Editorial Aaj Samaaj: आतंकवाद पर ‘भगवा’ रंग चढाने के राजनीतिक प्रयास विफल

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Editorial Aaj Samaaj: आतंकवाद पर 'भगवा' रंग चढाने के राजनीतिक प्रयास विफल

Editorial Aaj Samaaj | आलोक मेहता | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर ‘भगवा आतंकवाद’ या अन्य आपराधिक गतिविधियों के आरोपों को लेकर कई बार राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर विवाद उठे हैं। पिछले 50 वर्षों में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों पर रोक लगाने या इसे प्रतिबंधित करने की कोशिशें कीं।

मालेगांव बम धमाका मामले (2008) में ‘भगवा आतंकवाद’ के आरोप को उछाला गया और कई लोगों पर गंभीर आरोप लगाए गए थे, जिनमें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित और अन्य शामिल थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत को भी झूठे तरीके से फंसाने की साजिश रची गई थी।

प्रकरण की जांच कर रही एटीएस के अधिकारी महबूब मुजावर ने ही कहा है कि संघ प्रमुख का नाम जोड़ने और गवाहों को इस तरह के आरोप जबरन दिलवाने के दबाव थे और उन्होंने ऐसा करने से इंकार किया तो उन्हें प्रताड़ित किया गया। इस मामले की जांच और अदालत में पेश सबूतों के आधार पर यह स्पष्ट हुआ कि कई आरोप झूठे या कमजोर थे।

साध्वी प्रज्ञा को पहले जमानत मिल गई और अब कोर्ट ने माना कि उनके खिलाफ कुछ भी सबूत पर्याप्त नहीं थे। तीन सौ गवाह होने पर भी कोई प्रमाण नहीं मिला। इस मामले को लेकर यह सिद्ध हुआ कि राजनीतिक या वैचारिक कारणों से कुछ लोगों को जानबूझकर फंसाने की कोशिश की गई थी, जिससे संघ और उससे जुड़े संगठनों की छवि खराब की जा सके।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कई बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर देश में सांप्रदायिक नफरत और ध्रुवीकरण फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि संघ की विचारधारा देश को विभाजित करने वाली है। राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि आरएसएस देश के संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की दिशा में कार्य कर रहा है। वे कहते रहे हैं कि संघ ‘संवैधानिक मूल्यों’ को खतरे में डाल रहा है। उन्होंने संघ की तुलना कई बार कट्टरपंथी संगठनों से की, जिससे राजनीतिक टकराव और भी बढ़ा। पराकाष्ठा यह तक हुई कि राहुल गांधी ने एक अमेरिकी राजनयिक से बातचीत के दौरान ‘हिन्दू आतंकवाद’ कहकर इसे ‘इस्लामिक आतंकवाद’ से अधिक खतरनाक बता दिया। एक बार उनके एक बयान पर संघ ने मानहानि का केस भी किया।

पी. चिदंबरम जब गृह मंत्री थे (2008-2012) तो उन्होंने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग किया। कई जांच एजेंसियों को ऐसे मामलों में शामिल किया गया, जिनमें बाद में अधिकांश आरोपियों को न्यायालय से रिहाई मिल गई। दिग्विजय सिंह कांग्रेस के उन नेताओं में से हैं जिन्होंने लगातार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मुस्लिम विरोधी, दलित विरोधी और लोकतंत्र विरोधी बताया। उन्होंने हेमंत करकरे (मुंबई एटीएस प्रमुख) की मौत को भी संघ से जोड़ने की कोशिश की थी, जिससे काफी विवाद हुआ। कांग्रेस के इन नेताओं ने वैचारिक और राजनीतिक रूप से संघ का विरोध किया।

कुछ मामलों में कानूनी कार्रवाई और जांच एजेंसियों के माध्यम से संघ को घेरने की कोशिश की गई, लेकिन अदालतों में कई आरोप साबित नहीं हो सके और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ कोई ठोस अपराध सिद्ध नहीं हुआ। आरएसएस ने सभी आरोपों को बार-बार ‘राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित’ और ‘तथ्यहीन’ करार दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संगठन राष्ट्र निर्माण, सेवा कार्य और सांस्कृतिक जागरण के लिए कार्य करता है।

कांग्रेस के नेताओं को संघ पर पुराने आरोपों और प्रतिबंधों की बात याद है, लेकिन अपना ही इतिहास याद नहीं कि अक्टूबर 1949 में कांग्रेस कार्य समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कांग्रेस में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया था। देश की सुरक्षा या प्राकृतिक विपदाओं में संघ का सहयोग लिया। नरसिंहा राव के प्रधान मंत्री रहते हुए उन्हें संघ का पुराना स्वयसेवक तक कहा गया।

जहां तक हिंदुत्व विचारधारा की बात है वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत में जन्मे हर व्यक्ति को अपना, भारतीय और हिन्दू माना जा सकता है। उसकी उपासना पद्धति कुछ भी हो सकती है। मतलब हिंदू धर्म संस्कृति की रक्षा और संवर्धन के साथ उन्हें इस्लाम, ईसाई, बौद्ध आदि किसी धर्म और उसकी उपासना के तरीकों के प्रति भी संघ का सम्मान है और वे सभी भारतीय समाज के अभिन्न अंग है।

भागवत ने यह भी कहा कि हर मस्जिद में अपने भगवान की मूर्ति ढूंढना अनुचित है। इस तरह की मांगों से तो अराजकता पैदा हो जाएगी। ऐसा भी नहीं कि यह बात नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद संघ प्रमुख ने कही है। उनसे पहले रहे सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह और केसी सुदर्शन ने मुझे वर्षों पहले दिए इंटरव्यू में भी यही बात कही थी, जिसे मैंने प्रकाशित की।

दूसरी बात संगठन की। इसमें कोई शक नहीं कि हाल के वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों का विस्तार होने के साथ शक्ति बड़ी है। संसाधनों के साथ आधुनिकीकरण और उदारता का असर दिख रहा है। संघ के विचारों से प्रभावित लोगों के सत्ता में आने से आत्म विश्वास बढ़ा है।

अनुशासन और सादगी के सारे आदर्शों के बावुजूद संगठन से जुड़े कुछ लोग दुरुपयोग और मनमानी भी करने लगे हैं। स्वार्थी तत्व मंदिर, गाय, गंगा यमुना के नाम पर अनुचित लाभ उठाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। तो पहले संघ में रहकर अब नए नए नामों से संस्थाएं बनाकर हिन्दू धर्म और समाज के ठेकेदार बनकर अनर्गल बयानबाजी व हिंसा पैदा करने वाली गतिविधियां करने लगे हैं। उन पर नियंत्रण के लिए संघ ही नहीं सरकारों और प्रशासन को समय रहते कार्रवाई करनी चाहिए।

इसी दृष्टि से संघ से एक हद तक जुड़ी मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी को भी अधिक सतर्क रहकर संयम से काम लेना होगा। कुछ सांसद, विधायक या स्थानीय नेता ही नहीं मंत्री भी उत्तेजक बातें कर देते हैं। इससे नेतृत्व के सारे प्रयास और सकारात्मक कार्य धूमिल हो जाते हैं।

रही बात सरकार की तो इस तथ्य से कोई इंकार नहीं करता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके वरिष्ठ सहयोगी मंत्री संघ के विचारों, आदर्शों और संस्कारों से आए हैं। इसलिए उन्हें अलग से संघ के निदेर्शों की आवश्यकता नहीं है। हां, अपने सिद्धांतों, वायदों, संकल्पों को पूरा करने के लिए परस्पर सहयोग जरुरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निरंतर इस बात पर जोर देते हैं कि सरकार के सभी कार्यक्रम सम्पूर्ण भारतीय समाज और हर वर्ग के लिए है।

मतलब केवल हिन्दू ही नहीं सिख, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध इत्यादि भी समान रुप से सरकारी योजनाओं व सुविधाओं के लाभ पा सकते हैं और पा भी रहे हैं। भारत में साम्प्रदायिक भेदभाव और हिंसा की आधी अधूरी या गलत सूचनाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने से देश की छवि खराब होती है। वैसे भी विश्व राजनीति में भारत की भूमिका और चुनौतियां बढ़ी हैं। इसलिए संगठन और सरकार को निरंतर निगरानी, आत्म समीक्षा और आवश्यक नियंत्रण के कदम अवश्य उठाने होंगे। (लेखक आज समाज और इंडिया न्यूज के संपादकीय निदेशक हैं।)

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