Chandigarh News : हरियाणा विधानसभा स्पीकर ने मनीषीसंत से लिया आर्शीवाद

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Haryana Vidhansabha speaker took blessings from Manish Sant
  •  हमारा “अहो भाग्य जो आपश्री चलकर आये

(Chandigarh News) चंडीगढ। हरियाणा विधानसभा स्पीकर हरफुल सिंह कल्याण ने मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक से आर्शीवाद प्राप्त किया और कहा मेरा अहो भाग्य जो आपश्री चलकर आये। इस दौरान श्री कल्याण ने मनीषीसंत से काफी लंबी चर्चा की।श्री कल्याण ने कहा आपश्री से ज्ञात हुआ कि 8 जुलाई को आचार्य भिक्षु की 300वीं जन्म जंयती है, आपश्री की कृपा से हम जरूर आचार्य श्री भिक्षु की पावन जंयती पर शामिल हूंगा।
मनीषीसंत के बारे मे क्या बोलूं वे तो साक्षात तप और त्याग की मूर्त है, इतने भीषण गर्मी मे इतनी उधेड उम्र मे सहज रूप से चलकर आना कोई आसान कार्य नही है। ये सब मनीषीसंत के तप का कमाल है।

आचार्य भिक्षु की अहिंसा सार्वभौमिक क्षमता पर आधारित थी

श्री कल्याण ने कहा आचार्य भिक्षु ने अपने मौलिक चिंतन के आधार पर नये मूल्यों की स्थापना की। हिंसा व दान-दया संबंधी उनकी व्याख्या सर्वथा वैज्ञानिक कही जा सकती है। आचार्य भिक्षु की अहिंसा सार्वभौमिक क्षमता पर आधारित थी। बडों के लिए छोटो की हिंसा और पंचेन्द्रिय जीवों की सुरक्षा के लिए एकेन्द्रिय प्राणीयों का हनन आचार्य भिक्षु की दृष्टि में आगम समस्त नहीं था। अध्यात्म व व्यवहार की भूमिका भी उनकी भिन्न थी। उन्होंने कभी ओर किसी भी प्रसंग पर दोंनो को एक तुला से तोलने का प्रयत्न नहीं किया।

संघर्ष के बाद सफलता मिलती है, जो हमें खुशी प्रदान करती है

मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने कहा संघर्षमय जीवन अपने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जैसे आंच में तप कर सोना कुंदन बनता है वैसे मनुष्य भी संघर्ष की आंच में तपकर मनुष्य बनता है। उसमें जीवनोपयोगी गुणों का विकास होता है, जो उसे परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाते हैं। ऐसा व्यक्ति निर्भीक, स्पष्टवादी और विचारक होता है और बाद के जीवन में दुखों को बड़ी आसानी से बर्दाश्त कर लेता है। संघर्ष चाहे स्वयं के लिए किया गया हो या दूसरों के उत्थान के लिए, यह अंतत: हमारे स्वास्थ्य और संवृद्धि में सहायक होता है। संघर्ष के बाद सफलता मिलती है, जो हमें खुशी प्रदान करती है।

ऐसी सोच केवल एक व्यक्ति की नहीं, लेकिन बहुत से लोगों को अपने जीवन में कभी न कभी ऐसे विचार आते है

मनीषी श्री संत ने अंत मे फरमाया हर व्यक्ति को अपने कर्मों और पुरूषार्थ के आधार पर ही फल मिलता है। आप ने कई बार लोगों को ऐसा कहते सुना होगा कई इंसान कहते हैं कि उसे अपने जीवन में न्याय नहीं मिला। मुझे अपने जीवन में भेदभाव का सामना करना पड़ा। मेरे आस पास ऐसे लोग है जिन्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है। कई लोगों को अपने जीवन में रत्ती भर भी दुख या कष्ट का सामना नहीं करना पड़ा। मैं इतनी पढ़ाई करता हूँ, लेकिन मेरे सहपाठी कितने अंक प्राप्त कर लेते है। अमुक व्यक्ति कोई ठोस कामभी नहीं करता, फिर भी उसे कितनी प्रशंसा मिलती है। ऐसी सोच, ऐसे विचार आप को कई बार सुनने पड़े होगें। ऐसी सोच केवल एक व्यक्ति की नहीं, लेकिन बहुत से लोगों को अपने जीवन में कभी न कभी ऐसे विचार आते है।

हमारा बहुत सारा समय अपने आप को दूसरों के साथ तुलना करने में निकल जाता है। क्या ऐसी तुलना सकरात्मक या फलदायी होती है? सेब और संतरा दोनों की फल है लेकिन दोनों में तुलना करना बेमानी है। दोनों फलों के अपने गुण है, दोनों भिन्न हैं, दोनों को एक मापदंड से नहीं आंका जा सकता। इसी तरह हर एक आत्मा अपने आप में एक अलग पहचान लिए होती है। हमारे कर्म-पुरूषार्थ के साथ मिल कर तय करते है कि हमें क्या मिलता है और क्या नहीं मिलता है। जो फल हमें अब मिलता है। वह हमारे वर्तमान के कर्म और पिछले कर्मो के आधार पर ही मिलता है। तो क्या तुलना करना ठीक है? क्या ऐसा करने से कोई ठोस परिणाम निकलता है? क्या हम सिर्फ तुलना अपनी शिकायतों और हताशा को हलका करने के लिए करते है?तुलना करना गलत नहीं है, यदि वह स्वस्थ तुलना है और हम किसी को हराने की मंशा से नहीं करते लेकिन अपनी कमियों पर विजय पाने के लिए करते है।

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