Trikal Puja : साध्वियों ने परमात्मा की त्रिकाल पूजा कब और कैसे करे पर दी विशेष जानकारी

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा

Aaj Samaj (आज समाज), Trikal Puja, उदयपुर 11 सितम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में सोमवार को विविध आयोजन हुए ।

साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने पूजा के विवेचन में बताया कि जिस प्रकार डॉक्टर की दवा दिन में तीन बार लेनी होती हैं, जिस प्रकार इन्सान तीन टाइम भोजन करता है इसी प्रकार जिनेश्वर परमात्मा की उपासना भी त्रिकाल करनी चाहिए।

डॉक्टर द्वारा निर्दिष्ट समय पर दवा लेने से जैसे अवश्य फायदा होता है. ठीक जैसे ही शास्त्रकार महर्षियो द्वारा बताये गये समय कें अनुसार की गयी परमात्मा की त्रिकाल पूजा भी अवश्य सुंदर परिणाम आता है। श्रेणिक महाराजा, श्रीकृष्ण, चेाराजा, कुमारपाल राजा, वस्तुपाल, तेजपाल, पे भड़शा, झांझणशा उदायन, अंबडदेव, चाहड देव, बाहड देव, आलिंग देव आदि महापुरुष त्रिकाल जिनपूजा किया करते थे। आज के भक्तों ने प्रभु भक्ति को त्रिकाल में से एक काल में परिवर्तित कर रखी है। सुबह- दुपहर और शाम की सब भक्ति वे सुबहके में दस मिनट में ही कर लेते हैं। यह पद्धति ठीक नहीं है!

त्रिकाल पूजा परमात्मा की जिन पूजा का समय इस प्रकार का होता है। सुबह में पूजा सूर्योदय के पश्चात सामायिक प्रतिक्रमण के पश्चात रास क्षेप के द्वारा कहाँ दुपहर में पूजा दिन के मध्यभाग में अष्ट प्रकारी पूजा के द्वारा करें। और शाम को पूजा सूर्यास्त के पहले आरती मंगल दीपक आदि करें। इस प्रकार तीन पूजा की रीति और विधिका पालन करते हुए हमें पूजा क्रम को करना चाहिये। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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