Editorial Aaj Samaaj: द्वापरयुग में बाणासुर ने कराया था सोहगरा धाम मंदिर का निर्माण

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Editorial Aaj Samaaj: द्वापरयुग में बाणासुर ने कराया था सोहगरा धाम मंदिर का निर्माण
  • शिवलिंग के रूप में स्वयं प्रकट हुए थे भगवान भोलेनाथ

Editorial Aaj Samaaj: बिहार के सीवान और यूपी के देवरिया जिले की सीमा पर स्थित सोहगरा धाम में स्थित बाबा हंसनाथ मंदिर का निर्माण द्वापर युग ( Dwaparyug) में राक्षस राज बाणासुर ने कराया था। श्रीमद्भागवत महापुराण के सप्तम स्कंद में भी इसका वर्णन है। बताया जाता है कि बाणासुर (Banasur) की साधना से प्रसन्न होकर साढ़े 8 फुट ऊंचा और 2 फुट मोटा शिवलिंग प्रकटहुआ था। जो आज भी मंदिर में अपने मूल रूप में मौजूद है।

एक तरफ की सीढ़ी बिहार में तथा दूसरी तरफ की सीढ़ी यूपी की सीमा में पड़ती हैं। काशी नरेश ने भी संतान प्राप्ति के लिए यहां भगवान शिव की आराधना की थी। सावन महीने में यूपी-बिहार के अलावा नेपाल से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और महादेव का जलाभिषेक करते हैं। यूपी और बिहार के बॉर्डर पर छोटी गंडक नदी के किनारे सोहगरा धाम स्थित है। बताया जाता है कि द्वापर युग के तृतीय चरण में मध्यावली राज्य (वर्तमान मझौली) का राजा बाणासुर था, जिसकी राजधानी शोणितपुर (वर्तमान सोहनपुर) थी।

बाणासुर भगवान शिव का परम भक्त था। वह स्वर्णहरा (वर्तमान सोहगरा धाम) नामक स्थानके सेंधोर पर्वत पर वीरान जंगल में भगवान शिव की तपस्या करता था। उसकी तपस्या सेप्रसन्न होकर भगवान शिव साढ़े 8 फुट ऊंचे और 2 फुट मोटे शिवलिंग के रूप में प्रकटहुए। महादेव की कृपा से यहीं पर उसे 10 हजार भुजाएं और करोड़ों हाथियों का बल प्राप्त हुआ।बाणासुर ने उस स्थान पर भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया,जोआज बाबा हंसनाथ की नगरी सोहगरा धाम के नाम से प्रसिद्ध है। सोहगरा धाम का पौराणिक महत्व है। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण के सप्तम स्कंध में भी है।

मंदिर निर्माण के समय ही बाणासुर ने एक पोखरा भी खोदवाया था। जिसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग समेत अन्य असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। मान्यताओं के मुताबिक बाणासुर की महान शिव भक्तिनी पुत्री उषा यहीं पर महादेव की आराधना करतीथी। शिव के वरदान से इसी स्थान पर ऊषा की मुलाकात श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से हुई और दोनों का विवाह हुआ। सोमवार को कुंवारी युवतियां मनचाहे पति के लिए पूरे भक्ति भाव से यहां शिव की आराधना करती हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

मान्यताओं के मुताबिक काशी नरेश ने भी संतान प्राप्ति के लिए बाबा हंस नाथ के दरबार में पूजा किया था और मन्नत मांगी थी। बाबा की कृपा से काशी नरेश को पुत्र प्राप्त हुआ और उस पुत्र का नाम हंस ध्वज रखा गया।राजा हंस ध्वज के पुत्र तुंग ध्वज ने भी पुत्र प्राप्ति के लिए यहां महादेव की आराधना की थी। कालांतर में यह मंदिर पूरी तरह जीर्ण शीर्ण हो गया था। मन्नत पूरीहोने के बाद महाराज हंस ध्वज ने इस मंदिर का मरम्मत कराई थी। वैसे तो यहां शिवभक्तों की भीड़ बारहों महीने रहती है। मगर सावन के महीने में यहां का जर्रा जर्रा शिवमय हो जाता है।

सावन में यूपी बिहार समेत नेपाल के भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और विभिन्न नदियों से पवित्र जल लाकर बाबा हंस नाथ का जलाभिषेक करते हैं। यह मंदिर यूपी और बिहार के बॉर्डर पर स्थित है आधा हिस्सा यूपी में और आधा हिस्सा बिहार में पड़ता है। भक्तों की भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यहां दोनों प्रदेशों की पुलिस सुरक्षा व्यवस्था संभालती है। मंदिर की ऊंचाई धरातल से लगभग 15 फीट है। बताते हैं कि सन 1842 में अंग्रेजों ने शिवलिंग की गहराई जानने के लिए शिवलिंग की ऊंचाई के 8 गुने अधिक गहरे तक खुदाई भी करवाईथी। लेकिन शिवलिंग का थाह न पाकर खुदाई बंद कर दी।

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