आइए जानते हैं कि क्या है पूरी कहानी
Chhath Puja History, (आज समाज), नई दिल्ली: चार दिवसीय छठ पूजा का आज समाप्त हो जाएगा। भक्त पानी में उतरते हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, अपने बच्चों और परिवार की समृद्धि और कल्याण की प्रार्थना करते हैं। इस पवित्र पर्व को लेकर कई मान्यताएं हैं, लेकिन सवाल उठता है कि पहली बार छठ का पर्व कब मनाया गया था और इसकी शुरूआत कैसे हुई थी।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान राम और माता सीता लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे और पहला छठ पर्व मनाया था। ऐसा कहा जाता है कि रावण का वध करने से भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था और इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने राजसूय यज्ञ करने का फैसला किया था।
इस यज्ञ को पूरा करने के लिए मुद्गल ऋषि को बुलाया गया। मुद्गल ऋषि ने यज्ञ करने की बजाय कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की पूजा करने का सुझाव दिया। मुद्गल ऋषि के निर्देश पर माता सीता ने मुंगेर के गंगा तट पर छह दिनों तक सूर्य देव की उपासना करते हुए छठ व्रत रखा।व्रत के प्रभाव से माता सीता और भगवान राम को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।
छठ पर्व मनाने की परंपरा की शुरूआत इसके बाद ही हुई और यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रतीक बन गया। यह भी मान्यता है कि मुंगेर में आज भी उस स्थान पर माता सीता के पद चिह्न मौजूद हैं, जहां उन्होंने यह पूजा की थी।
छठी मैया की आरती
- जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।। - जय छठी मैया
- ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदिति होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।। - जय छठी मैया
- मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।। - जय छठी मैया
- अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडरराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।। - जय छठी मैया
- ऊ जे सुहनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।। - जय छठी मैया
- मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।। - जय छठी मैया
- ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।। - जय छठी मैया
- ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।। - जय छठी मैया
- मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।। - जय छठी मैया
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