Two Economies and Their Perspectives! दो अर्थव्यवस्थाएं और उनका दृष्टिकोण!

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2014 में नरेंद्र मोदी मिनिमम गवर्नमेंट, अधिकतम गवर्नेंन्स के नारे के साथ सत्ता में आए थे। और 2019 के बाद से, प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका को कम करने की बात पर जोर दिया और एक ऐतिहासिक कॉपोर्रेट टैक्स कटौती की।
लाल किले की प्राचीर से 2019 में स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने जनता से राष्ट्र के धन निमार्ताओं को पहचानने, प्रोत्साहित करने, उनपर शंका न करने और उन्हें अधिक सम्मान देने को कहा। इसके पक्ष में तर्क था कि यदि धन का निर्माण नहीं किया जाता है, तो धन का वितरण नहीं किया जा सकता। और यदि धन का वितरण नहीं किया जाता तो हम अपने समाज के गरीब वर्ग का उत्थान नहीं कर सकते। लेकिन 2019-20 में निजी खपत की मांग में तेज गिरावट के कारण विकास दर घटकर लगभग 4 प्रतिशत रह गई।
व्यवसायों ने इस समय को निवेश करने और नई नौकरियां पैदा करने के लायक नहीं समझा। 2019-20 में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से जो अनुमानित 1.5 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुक्सान हुआ, वो व्यवसायों द्वारा अपने मुनाफे को बढ़ावा देने के लिए जेब में रख लिया गया। 2020 में कॉरपोरेट मुनाफे में फिर से 20-25 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि बाकी अर्थव्यवस्था महामारी से जूझ रही थी।
इस बार कंपनियों ने कर्मचारियों को निकाल दिया और लागत में कटौती कर मुनाफा हासिल किया। यह सवाल वाजिब है कि महामारी के प्रकोप और भविष्य की कमजोर विकास संभावनाओं में भारत का निजी क्षेत्र नए निवेश करने और नई नौकरियां पैदा करने का बीड़ा क्यों उठाएगा जब मौजूदा क्षमता अभी भी अप्रयुक्त पड़ी है? साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था में असमानताओं में तेज वृद्धि देखी गई है। 2020 में मध्यम वर्ग के एक तिहाई कम होने की संभावना है और लगभग 7.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिए गए हैं, दूसरी तरफ भारत दुनिया में तीसरा सबसे अधिक अरबपतियों वाला देश बन गया है। सनद रहे कि भारत दुनिया का पहला देश है जिसने 2005-06 से 2015-16 के बीच करीब 27 करोड़ जितने ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकाला और गरीबी करीब आधी यानी 55 प्रतिशत से 28 प्रतिशत रह गई। लेकिन अब के आंकडें खतरनाक हैं।
प्रधानमंत्री मोदी से बिलकुल उलट विचार, जो बाइडेन ने राष्ट्रपति के रूप में अमेरिकी कांग्रेस के अपने पहले संयुक्त भाषण में रखे और यह भाषण कई कारणों से काफी उल्लेखनीय था। मोदी के मिनिमम गवर्नमेंट, अधिकतम गवर्नेंन्स से अलग बाइडेन ने मोर गवर्नमेंट पर जोर दिया। अमरीका में राष्ट्रपति रीगन के समय से कम सरकार को अच्छा माना गया है।
लेकिन बाइडेन इससे उलट हैं क्योंकि ऐसी चीजें हैं जो केवल एक सरकार ही कर सकती है। इसी क्रम में उन्होंने आठ साल लंबी अमेरिकी नौकरियों की योजना की घोषणा की जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे बड़ी नौकरियों की योजना है। बाइडेन के अनुसार सार्वभौमिक पब्लिक स्कूलों और कॉलेज सहायता ने अमरीका में अवसरों के द्वार खोले। वैज्ञानिक सफलताएं उन्हें चांद पर ले गईं। बाइडेन बोले कि ये निवेश केवल सरकार ही करने की स्थिति में थी।
मिनिमम गवर्नमेंट के नारे पर उछलने का कोई अर्थ नहीं, इन नारों से असल में सरकारें अपनी जवाबदेही से मुक्त होने की कोशिश करती हैं और रोजगार एवं बुनियादे ढांचे जैसे मुद्दों से अपने आप को अलग कर लेती हैं, जो खतरनाक परिणामों का सूचक है। अपने भाषण में बाइडेन स्पष्ट थे कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए नौकरियां पैदा करना समय की जरूरत है। बाइडेन ने कहा कि वॉल स्ट्रीट पर अच्छे लोग हैं लेकिन अमरीका का निर्माण मध्यम वर्ग और यूनियनों ने किया है। बाइडेन ने मजदूर वर्ग के अधिकार की रक्षा और न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने और महिलाओं को समान वेतन देने के पक्ष में तर्क दिए। बाइडेन ने अपनी चार चुनौतियों में अच्छी शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण और किफायती बाल देखभाल, 12 सप्ताह तक का सशुल्क चिकित्सा अवकाश और एक परिवार में प्रत्येक बच्चे के लिए टैक्स क्रेडिट का विस्तार करने को रखा है।
इसके अलावा, बाइडेन ने स्वास्थ्य देखभाल के प्रीमियम की कीमत को कम करने का प्रस्ताव रखा। सवाल यह है कि यह कैसे होगा? इन योजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए, बाइडेन ने लंबे समय से चली आ रही तथाकथित ट्रिकल डाउन इकॉनमी(टीडीई) की धारणा को तोड़ दिया। बाइडेन ने कहा कि यह समय कॉपोर्रेट अमेरिका और सबसे धनी एक प्रतिशत अमेरिकियों के लिए अपने उचित हिस्से का भुगतान करने का है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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