Editorial Aaj Samaaj : पहले दादा, फिर पिता और अब बेटा

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Editorial Aaj Samaaj : पहले दादा, फिर पिता और अब बेटा
Editorial Aaj Samaaj : पहले दादा, फिर पिता और अब बेटा

Editorial Aaj Samaaj | राजीव रंजन तिवारी | ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं।’ यह एक प्रसिद्ध चौपाई है, जो गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित महान काव्यग्रंथ श्री रामचरितमानस में उद्धृत है। इसका अर्थ है कि एक समर्थ, शक्तिशाली, या योग्य व्यक्ति को कोई दोष नहीं लगता। यह चौपाई समझाती है कि जैसे सूर्य, अग्नि और गंगा नदी अपनी प्रकृति के कारण किसी भी दोष से अछूते रहते हैं, उसी प्रकार समर्थ व्यक्ति के कार्यों या गुणों पर दोषारोपण नहीं किया जा सकता। जी, बिल्कुल सही समझा आपने। देश की सियासत में भले परिवारवाद के मुद्दे पर शोर मचता रहता हो, लेकिन सिंधिया परिवार (Scindia family) के बारे में कोई कुछ भी नहीं कह सकता। महानआर्यमन सिंधिया अब मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के अध्यक्ष बन गए हैं। वे इस पद पर पहुंचने वाले सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं। उनसे पहले उनके पिता ज्योतिरादित्य सिंधिया और दादा माधवराव सिंधिया भी एमपीसीए के अध्यक्ष रह चुके हैं।

Editorial Aaj Samaaj : पहले दादा, फिर पिता और अब बेटा
राजीव रंजन तिवारी, संपादक, आज समाज।

देश में क्रिकेट और राजघरानों का बरसों से गहरा रिश्ता रहा है। दो सितंबर को ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महानआर्यमन सिंधिया (29) मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के अध्यक्ष चुने गए। खास बात यह रही कि उनका चुनाव निर्विरोध हुआ और वे इस पद पर पहुंचने वाले सबसे कम उम्र के शख्स बन गए। महानआर्यमन सिंधिया, सिंधिया परिवार के तीसरे सदस्य हैं जो इस कुर्सी तक पहुंचे हैं। उनसे पहले उनके पिता ज्योतिरादित्य और दादा माधवराव सिंधिया एमसपीसीए के अध्यक्ष रह चुके हैं। बाद में माधवराव सिंधिया भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के प्रमुख भी बने थे। महानआर्यमन के करीबी रिश्तेदारों का भी क्रिकेट से पुराना नाता रहा है।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन सिंधिया ने मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल ली है। महानआर्यमन पढ़ाई में भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई दून स्कूल, देहरादून से 2008 से 2014 तक की, जहां से उनकी बेसिक एजुकेशन हुई। इसके बाद वो विदेश चले गए और येल यूनिवर्सिटी से 2019 में पॉलिटिकल साइंस एंड गवर्नमेंट में बैचलर डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में समर स्कूल में इंटरनेशनल रिलेशंस और अफेयर्स की पढ़ाई भी की। महानआर्यमन सिंधिया ने नवंबर 2014 तक भूटान के ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस सेंटर में इंटर्न किया। इसके बाद नवंबर 2014 से जनवरी 2015 तक नई दिल्ली में वित्त मंत्रालय में उन्‍होंने इंटर्नशिप की। अप्रैल 2015 से जुलाई 2015 तक उन्‍होंने लंदन में क्रिस्टीज में काम किया। जून 2016 से अगस्त 2016 तक नई दिल्ली में यूआईडीएआई में भी काम किया।

जून 2017 से अगस्त 2017 तक सॉफ्टबैंक और जून 2018 से अगस्त 2018 तक न्यूयॉर्क में मैक्रो एडवाइजरी पार्टनर्स में काम किया। सितंबर 2019 से सितंबर 2021 तक मुंबई में वह बीसीजी में असोसिएट रहे और इसके बाद 2021 से 2024 तक अंडरसाउंड्स एंटरटेनमेंट और जय विलास पैलेस के डायरेक्टर भी बने। 2022 में उन्होंने कुबेर एआई और 2024 में इथारा एआई बनाया। महानआर्यमन का परिवार 4000 करोड़ के जय विलास पैलेस में रहता है। इस पैलेस में तकरीबन 400 से अधिक कमरे हैं और यह ग्‍वालियर के बीचो बीच करीब 15 एकड़ में फैला है। हालांकि, उनकी व्यक्तिगत नेटवर्थ को लेकर कोई आधिकारिक या विश्वसनीय आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के हलफनामों में पारिवारिक संपत्तियों का जिक्र होता है, लेकिन महाआर्यमन की संपत्तियों का कोई अलग से रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।

ग्वालियर के पूर्व शाही घराने से आने वाला सिंधिया परिवार 1982 से एमपीसीए की कमान में अहम रहा है, जब माधवराव सिंधिया अध्यक्ष बने थे। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2006 से 2013-14 तक एसोसिएशन की बागडोर संभाली। उन्होंने उस वक्त इस्तीफा दिया जब जस्टिस आर.एम. लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू होने लगीं, जिनका मकसद खेल संगठनों से नेताओं को दूर रखना था। सवाल यह है कि सिंधिया परिवार, जिसने महानआर्यमन से पहले तीन पीढ़ियों तक मध्य प्रदेश की राजनीति में भी बड़ी भूमिका निभाई, पिछले चार दशकों से राज्य के क्रिकेट मामलों पर अपनी पकड़ कैसे बनाए रख सका? जवाब उनके इतिहास में छिपा है. जैसे उन्होंने 1947 के बाद भारतीय राजनीति में अपना रास्ता निकाला और 18वीं सदी से ग्वालियर रियासत के दौर में सियासत को बारीकी से संभाला, वैसे ही एमपी में क्रिकेट प्रशासन को भी उसी कौशल से चलाया, बस पैमाना छोटा था।

बात वर्ष 1982 की है, जब उषा देवी होल्कर (इंदौर के आखिरी शासक यशवंतराव होल्कर की बेटी) के पति सतीश मल्होत्रा ने एमपीसीए के अध्यक्ष का पद छोड़ा था। तब तक क्रिकेट प्रशासन पर इंदौर के शाही घराने यानी होल्करों का दबदबा था। इसी दौरान एमएम जगदाले और एडब्ल्यू कनमडिकर जैसे वरिष्ठ क्रिकेटर और प्रशासक जो एमपीसीए मामलों में अहम भूमिका रखते थे, वे महानआर्यमन के दादा यानी माधवराव सिंधिया से मिले और उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए कहा। यहीं से क्रिकेट का नियंत्रण इंदौर से स्थानांतरित होकर ग्वालियर चला गया। यह मध्य प्रदेश की दूसरी बड़ी मराठा रियासत थी। माधवराव की अध्यक्षता में एमपीसीए को नई पहचान और मजबूती मिली और वह राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों में अलग जगह बनाने लगा। वे 2001 में अपनी मौत तक इस पद पर बने रहे। उनके बाद अध्यक्ष पद गया उनके करीबी कांग्रेसी नेता श्रवण भाई पटेल के पास। वे जबलपुर के बीड़ी कारोबारी थे, खुद भी रणजी खिलाड़ी रह चुके थे और राज्य मंत्री भी थे।

पटेल 2006 तक अध्यक्ष बने रहे। उसके बाद क्रिकेट प्रशासकों के एक ग्रुप, जिसमें संजय जगदाले, कांग्रेसी नेता महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और सुबोध सक्सेना शामिल थे, ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को एमपीसीए अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा। मध्य प्रदेश के क्रिकेट जानकारों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, जो खुद खेलों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं मगर उनका राजनैतिक रूप से सिंधिया परिवार से बेहतर रिश्ता नहीं था, उन्होंने भी इस प्रस्ताव का पूरा समर्थन किया। ज्योतिरादित्य के कार्यकाल की पहचान ग्वालियर में एक और क्रिकेट स्टेडियम के काम की शुरुआत रही। इसी दौरान उन्हें कड़ी चुनौती मिली भाजपा के दिग्गज कैलाश विजयवर्गीय से। क्रिकेट को जानने और समझने वालों का कहना है कि सिंधिया खेमे के ही किसी शख्स ने विजयवर्गीय को यकीन दिला दिया था कि वे एमपीसीए अध्यक्ष की कुर्सी छीन सकते हैं।

नतीजा यह ‌निकला कि एमपीसीए अध्यक्ष पद के लिए 2010 और 2012 में दो चुनाव हुए, जिनमें कैलाश विजयवर्गीय हार गए, जबकि उस वक्त राज्य में बीजेपी की सरकार थी और ज्योतिरादित्य कांग्रेस में थे। ज्योतिरादित्य ने 2013-14 में इस्तीफा दे दिया और संजय जगदाले ने कमान संभाली। 2019 में जब लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू हो चुकी थीं, तब फैसला लिया गया कि अभिलाष खांडेकर को एमपीसीए अध्यक्ष बनाया जाए। खांडेकर पत्रकार थे, खेलों में उनकी खास रुचि थी और वे सिंधिया परिवार को भी अच्छे से जानते थे। उन्हें पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के करीबी के तौर पर भी देखा जाता था। दिलचस्प बात यह थी कि जब तक महाजन स‌क्रिय थीं तब तक विजयवर्गीय और महाजन, इंदौर भाजपा राजनीति के दो ध्रुव माने जाते थे।

जैसी उम्मीद थी कि ज्योतिरादित्य और इंदौर में प्यार से ताई कहलाई जाने वाली सुमित्रा महाजन एक साथ आए और खांडेकर का समर्थन किया। इससे किसी और खासकर विजयवर्गीय के उम्मीदवारों, की राह अपने आप बंद हो गई। खांडेकर ने अपने कार्यकाल में कई उपलब्धियां हासिल कीं। उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि खांडेकर के लिए सबसे बड़ा पल वह था जब मध्य प्रदेश ने 2022 में पहली बार रणजी ट्रॉफी जीती। इसके अलावा ग्वालियर में राज्य का दूसरा इंटरनेशनल स्टेडियम बनाया गया और बीसीसीआई ने एमपीसीए को देश का बेस्ट क्रिकेट एसोसिएशन चुना। इसी दौरान, जब खांडेकर का दूसरा कार्यकाल चल रहा था तब महानआर्यमन को आगे की भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा था। 2024 में शुरू हुई एमपी क्रिकेट लीग, जिसके मुखिया महानआर्यमन थे और जिसमें आठ पुरुष और अब पांच महिला टीमें खेल रही हैं, उनका लॉन्च प्लेटफॉर्म बना।

पिछले साल और 2025 में इस लीग ने सफल टूर्नामेंट आयोजित किए। अंदरखाने यह भी कहा गया कि महानआर्यमन की लंबे समय से चर्चा में रही राजनीति में एंट्री, एमपीसीए अध्यक्ष बनने से किस तरह प्रभावित होगी, ख़ासकर नए नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस ऐक्ट को देखते हुए। महानआर्यमन की ताजपोशी पर न तो विजयवर्गीय और न ही किसी और तरफ से कोई विरोध सामने आया। तीन सितंबर को अखबारों में बड़े-बड़े इश्तेहार छपे, यहां तक कि विजयवर्गीय के करीबी बीजेपी नेताओं ने भी महानआर्यमन को बधाई भी दी। साफ था कि दूसरी तरफ को भी साथ मिला लिया गया है। अध्यक्ष पद संभालने के बाद महानआर्यमन ने कहा है कि मैं चाहता हूं कि गांव-गांव से प्रतिभा को तलाश कर क्रिकेट में लाऊं और ज्यादा से ज्यादा इंटरनेशनल मैच मध्य प्रदेश में हों।

बहरहाल, अब यह सवाल पूछा जाना लगा है कि दादा माधव राव सिंधिया, पिता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद महानआर्यमन सिंधिया का क्रिकेट की दुनिया पदार्पण कितना प्रभावशाली रहेगा। जवाब भी लोग खुद ही दे रहे हैं। कहते हैं कि महानआर्यमन सफल पारी खेलेंगे। वजह प्रभाव की है। प्रभावशाली व्यक्ति में कभी किसी को कोई दोष नहीं दिखता। वैसे भी सियासत में सबकुछ चलता है। इसके लिए सभी लोग तैयार भी हैं। देखते हैं होता क्या है। (लेखक आज समाज के संपादक हैं।) 

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