Yogi government facing problem due to the negligence of officers: अफसरों की लापरवाही से योगी सरकार को झटका

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उत्तरप्रदेश के मूख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हाड़तोड़ मेहनत करते हैं लेकिन अफसरशाही का लिजलिजापन अक्सर उनके श्रम पर पानी फेर देता है। करीब सवा तीन साल के कार्यकाल में बहुत बार ऐसा देखा गया है। महामारी कोरोना के आपदकाल में मरीजों के इलाज से लेकर किसानों, बेरोजगार हुए प्रवासी कामगारों से लेकर शहर गांव की तमाम चुनौतियों से मुकाबिल योगी सरकार को फिलहाल 69 हजार बेसिक शिक्षकों की भर्ती के मामले में जोर का अदालती झटका लगा है और वह भी अफसरों की गलतियों के चलते । सरकार की पैरवी के लिए विभिन्न विशेष योग्यताओं के चलते उच्च पदस्थ वकीलों की हालत तो माशाल्लाह है ही।
हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने  उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाकर  सरकार को वाकई तगड़ा झटका दिया है। वह भी उस समय जब सरकार को लग रहा था कि कोरोना काल में एक साथ इतनी बड़ी तादाद में युवाओं को रोजगार मिल जाएगा तो माहौल बेहतर होगा। यह रोक उस समय लगी है जब चयनित शिक्षकों की तैनाती के लिए कॉउंसलिंग प्रक्रिया शुरू हो गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा कि गत आठ मई को परीक्षा परिणाम घोषित करने संबधी नोटीफिकेशन पर रोक लगाई जाती है। साथ ही चयन की सारी अग्रिम प्रक्रिया अगला सुनवाई तक रुकी रहेगी। अगली सुनवाई 12 जुलाई को होगी।
यह आदेश जस्टिस आलोक माथुर की एकल पीठ ने सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से अलग-अलग दाखिल ढाई दर्जन ने अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। सही विकल्पों की स्पष्टता के लिए कोर्ट ने अंतिम उत्तर कुंजी से संबंधित अभ्यर्थियों की आपत्तियों को दस दिनों में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन  को भेजने का आदेश दिया है। यूजीसी के सचिव एक विशेषज्ञ पैनल का गठन कर, उक्त आपत्तियों पर दो सप्ताह में रिपोर्ट परीक्षा नियामक प्राधिकरण को भेजेंगे जो शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट अदालत में पेश करेगी।
हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं में आठ मई को जारी अंतिम उत्तर कुंजी के कुछ उत्तरों पर आपत्ति जताई गई है। पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि प्रथमदृष्टया यह कोर्ट पाती है कि आंसर की में दिए गए कुछ उत्तर स्पष्ट तौर पर गलत हैं। कुछ ऐसे भी प्रश्न हैं जिनके उत्तर पूर्व की विभिन्न परीक्षाओं में वर्तमान आंसर की से अलग बताए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि हमारे विचार से प्रश्न पत्र का मूल्यांकन करने में त्रुटि हुई है जिसका खामियाजा बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों  को भुगतना पड़ेगा। वैसे राज्य सरकार ने  स्वयं अपने जवाबी हलफनामे में स्वीकार किया है कि कुछ प्रश्न हैं जो विवादपूर्ण हैं और जिनके एक से अधिक उत्तर सही हो सकते हैं।
अदालत ने महाधिवक्ता और मुख्य स्थायी अधिवक्ता की इस दलील को ठुकरा दिया कि भले ही कुछ प्रश्न व उत्तर विवादपूर्ण हैं किंतु, कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। ऐसे विवाद में परीक्षा प्राधिकरण की बात को माना जाना चाहिए। कोर्ट ने राज्य सरकार की इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि वैकल्पिक प्रश्नों में विवादपूर्ण प्रश्नों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
याचियों की ओर से अधिवक्ताओं ने तर्क रखते हुए कहा कि ये प्रश्न या तो भ्रमित करने वाले हैं या इनके एक से अधिक उत्तर हैं। उनका तर्क था कि यदि इन 13  प्रश्नों के अंक याचियों को दे दिए जाएं तो वे मेरिट में स्थान पाकर चयनित हो सकते हैं। परीक्षा में सामान्य और ओबीसी के लिए 65 प्रतिशत एवं एससीएसटी के लिए 60 प्रतिशत की कटआॅफ रखी गई थी। याचियों में कुछ एक, दो या तीन अंकों से मेरिट में आने से रह गए थे।

याचिकाओं में उठाए गए सवाल बेसिक शिक्षा महकमे के अफसरों की घोर लापरवाही की तस्दीक करते हैं।

(प्रश्न संख्या-143) ह्यशैक्षिक प्रशासन उपयुक्त विद्यार्थियों को उपयुक्त शिक्षकों द्वारा समुचित शिक्षा प्राप्त करने योग्य बनाता है जिससे वे उपलब्ध साधनों का उपयोग करके अपने प्रशिक्षण में सर्वोत्तम को प्राप्त करने में समर्थ हो सकें’ यह परिभाषा दी गई है- उक्त प्रश्न का सही उत्तर कुंजी में ‘विकल्प संख्या -3 ‘वेलफेयर ग्राह्य’ बताया गया जबकि याचियों का कहना था कि इस प्रश्न का इंग्लिश वर्जन अलग है, और सही उत्तर ‘ग्राहम बेलफोर’ का विकल्प ही नहीं दिया गया है।

(प्रश्न संख्या 39) ‘नाथपंथ’ नामक संप्रदाय के प्रवर्तक कौन थे?

उक्त प्रश्न का सही उत्तर ‘विकल्प संख्या -1 मत्स्येन्द्रनाथ’ बताया गया जबकि याचियों ने ‘विकल्प संख्या -2 गोरखनाथ’ को सही उत्तर होने का दावा किया है।

(प्रश्न संख्या-131) इनमें से भारतीय संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष कौन थे?

उक्त प्रश्न का सही उत्तर ‘विकल्प संख्या -1 डॉ. सचिदानन्द सिन्हा’ को बताया गया है। जबकि याचियों की ओर से कहा गया कि सभी अधिकृत पुस्तकों व लोकसभा की वेबसाइट तक पर ‘डॉ. राजेन्द्र प्रसाद’ को सही उत्तर बताया गया है।

(प्रश्न संख्या -137) पढ़ने-लिखने की अक्षमता है?
इस प्रश्न का सही उत्तर ‘विकल्प संख्या 2 डिस्लेक्सिया’ बताया गया है जबकि याचियों का कहना है कि ह्यविकल्प संख्या-3 डिस्प्रेक्सिया’ सही उत्तर है।

 (प्रश्न संख्या 70) निम्न लिखित में कौन सा एक सामाजिक प्रेरक है?
इस प्रश्न का सही उत्तर ‘विकल्प संख्या -1 आत्मगौरव’ बताया गया है जबकि याचियों ने ‘विकल्प संख्या -2 प्रेम’ को सही उत्तर बताया है।
हाईकोर्ट के इस फैसले पर कांग्रेस महासचिव व यूपी प्रभारी प्रियंका वाड्रा ने ट्वीट कर कहा कि यूपी सरकार की अव्यवस्था के चलते तमाम भर्तियां कोर्ट में अटकी हैं। प्रियंका का कहना है कि ‘एक बार फिर से प्रदेश के युवाओं के सपनों पर ग्रहण लग गया। यूपी सरकार की अव्यवस्था के चलते तमाम भर्तियां कोर्ट में अटकी हैं। पेपर लीक, कटआॅफ विवाद, फर्जी मूल्यांकन और गलत उत्तरकुंजी। इन सारी कमियों के चलते 69000 शिक्षक भर्ती का मामला लटका हुआ है। सरकार की लापरवाही की सबसे ज्यादा मार युवाओं पर पड़ रही है।

 कोरोना के मोर्चे पर बेहतर काम
इसमें शक नही की कोरोना के खिलाफ जंग में भाजपा शासित अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश की तैयारियां और चुनौतियों को देखते हुए नतीजे सबसे अच्छे हैं और इसका श्रेय मूख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाता है। राज्य में अभी तक तीन लाख से  लोगों की जांच हो चुकी है। क्रियाशील 31 प्रयोगशालाओं में प्रतिदिन 10 हजार सैम्पल की जांच की जा रही है और मुख्यमंत्री इसको और बढ़ाना है। 15 जून तक प्रतिदिन 15 हजार और 30 जून तक प्रतिदिन 20 हजार टेस्ट का लक्ष्य रखा गया है। कोरोना मरीजों के इलाज के लिए सीएम योगी ने प्रदेश में एल-1, एल-2 और एल-3 के 503 कोविड अस्पताल बनवाए हैं जिसमें 1 लाख 1 हजार 236 बेड उपलब्ध हैं।  एल-1 के 403 अस्पतालों में 72934 बेड, एल 2 के 75 अस्पतालों में 16212 बेड और एल 3 के 25 अस्पतालों में 12090 बेड मौजूद हैं। इसके अलावा केवल कोरोना मरीजों के लिए 2000 से ज्यादा वेंटिलेटरों की व्यवस्था भी इन अस्पतालों में है। प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा मेडिकल स्क्रीनिंग हो, इस दिशा में सीएम योगी रोजाना टीम-11 की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं ।इस काम में स्वास्थ्य महकमे की एक लाख मेडिकल टीमें दिन-रात लगी हुई हैं. जिसका नतीजा है कि अब तक 4 करोड़ 85 हजार 700 से ज्यादा लोगों की मेडिकल स्क्रीनिंग की जा चुकी है ।इस दौरान जांच टीमें 78 लाख 86 हजार 400 से अधिक घरों तक पहुंची हैं ।इसके अलावा मेडिकल टीमों की मदद के लिए आशा बहुओं को भी लगाया गया है। प्रदेश सरकार ने दूसरे राज्यों से अब तक यूपी में पहुंचे 30 लाख से अधिक प्रवासी कामगार व श्रमिक के लिए क्वारंटीन सेंटर की व्यवस्था भी की है ।15 लाख की क्षमता के इन क्वारंटीन सेंटर में लोगों को गुणवत्ता परक भोजन दिया जा रहा है ।इसके साथ ही इन सेंटरों में रोके गए सभी श्रमिक व कामगार की मेडिकल स्क्रिनिंग व जांच कराई गई है। मेडिकल स्क्रिनिंग में स्वस्थ मिले कामगारों एवं श्रमिकों को राशन पैकेट और 1 हजार रुपये की सहायता राशि देकर उन्हें होम क्वारंटीन में भेजा जा रहा है। इसके अलावा जो अस्वस्थ मिले उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया। कोरोना संदिग्ध की सूचना देने, उनकी जांच कराने व उन पर नजर रखने के लिए मुख्यमंत्री योगी ने हर ग्राम पंचायतों और वार्ड निगरानी समितियों का भी गठन कर रखा है। ये समितियां किसी भी प्रवासी के आने व किसी के संक्रमित होने की जानकारी देती हैं। इसके अलावा मेडिकल स्क्रिनिंग में सरकार की मदद ये समतियां कर रही हैं।


हेमंत तिवारी
(लेखक उत्तर प्रदेश पे्रस मान्यता समिति के अध्यक्ष हैं।) यह इनके निजी विचार हैं।

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