
15 नवंबर को रखा जाएगा उत्पन्ना एकादशी का व्रत
Utpanna Ekadashi, (आज समाज), नई दिल्ली: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का दिन वही है जब भगवान विष्णु की आज्ञा से देवी एकादशी का प्राकट्य हुआ था। कहा जाता है कि उन्होंने असुर मुर का वध कर देवताओं की रक्षा की थी।इसलिए इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है। यह एकादशी खास तौर पर उन लोगों के लिए शुभ मानी जाती है जो मोक्ष, पाप मुक्ति और सुख-समृद्धि की कामना रखते हैं। आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी के दिन किन कामों को करने की मनाही होती है।
उत्पन्ना एकादशी कब है
पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि का प्रारंभ: 15 नवंबर, शनिवार को सुबह 12 बजकर 49 मिनट पर होगा। वहीं एकादशी तिथि का समापन अगले दिन 16 नवंबर, रविवार को सुबह 02 बजकर 37 मिनट पर होगा। चूंकि 15 नवंबर को सूर्योदय के समय एकादशी तिथि शुरू हो रही है, इसलिए उत्पन्ना एकादशी का व्रत इस बार 15 नवंबर, शनिवार को ही रखा जाएगा।
इन बातों का रखें ध्यान
- चावल का सेवन: एकादशी के दिन सबसे बड़ी और सामान्य गलती है चावल का सेवन करना। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी के दिन चावल खाना पाप माना जाता है। शास्त्रों में एकादशी के दिन अन्न का त्याग करने का विधान है। इसके बजाय आप फल, दूध, या व्रत में खाए जाने वाले सात्विक आहार जैसे कुट्टू, सिंघाड़ा, साबूदाना आदि का सेवन कर सकते हैं।
- तामसिक भोजन का सेवन: व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से लेकर द्वादशी तक, घर में लहसुन, प्याज, मांसाहार और शराब जैसे तामसिक पदार्थों का सेवन पूर्ण रूप से वर्जित होता है। ये चीजें व्रत की पवित्रता को भंग करती हैं। व्रत वाले दिन इन चीजों का सेवन करने से व्रत का फल नष्ट हो जाता है।
- ब्रह्मचर्य का पालन न करना और क्रोध करना: एकादशी के दिन शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से शुद्ध रहना आवश्यक है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। इसके साथ ही, व्रत के दिन किसी के साथ झगड़ा, क्रोध, बुराई या मन में बुरे विचार लाने से बचना चाहिए। मन को शांत रखकर केवल भगवान विष्णु के नाम का जप करना चाहिए।
- बाल और नाखून काटना: उत्पन्ना एकादशी के दिन बाल कटवाना, नाखून काटना और दाढ़ी बनवाना अशुभ माना जाता है। ये सभी कार्य एकादशी व्रत के नियमों के विरुद्ध हैं और व्रत की पवित्रता को कम करते हैं। व्रत के दिन केवल स्नान पर ध्यान दें और सात्विक दिनचर्या अपनाएं।
- पारण सही समय पर न करना: व्रत रखने जितना ही महत्वपूर्ण है, व्रत का पारण यानी व्रत को खोलना सही समय पर करना। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि में ही किया जाता है। इसलिए हमेशा पंचांग देखकर पारण का शुभ मुहूर्त जानने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए।
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। यह दिन जगत के पालक भगवान विष्णु को समर्पित है। हर साल मार्गशीर्ष (अगहन) माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था, जिन्होंने असुर मुर का वध करके भगवान विष्णु को बचाया था। इसीलिए यह एकादशी अत्यंत पुण्यदायिनी मानी जाती है।
ये भी पढ़ें: 16 नवंबर को मनाई जाएगी वृश्चिक संक्रांति

