Bhiwani News : गुरु वचन की पालना भक्ति का प्रथम पड़ाव है : कंवर साहेब जी महाराज

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Bhiwani News : गुरु वचन की पालना भक्ति का प्रथम पड़ाव है : कंवर साहेब जी महाराज
राधा स्वामी सत्संग दिनोद आश्रम मे श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए परम संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज।

(Bhiwani News) भिवानी। राधास्वामी सत्संग दिनोद आश्रम में आज परम संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने एक दिव्य सत्संग में आए श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान की गंगा प्रवाहित की। सत्संग में सतगुरु जी ने भक्ति, साधना, गुरु-वचन की महिमा, संत-संगति और मन की शुद्धता पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला।
सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संदेश देते हुए कहा कि गुरु जो करता है वो कभी मत करो, और जो कहता है वो हमेशा करो, क्योंकि गुरु वचन की पालना भक्ति का प्रथम पड़ाव है।

संतों की संगति हृदय के द्वार खोल देती है

उन्होंने समझाया कि सच्चे संतों के वचन केवल शब्द नहीं होते, बल्कि आत्मा को जागृत करने वाले दिव्य संकेत होते हैं। उनका अनुसरण ही साधक को संसारिक भटकाव से बचाकर मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है। संतवाणी की महत्ता को रेखांकित करते हुए महाराज जी ने कहा कि महापुरुषों की बानी जीव के कल्याण और आत्मिक लाभ की होती है। संतों की संगति हृदय के द्वार खोल देती है, जिससे जीव के भीतर छिपा दिव्य ज्योति स्वरूप प्रकट होता है। सतगुरु ने कहा कि संतों के साथ बैठना मात्र भी आत्मा को उच्चतर चेतना की ओर ले जाता है।

साध संगत को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी आँख, कान और मुख का उपयोग केवल सद्गुणों के ग्रहण हेतु करें, क्योंकि यही तीन अंग आपकी संगति तय करते हैं। इनका संयमित और सकारात्मक प्रयोग ही आत्मिक उन्नति की नींव बनता है।

सतगुरु जी ने आत्मा की स्थिति की ओर संकेत करते हुए कहा कि मनुष्य पर जड़ और चेतन की अनेक गांठें हैं जो उसे माया में बाँधे रखती हैं। उन्होंने कहा कि हम संसारिक पदार्थों के लिए भागते हैं और अभिमान करते हैं, जबकि वे भक्ति की दृष्टि से निष्प्रयोजन हैं।\

केवल नामदान लेकर बिना अभ्यास किए आत्मिक यात्रा अधूरी

गुरु महाराज जी ने उदाहरण देकर समझाया कि जैसे स्टेशन पर टिकट लेकर खड़े रह जाने से यात्रा पूरी नहीं होती, वैसे ही केवल नामदान लेकर बिना अभ्यास किए आत्मिक यात्रा अधूरी रहती है। नाम की कमाई और भक्ति ही आत्मा को अपने परम लक्ष्य की ओर ले जाती है। सतगुरु जी ने परिवार और सामाजिक कर्तव्यों पर भी बल देते हुए कहा कि अपने जीवन को सात्विक बनाओ। अपने सुख की खातिर किसी दूसरे को दुख मत दो। माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा करो तथा बच्चों को आदर्श और संस्कारयुक्त शिक्षा दो।

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