आज के दिन पितरों का श्राद्ध और शिवजी की पूजा करना माना गया है विशेष फलदायी
Trayodashi Shradh, (आज समाज), नई दिल्ली: सनातन धर्म में तिथियों का विशेष महत्व है। त्रयोदशी तिथि इनमें से एक है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 19 सितंबर शुक्रवार को है। इस दिन बहुत ही अद्भुत संयोग बन रहा है। क्योंकि, त्रयोदशी श्राद्ध पर शुक्र प्रदोष व्रत के साथ मासिक शिवरात्रि व्रत का दुर्लभ योग बन रहा है। पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य कन्या राशि में रहेंगे और चंद्रमा सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक कर्क राशि में रहेंगे। इसके बाद सिंह राशि में गोचर करेंगे।
अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। अब सवाल है कि आखिर त्रयोदशी श्राद्ध कब और इसका महत्व क्या है? त्रयोदशी पर 2 दुर्लभ संयोग कौन से बन रहे हैं? श्राद्ध के साथ किस देव के लिए रखा जाएगा व्रत? पूजा करने की सही विधि क्या है? आइए जानते हैं इस बारे में।
त्रयोदशी पर किया जाने वाला श्राद्ध विशेष रूप से निम्नलिखित पितरों के लिए होता है
- त्रयोदशी को मृत्यु पाने वाले पूर्वज: अगर किसी प्रियजन का देहांत त्रयोदशी तिथि पर हुआ हो, तो उनका श्राद्ध इसी दिन करना उपयुक्त माना जाता है।
- जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो: कई बार ऐसा होता है कि किसी परिजन की मृत्यु कब हुई, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं होती. ऐसी स्थिति में त्रयोदशी को उनका श्राद्ध किया जा सकता है।
- बाल्यावस्था में मृत्यु: जिन बच्चों की मृत्यु कम उम्र में हो गई हो, उनके लिए भी त्रयोदशी का दिन विशेष रूप से निर्धारित है।
श्राद्ध कैसे किया जाता है?
श्राद्ध एक पवित्र क्रिया है, जिसे संपूर्ण श्रद्धा और शांति के साथ किया जाना चाहिए।
- स्नान और स्थान की सफाई: सबसे पहले स्वयं स्नान कर स्वच्छ हो जाएं. श्राद्ध स्थल को भी गंगाजल से शुद्ध करें।
- सही समय का चयन: श्राद्ध दोपहर के समय, खासकर कुतुप काल (लगभग 11:36 से 12:24 बजे के बीच) में करना उत्तम होता है।
- तर्पण विधि: दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें. कुश, जल, गंगाजल, दूध, जौ, शक्कर और काले तिल मिलाकर तर्पण करें।
- पितरों का मंत्र: ॐ पितृ देवतायै नम: या ॐ पितृ गणाय विद्महे जगत धारिणे धीमहि तन्नो पितृ: प्रचोदयात् का जाप करें।
- ब्राह्मणों को आमंत्रित करें: श्राद्ध में ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराना जरूरी होता है। उन्हें कुश या आसन पर बैठाएं और पूरे सम्मान से भोजन कराएं।
- दान और दक्षिणा: भोजन के बाद अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें वस्त्र, अन्न, दक्षिणा आदि दें।
- जीवों के लिए अन्न निकालें: गाय, कौए, कुत्ते और चींटियों के लिए भी अन्न अवश्य निकालें, इसे पुण्य का कार्य माना जाता है।
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