Jain Shwetambar Mahasabha : अरिहंत पद का ध्यान हमें आत्म केन्द्रित बनाता है : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  •  नवपद ओली का पहले दिन हुए विविध आयोजन
  • आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा
  • साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

Aaj Samaj (आज समाज), Jain Shwetambar Mahasabha, उदयपुर 20 अक्टूबर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में शुक्रवार को नवनद ओली के तहत विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि विशेष महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने नवपद की महिमा को बताते हुए कहा कि नवपद ओली का यह प्रथम दिवस नवपद के प्रति हमें नम्र बनने का संदेश देता है। क्योंकि जीवन की सार्थकता बिनम्रता से है।

आप सभी नवपद यानि नवकार महामन्त्र की महिमा जानते हैं। यह मन्यों में सर्वश्रेष्ठ है इसलिए इसे महामन्त्र या मन्त्राधिराज कहते है। नवपद अर्थात् नम्रता एवं विवेकपूर्वक नवपद हमें पापक्रमों के दमन का सन्देश देता है। प्रथम दिन अरिहंत की आराधना से समाधि का जागरण होता है। समाधि-जागरण यानि आधि-व्याधि टेंशन का छुटकारा, ध्यान की एकाग्रता, विषमता का त्याग, समता की प्राप्ति। अरिहन्त पद का ध्यान करने से दो गुण उत्पन्न होते हैं- अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन।

इन दो गुणों के भेद प्रभेद जानकर राग-द्वेष का छेदन कर आत्मा अरिहंत पर को प्राप्त कर सकता है। अरिहंत चार घाती कर्मों के विनाशक है तथा सिह आठ रूम के महापंच नवकार में फिर भी अरिहंत पद को प्रथम स्थान प्रदान किया गया है क्योंकि ने तीर्थकर हैं, तीर्थस्थापना के माध्यम से संसार के महान उपकारी है। वे बोवलज्ञान के पश्चात् परम करुणा के कारण छात् के कल्याण के लिए उपदेश प्रदान करते हैं।

उनके कारण जैनधर्म की उदान क्रियाओं तथा चेष्टाओं को महाबू जल मिला है। शालत पहचान मिली है, जीवन को सफल बनाने की अनुष्य शक्ति मिली है। नमो अरिहंताणं केवल एक पद से पचास कागने पम दुख का विनाश होता है। संपूर्ण नवकार महामंत्र का जाप करने से पांचसो सागरोपम के नरक का विनाश होता है। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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