होगा। रिसिप्रोकल टैरिफ कम, कुछ सेक्टर्स में एक्सेस। भारत को फायदा आईटी, फार्मा में हो सकता है। अमेरिका को मैन्युफैक्चरिंग में लाभ की उम्मीद है। साथ ही, इन्वेस्टमेंट।
ट्रंप कहते हैं कि अमेरिका फर्स्ट, लेकिन भारत को इग्नोर नहीं कर सकते। इंडियन टूरिस्ट्स यूएस में 15 फीसदी कम आए अगस्त में। जियोपॉलिटिकल टेंशन से। डील से ये रिकवर होगा। ट्रंप का रुख बदलते रहना राजनीति का हिस्सा है। वो वोट बैंक के लिए सख्त दिखते है। लेकिन निजी तौर पर एक डीलर की भांति हैं। दुनिया देख रही है कि मोदी-ट्रंप की केमिस्ट्री अच्छी है। 2017 ह्यूस्टन में हाउडी मोदी, 2020 के नमस्ते ट्रंप। अब 2025 में नया चैप्टर। भारत मानेगा या नहीं अथवा अपने हित तवज्जो देगा। क्योंकि हम मजबूत हो रहे। जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी के करीब है। इसलिए अमेरिका को हमारी जरूरत।
निष्कर्ष में ये कहा जा सकता है कि ये टैरिफ ड्रामा सौदे का रास्ता साफ कर रहा। दोनों देश जीत सकते हैं। ट्रंप अगर नरम रहे, तो ट्रेड वॉल्यूम 200 अरब के पार हो सकता है। भारत को ऊर्जा, अमेरिका को बाजार। लेकिन सतर्क रहना पड़ेगा। ट्रंप की अनप्रेडिक्टेबिलिटी। फिर भी, उम्मीद है। दिल्ली की मीटिंग्स से सिग्नल पॉजिटिव है। अगले महीनों में खबर आएगी। भारत-अमेरिका रिश्ता मजबूत होगा। व्यापार से आगे, स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)
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