Chandigarh News: पंजाबी फिल्मों के फेस्टिवल की गूंज लिए रहेगा लास एंजिल्स

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Chandigarh News: चंडीगढ़ प्रेस क्लब में पिफला ( पंजाबी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल लास एंजिल्स)के तत्वाधान प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। अभिनेता गिरिजा शंकर महाभारत धारावाहिक से अपने धृतराष्ट्र के किरदार में घर घर अपनी दस्तक लिए आज भी अपनी पहचान बनाए हैं।
अब हॉलीवुड के फिल्म संसार में व्यस्त अमेरिका में घर बनाए पंजाबी फिल्म्स के फेस्टिवल द्वारा वह पंजाबी लोक एवं  संस्कृति की कलात्मक अभिव्यक्ति और समृद्ध विरासत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का स्वप्न लिए है। उन्होंने बताया कि पंजाबी फिल्म जगत के इतिहास को संजोए एक डॉक्यूमेंट्री का निर्माण भी इस गौरवशाली पंजाबी फिल्म जगत को एतिहासिक मान चित्र पर प्रदर्शित एवं स्थापित करने का सार्थिक प्रयास लिए जल्द ही अभी तक के फिल्म इतिहास को समेटे सामने लाया जाएगा ।
इसी पर आधारित लगभग 20 मिनट की एक लघु फिल्म चित्रण से उन इसकी झलक देते अपने इस प्रयास का प्रदर्शन करते पूरे फिल्म निर्माण के उद्देश्य पर भी प्रकाश डाला। 1935 से 2020 तक निर्मित फिल्मों के इतिहास पर विवेचना करते इसका समृद्ध इतिहास का व्याख्यान जहां इस फिल्म के माध्यम से जज़्बे ,संघर्ष और बदलते उज्ज्वल परिवेश में विकास और भविष्य को परिभाषित करता है वहीं उनकी इस शिद्दत पर थोड़ा  सचेत रहने का संकेत भी देता है।
बड़ा सम्भल कर सचेत नजर से जिम्मेदाराना उत्तरदायित्व की अपेक्षा लिए वह इस पर चिंतन भी मांगता है। इस लघु चित्र के निर्माण में इतिहास को टटोल पंजाबी रंगमंच एवं फिल्म  कलाकार मनदीप सिंह सिद्धू की मेहनत जहां प्रशंसा योग्य है वहीं इस इतिहास निर्माण में कोई विसंगति न रह जाए इस पहलू पर थोड़ी सतर्कता का संज्ञान भी लिए है।
फिल्मों के इतिहास पर  अपनी सशक्त पकड़ रखते चंडीगढ़ से ही किशोर शर्मा बताते हैं के पहली पंजाबी फिल्म   1928 में बनी न कि 1935 में । इस पहली मूक पंजाबी फिल्म का नाम था “डॉटर्स टुडे “जिसका निर्माण लाहौर में हुआ।फिर “हीर रांझा हूर” 1932 में साउंड डिस्क तकनीक द्वारा अब्दुल रशीद कादर द्वारा निर्मित थी– जो ए आर कादर के नाम से प्रतिष्ठित हुए जिन्होंने उसके बाद 1935 में शीला–“पिंड दी कुड़ी “(पहली बोलती फिल्म) का निर्माण कलकत्ता में लेकिन इसका प्रदर्शन  लाहौर में किया।
इस फिल्म का निर्देशन के डी मेहरा ने किया था और यह फिल्म इंदिरा मूवीटोन के बैनर तले निर्मित थी। इसी तरह विशिष्ट व्यक्तित्व से अपनी पंजाबी फिल्म इतिहास पर प्रेस वार्ता में अपना सार्थक सहयोग समर्पण लिए 92 वर्षीय अजायब सिंह औजला गौरवमई पंजाबी फिल्म्स के इतिहास के भिन्न पहलुओं पर इसमें और अपेक्षित संदर्भ व्याख्यान लिए थे।
कुल मिलाकर यही तथ्य और अनुरोध है कि अच्छा प्रयास जरूरी है  संपूर्ण इतिहास समेटे कोई भी विसंगति न लिए हो तो ही सार्थक कहलाएगा अन्यथा कल जब संपूर्ण जानकारी रखने वाले भी गर नहीं रहेंगे तो जो इतिहास आज किसी पहलू से वंचित रह जाएगा वहीं आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास बन उन्हें सत्य से हमेशा के लिए वंचित कर देगा।
इसलिए ये बहुत आवश्यक ही नहीं अपितु अपेक्षित है के जानकारों की जानकारी रखते इस पर चिंतन कर सकारात्मक आयाम के निर्माण पर थोड़ा सा और प्रयास कर विवेचना करते इस को त्रुटिहीन बना अमर इतिहास बना दिया जाए। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं के इसके निर्माण में बहुत अच्छा प्रयास किया गया है जो  पंजाबी फिल्म्स के इतिहास के हर पहलू को उजागर करने का रोशन आयाम लिए है।
प्रेम चोपड़ा का फिल्म संसार में आगमन हो या अमिताभ और हेमा का पंजाबी फिल्म में प्रयास। अभिनेता धर्मेंद्र के फिल्म संसार में पंजाबी फिल्म का योगदान हो या कवि शिव बटालवी के गीतों की रूह को समर्पित संगीत, श्री गुरु नानक महिमा के निर्माण से रंगीन फिल्मों का युग हो अथवा पंजाबी रंगमंच से पंजाबी फिल्म निर्माण में शामिल  गिरिजा शंकर के गुरु हरपाल टिवाना की उनको लेकर बनाई फिल्में “लौंग दा लिशकारा “अथवा “दीवा बंले सारी रात ,”सब पंजाबी फिल्म्स में मेहनत लग्न, जज़्बा,हुनर,और अनथक प्रयास को परिभाषित करते व्याख्यान इस अद्भुत पंजाबी लोक संस्कृति से मिसाल बन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त दस्तक देंगे —जिसका श्रेय निसंदेह पी फ़ ला को जाता है।
ऐसे कार्यक्रम अथवा फेस्टिवल अपने देश में भी आयोजित हों जो यहां भी सार्थक पंजाबी सिनेमा में अपना औचित्य लिए यहां के उन दर्शकों और फिल्म निर्माण से जुड़े उन उभरते अभिनेताओं, निर्देशकों, फिल्म निर्माताओं, और  तकनीकी विशेषज्ञों को जो लास एंजिल्स जाने का समर्थ नहीं रखते को भी प्रेरित कर सकें।
यह पूछने पर गिरिजा शंकर कहते है कि ऐसी कोई योजना वह लिए नहीं है क्योंकि वह अब वहीं रहते हैं और वहां इसके आयोजन का समर्थ भी वह वहीं लिए हैं। ठीक भी है एक अकेले व्यक्ति के जज्बे और लग्न के जोश पर हम अपने वांछनीय सहयोग के बिना सभी अपेक्षित उत्तरदायित्व नहीं डाल सकते ।
शायर  बशीर बद्र कहते हैं न –कुछ तो मजबूरिया रहीं होंगी यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता।ज़रूरी है के इसपर होने वाले राशिखर्च,आयोजन व्यय, और अन्य  सब कार्य के परियोजन पर कुछ सरकार ,कुछ समर्थ फिल्म प्रेमी ,कुछ प्रशासन सब मिलकर सहयोग दें।सब अपेक्षाएं हम उस कलाकार से ही न रखें जिसे पंजाबी संस्कृति से मोहब्बत है लेकिन वो जो अपने अभिनय कला में समर्पित भाव से हॉलीवुड फिल्मों में जोरदार दस्तक लिए सफलता के आयाम की तरफ अभी अग्रसर है।
वक्त आने पर वह अपनी इस पंजाबी फिल्मों की मोहब्बत और शिद्दत से यहां भी ऐसे आयोजनों को आयाम देंगे ऐसी आशा है। इस आयोजन के लिए शुभ कामनाएं और ऐसे फिल्म महोत्सव के भारत में आयोजन के लिए समस्त  दुआएं।