आंवले के पेड़ में होता है भगवान विष्णु का वास
Akshaya Navami, (आज समाज), नई दिल्ली: सनातन धर्म में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बड़ा ही विशेष माना जाता है। इस दिन अक्षय नवमी मनाई जाती है। इस दिन किए गए दान, जप, तप और पूजन के पूरे फल साधक को प्राप्त होते हैं, इसलिए ये तिथि विशेष मानी जाती है। इस दिन जो कोई भी दान, जप, तप और पूजा करता है उसके फल कभी क्षीण नहीं होते। यही कारण है कि इसे अक्षय कहा गया है, जिसका अर्थ है कभी समाप्त न होना।
अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का वास आंवले के पेड़ में होता है। इस दिन आंवले के पेड़ का पूजन किया जाता है। श्रद्धालु आंवले के पेड़ की पूजा करके भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की उपासना करते हैं, जिससे जीवन में समृद्धि, सौभाग्य आता है। इस साल अक्षय नवमी 31 अक्टूबर को मनाई जाने वाली है।
सतयुग का प्रारंभ
पौराणिक कथाओं और धर्मशास्त्रों में अक्षय नवमी के दिन का खास महत्व बताया गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, अक्षय नवमी का ही वो दिन था जब श्री हरि विष्णु ने आंवले के पेड़ में वास किया था। यही वजह है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। अक्षय नवमी के दिन भक्त आंवले के पेड़ के नीचे श्री हरि और माता लक्ष्मी की उपासना करते हैं। इससे उन्हें अक्षय पुण्य, सुख-समृद्धि मिलती है।
एक अन्य मान्यता ये भी है कि अक्षय नवमी के दिन सतयुग का प्रारंभ हुआ था, इसलिए इस तिथि को सत्य, धर्म और नए युग के आरंभ का प्रतीक बताया जाता है। इस दिन व्रत, स्नान और दान करने से जीवन में सुख-शांति मिलती है।
धार्मिक कार्य का अक्षय फल
अक्षय नवमी के दिन किए गए सत्कर्म व्यक्ति के पापों को नष्ट कर देते हैं। इस दिन गंगा स्नान, गोसेवा, और जरूरतमंदों को अन्न व वस्त्र दान करना चाहिए। महिलाओं के लिए अक्षय नवमी का दिन बहुत विशेष होता है, क्योंकि महिलाएं इस दिन परिवार की सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन जो भी धार्मिक काम किया जाता है उसका फल अक्षय रहता है। मतलब उसका कभी समापन नहीं होता।

