तेनालीराम और राजगुरू Tenaliram And Rajguru

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Tenaliram And Rajguru

आज समाज डिजिटल, अम्बाला :
Tenaliram And Rajguru : तेनालीराम जब बड़े हुए तो उनकी बुद्धिमानी के चर्चे पूरे गाँव में होने लगे। गाँव में जब कोई किसी समस्या में पड़ता तो तेनालीराम के पास समाधान के लिए आता। तेनालीराम भी बुद्धिमत्ता के बल पर चुटकी बजाते ही समस्या का समाधान कर देते।

Tenaliram And Rajguru

तेनालीराम बुद्धिमान के साथ-साथ  श्रेष्ठ कवि भी थे

तेनालीराम बुद्धिमान तो थे ही, साथ ही एक श्रेष्ठ कवि भी थे और उनकी वाकपटुता का तो कोई सानी ही नहीं था। गाँववाले अक्सर उनसे कहा करते कि उन्हें महाराज कृष्णदेव राय के दरबार की शोभा बढ़ानी चाहिए। तब तक तेनालीराम का विवाह शारदा नामक कन्या से हो चुका। परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना में तेनालीराम के मन में भी महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में जाने की आकांक्षा बलवती होने लगी. किंतु उन्हें ज्ञात नहीं था कि किस तरह वे महाराज के दरबार तक पहुँचा जाये।

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 Tenaliram And Rajguru

Tenaliram And Rajguru : संयोग से महाराज कृष्णदेव राय के दरबार के राजगुरु तेनालीराम के गाँव पधारे। तेनालीराम को जब ये ज्ञात हुआ तो वह भागे-भागे राजगुरू के पास पहुँचे और उन्हें अपने घर भोज पर आमंत्रित कर लिया। राजगुरू तेनालीराम के घर आये तो तेनालीराम और उनकी पत्नि ने उनका आदर-सत्कार किया, उनकी बहुत सेवा-सुश्रुषा की. तेनालीराम ने उन्हें कवितायें सुनाई और अपनी वाकपटुता से उनका मनोरंजन भी किया। उन्हें पूर्ण आशा थी कि उनकी सेवा और कला से प्रसन्न होकर राजगुरू अवश्य महाराज कृष्णदेव राय के दरबार तक पहुँचने में उनकी सहायता करेंगे।

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तेनालीराम प्रसन्न हो गये

राजगुरू ने गाँव से प्रस्थान करने के पूर्व तेनालीराम को आश्वासन दिया कि वह नगर पहुँचते ही महाराज से उनकी सिफ़ारिश करेंगे और इस संबंध में उन्हें शीघ्र ही संदेश भेजेंगे. तेनालीराम प्रसन्न हो गये और उसके बाद से प्रतिदिन राजगुरू के संदेश की प्रतीक्षा करने लगा। लेकिन राजगुरू का संदेश न आना था, न ही आया. वास्तव में राजगुरू तेनालीराम की बुद्धिमानी देखकर भयभीत हो गए थे उन्हें भय था कि यदि तेनालीराम राजदरबार में आ गए, तो उनकी स्वयं की प्रतिष्ठा कम हो जायेगी इसलिए उन्होंने तय कर लिया था कि वे तेनालीराम के संबंध में महाराजा कृष्णदेव राय से तो क्या किसी भी अन्य राज दरबारी से चर्चा नहीं करेंगे।इधर दिन गुजरते जा रहे थे और तेनालीराम का धैर्य टूटता जा रहा था. गाँव के लोग भी उन्हें चिढ़ाने लगे थे. अंत में तेनालीराम ने निश्चय किया कि अब वे राजगुरू के संदेश के भरोसे नहीं रहेंगे और स्वयं उनसे मिलने नगर जायेंगे। उन्होंने पत्नि को सामान बांधने को कहा और अगले ही दिन परिवार सहित विजयनगर की राह पकड़ ली। विजय नगर पहुँचकर परिवार को एक धर्मशाला में ठहराकर वे राजगुरू से मिलने निकल गये। उनका पता पूछकर जब वे उनके निवास पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ लोगों की लंबी कतार लगी हुई है।

Tenaliram And Rajguru :  तेनालीराम भी कतार में लग गये. उन्हें पूर्ण विश्वास था कि राजगुरू उन्हें देखते साथ पहचान लेंगे और उनका स्वागत करेंगे. किंतु जब वे राजगुरू के समक्ष पहुँचे, तो राजगुरू ने उन्हें नहीं पहचानने का ढोंग किया. तेनालीराम ने उन्हें अपना परिचय देते हुए उन्हें अपनी पिछली मुलाकात स्मरण करवाने का प्रयास किया, किंतु राजगुरू ने सेवकों से कहकर उन्हें अपने घर से बाहर निकलवा दिया।

Tenaliram And Rajguru :  तेनालीराम अपने इस अपमान से बहुत दु:खी हुए. उन्होंने तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये, वे महाराज से मिलकर ही रहेंगे और राजगुरू से भी अपने अपमान का बदला लेंगे। वह पहरेदारों को किसी तरह बहला-फ़ुसलाकर राजदरबार में पहुँच गए। वहाँ जीवन के वैराग्य और सत्य-असत्य पर ज्ञानियों और पंडितों की गहन चर्चा चल रही थी. राजगुरू भी उस चर्चा में सम्मिलित थे।

राजदरबार में देखकर राजगुरू चकित हो गये

राजगुरू कर रहे थे, “ये संसार मिथ्या है. जो भी यहाँ घटित हो रहा है, सब एक दिवास्वप्न है. ये मन का भ्रम है कि कुछ हो रहा है. यदि जो घटित हो रहा है, हम उसमें सम्मिलित न भी हों, हम वह न भी करें, तो कोई अंतर नहीं पड़ेगा.” यह सुनना था कि तेनालीराम बोल पड़े, “राजगुरू जी, क्या सचमुच सब कार्य भ्रम है?” तेनालीराम को राजदरबार में देखकर राजगुरू चकित हो गये. उनके मन में आवेश का ज्वार उठ खड़ा हुआ. वे उसी क्षण द्वारपालों से कहकर तेनालीराम को दरबार से बाहर फिकवा देना चाहते थे. किंतु महाराज के समक्ष वे ऐसा नहीं कर सकते थे. इसलिए स्वयं के आवेश पर नियंत्रण रख वे मृदु स्वर में बोले, “ये सत्य है कि समग्र कार्य भ्रम है. चाहे कुछ किया जाए या न किया जाए, कोई अंतर नहीं पड़ता।

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Tenaliram And Rajguru :  यदि ऐसी बात है, तो राजगुरू आज दोपहर महाराज के साथ हम सब मिलकर भोजन करेंगे और आप दूर बैठकर देखना और सोचना कि अपने भोजन ग्रहण कर लिया. अब से प्रतिदिन ही ऐसा करना. क्योंकि कुछ किया जाये या न किया जाए, कोई अंतर तो पड़ता ही नहीं है.” तेनालीराम मुस्कुराते हुए बोला। ये सुनना था कि महाराज और सारे दरबारी हँस पड़े. राजगुरू का सिर लज्जा से झुक गया।

Tenaliram And Rajguru :  महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम के तर्क से बहुत प्रभावित हुए थे. उन्होंने उनका परिचय पूछा. तेनालीराम ने अपना परिचय देते हुए गाँव में राजगुरू से मिलने और गाँव से राजदरबार पहुँचने का वृतांत सुना दिया. पूरा वृतांत सुनकर महाराज राजगुरू पर बहुत क्रोधित हुए, महाराज तेनालीराम की वाकपटुता और बुद्धिमानी से अति-प्रसन्न थे. उन्होंने उन्हें राज्य का मुख्य-सलाहकार बना दिया और इस तरह तेनालीराम महाराज कृष्णदेव राय के ‘अष्ट-दिग्गजस’ का अभिन्न अंग बन गए।

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