Freedom of Rohingyas then why is migration of Hindus?रोहिंग्या को आजादी तो हिंदुओं का पलायन क्यों?

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हिंदू परिवारों के पलायन का मसला एक बार फिर यूपी में सियासत और मीडिया की सुर्खियां बना है। लेकिन इस बार नाम के साथ स्थान भी परिवर्तित है। अबकी कैराना नहीं मेरठ का प्रहलाद नगर है। हालांकि सारे हालात तीन साल पूर्व कैराना जैसे ही हैं। पलायन की खबर से राज्य की योगी सरकार की नींद उड़ गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मसले को खुद गंभीरता से लिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने अफसरों से गोपनीय रिपोर्ट तलब की है। एक अहम सवाल है कि 80 फीसदी हिंदू अपने ही देश में पलायन को बाध्य क्यों होते हैं। इसके अलावा पलायन की बात यूपी ही से क्यों उठती हैं। दूसरी बार ऐसा हुआ है जब हिंदू परिवारों के पलायन की बात सामने आ रही है। कैराना से जब पलायन का मसला उठा था तो राज्य में उस दौरान अखिलेश यादव की सरकार थी, लेकिन इस बार हिंदुत्व की हिमायती भाजपा के साथ योगी आदित्यनाथ की सरकार है।
जिसकी वजह से सरकार पलायन के मुद्दे को गंभीरता से लिया है। कैराना और मेरठ से पलायन की जो स्थिति बनी है उसमें काफी समानता है। तीन साल पूर्व कैराना में जब पलायन का मसला उठा था तो उस वक्त भी जून का महीना था। भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया था। जिसकी वजह से यह मसला अखिलेश सरकार की गले की फांस बन गया था। लेकिन अब वहीं बात योगी को मुश्किल में डाल दिया है कि आखिर हिंदू परिवारों का पलाया कैसे हो रहा है या फिर पलायन की खबरों का सच क्या है। कैराना मसले पर मानवाधिकार आयोग ने तत्कालीन सरकार से रिपोर्ट भी तलब किया था।
प्रश्न उठता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। हम विभाजन की बात क्यों करते हैं। भारत में लाखों की संख्या में में रोहिंग्या और बंग्लादेशी बेधड़क निवास कर सकते हैं तो हमें आपस में रहने और एक दूसरे के धर्म संस्कृति से क्यों इतनी घृणा है। पलायन का मुद्दा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही क्यों उठता है। जबकि पूर्वी यूपी इस तरह की बातें सामने नहीं आती हैं। हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक दंगे भी पश्चिमी यूपी में अधिक होते हैं। फिर इस पलायन के पीछे का सच क्या है। हिंदू और मुसलमान एक साथ क्यों नहीं रह सकते हैं। हम यूपी को कश्मीर बनाने पर क्यों तुले हैं। यह बेहद विचारणीय बिंदू हैं।
योगी सरकार को पलायन के मसले को गंभीरता से लेना चाहिए और इसकी साजिश या षडयंत्र रचने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। जहां जिस समुदाय की आबादी अधिक हैं वहां एक दूसरे के साथ रहने में लोगों को डर क्यों लगने लगा है। हम इस तरह का महौल क्यों बना रहे हैं। यह राष्ट्रीय एकता और अखंड़ता के लिए बड़ा खतरा है। देश पर जितना अधिकार हिंदुओं का है उतना ही मुस्लिमानों, सिखों और दूसरे समुदाय का भी। हमें विभाजन के नजरिए को त्यागना होगा। हमें हर हाल में भारत की अनेकता में एकता कायम करनी होगी। हम हरहाल में ऐसी विभाजनकारी तागकतों को विध्वसं करना होगा।
कहा जा रहा है कि पश्चिमी यूपी के मेरठ के प्रहलाद नगर से 125 से अधिक हिंदू परिवारों के पलायन हुआ है। आरोपों में कितना दम है यह जाँच का विषय है।मीडिया रपट में कहा गया हैं कि वहां कई मकानों पर लिखा है यह मकान बिकाऊ है। यह तस्वीर ठीक उसी तरह है जैसे कैराना की थी। पलायन किसी के लिए बेहद पीड़ादायक है। अपनी जन्मभूमि स्वर्ग से भी प्यारी होती है। कोई इतनी आसानी से बसी बसायी गृहस्थी नहीं छोड़ना चाहता है। जब पानी नाक से बाहर होने लगता है तभी इस तरह कदम उठाए जाते हैं। अपने ही देश में पलायन को मजबूर होना किसी अभिशाप से कम नहीं। वह भी जब जहां बहुसंख्यक हिंदू और मुस्लिम परिवार एक साथ रहते तो। जहां एक दूसरे की धर्म-संस्कृति एक दूसरे के लिए मिसाल हो। फिर हम यूपी को कश्मीर बनाने पर क्यों तुले हैं। कश्मीरी पंड़ित खूबसूरत वादी को छोड़कर क्यों पलायित हुए। क्या यही सच कैराना के बाद अब मेरठ का है। आरोप है कि वहां समुदाय विशेष के युवक खुले आम गुंड़ागर्दी करते हैं।
महिलाओं और लड़कियों से छेड़खानी करते हैं। मोबाइल, चेन स्नेचिंग और बाइक स्टंग कर हिंदू परिवारों की महिलाओं को परेशान करते हैं। भद्दी गालियां देते हैं। जिसकी वजह से हिंदू परिवारों का जीना दुश्वार हो गया है। घर के लोग लड़कियों को अकेले स्कूल भेजना नहीं चाहते हैं। जिसकी वजह से पीड़ित हिंदू परिवार मेरठ के प्रहलाद नगर से पलायित होकर दूसरी जगह आशियाना तलाश रहे हैं। अब तक काफी लोग पलायित भी हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि इस तरह के हालाता सिर्फ प्रहलादनगर का नहीं बल्कि स्टेट बैंक कॉलोनी, रामनगर, विकासपुरी, हरिनगर कॉलोनियों का भी है। मीडिया रिपोर्ट में जो बात आई उसके अनुसार आरोपियों को पुलिस का भी संरक्षण मिलता है। जबकि प्रशासन पलायन की घटना से इनकार करता है। प्रशासन का तर्क है कि पूरा प्रकाण जमींन से जुड़ा है। लिसाड़ी चौराहे पर गेट लगाने को लेकर दोनों समुदायों में विवाद है। जिसकी वजह है कि जब चौराहे पर जाम की स्थिति होती है तो लोग प्रहलाद नगर से होकर इस्लामाबाद की तरफ निकल जाते हैं। जिसकी वह से भीड़ बढ़ जाती है। जिसके कारण एक समुदाय के लोग चैराहे पर गेट लगाना चाहते हैं जबकि दूसरे लोग इसका विरोध कर रहे हैं। हलांकि योगी सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। निश्चित रुप से दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
मेरठ अब सियासी मुद्दा भी बनता दिखता है। भाजपा ने लव जिहाद की तर्ज पर इसे लैंड जिहाद का नाम दिया है। जिसकी वजह से यह मसला गरमा सकता है। लेकिन यह राजनीति का विषय नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या जहां समुदाय विशेष के लोगों की आबादी अधिक होगी वहां दूसरे समुदाय यानी कम आबादी या संख्या वाले लोग नहीं रह पाएंगे। इस तरह की संस्कृति हम क्यों विकसित करना चाहते हैं। हम जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत क्यों चरितार्थ कर रहे हैं। समुदाय के नाम पर नंगा नाच क्यों किया जा रहा है। महिलाओं और बेटियों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है। हिंदू और मुस्लिम समाज के लिए यह स्थितियां बेहद खराब हैं। विशेष रुप से पश्चिम उत्तर प्रदेश में सामुदायिक टकराव की बातें आम होंती हैं। जबकि दूसरे राज्यों में यह स्थिति कम बनती हैं। समाज को बांटने की जो साजिश रची जा रही है वह बेहद गलत है। देश सभी का है, वह हिंदू हों या मुस्लिम। फिर हम आपस में एक साथ क्यों नहीं रह सकते हैं। कैराना और मेरठ से मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से हिंदुओं की पलायन का मुद्दा क्यों उठता हैं। उन्हें अपना घर छोड़ कर पलायन को क्यों बाध्य होना पड़ता है।
यह स्थिति अपने आप में बेहद खराब और गैर संवैधानिक है। सवाल उठता है कि मुस्लिमों के पलायन की बात किसी हिंदू बाहुल्य आबादी से क्यों नहीं आई। राज्य में दो घटनाएं पलायन से जुड़ी आयी हैं वह दोनों मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से हैं। इस पर भी हमें गौर करना होगा। अपनी-अपनी धार्मिक आजादी के साथ सबको जीने का अधिकार है। लेकिन किसी को अपनी जन्मभूमि छोड़ने के लिए बाध्य करना संविधान के खिलाफ है। हालांकि अभी यह मसला जांच का है। योगी सरकार इस पर खुद गंभीर है। जांच के बाद स्थिति साफ होगी। लेकिन अगर ऐसी स्थिति है तो दोषी लोगों के साथ जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ भी कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। जिसकी वजह से पलायन जैसे शर्मनाक और इंसानियत को शर्मसार करने वाले मसले फिर कभी हमारी बहस के मसले न बन पाएं।

प्रभुनाथ शुक्ल
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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