The road to economic revival आर्थिक पुनरोत्थान की राह!

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ग्रेट लॉकडाउन(आईएमएफ), ग्रेट कोविड-19 रिसेशन(मॉर्गन स्टैनले), ग्रेट वायरस क्राइसिस(एड यार्डनी) और ग्लोबल हार्ड स्टॉप(ब्लूमबर्ग) जैसे तमाम नामों से जानी जाने वाली कोविड-19 महामारी ने दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को घुटने पर ला दिया है, इसे हम आर्थिक महामारी भी कह सकते हैं। अलग-अलग आंकलन बताते हैं कि यह महामारी भारतीय अर्थव्यवस्था को गहरी चोंट पहुंचाएगी। विश्व की तीनों बड़ी रेटिंग एजेंसी मूडीज, एस&पी और फिच भारत की अर्थव्यवस्था में क्रमश: 3.1, 5 और 5 प्रतिशत की गिरावट देख रहे हैं। इसके अलावा आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक का अनुमान क्रमश: -4.5 और -3.2 प्रतिशत का है। साथ ही क्रिसिल, इंडिया रेटिंग्स सहित अन्य रेटिंग एजेंसी भारत कि अर्थव्यवस्था में तकरीबन 5-7 प्रतिशत की गिरावट देख रही हैं। राहत की एक मात्र बात यह है कि मूडीज, एस&पी, फिच और आईएमएफ के मुताबिक अगले साल तक भारत की अर्थव्यवस्था ट्रैक पर आने लगेगी और इसके क्रमश: 6.9, 6.9, 9.5 और 6 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। लेकिन अगर स्थितियां नहीं सुधरी तो इन आंकड़ों में बदलाव देखने को मिल सकता है। सवाल यह है कि आखिर अर्थ्व्यास्था में फिरसे तेजी कैसे आएगी? मॉर्गन स्टैनले वैश्विक अर्थव्यवस्था की वी(श्) शेप रिकवरी देख रहा है। वी शेप रिकवरी तब होती है जब आर्थिक ठेहेराव स्थायी नहीं होता और यह तेजी से संकट के पूर्व की स्थिति में लौट आता है। इसका अलावा जेड(े) शेप रिकवरी (जिसमें आर्थिक ठेहेराव सिर्फ एक छोटी अवधि के लिए होता है और रोक हटते ही लोग खर्च करने लगते हैं), यू(व) शेप रिकवरी (जिसमें आर्थिक व्यवधान लंबे समय तक रहता है), डब्ल्यू(ह) शेप रिकवरी (जिसमें संक्रमण की दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था दूसरी बार गिर कर ठीक हो जाती है) और एल(छ) शेप रिकवरी (जिसमें अर्थव्यवस्था वर्षों के बाद भी जीडीपी के स्तर को हासिल करने में विफल रहती हैं) की भी संभावनाएं हैं। अमेरिका में हाल ही में वी शेप रिकवरी देखने को मिली थी लेकिन संक्रमण की दूसरी लहर के डर से अर्थव्यवस्था में फिर से ठहराव आ गया है। सवाल यह है कि भारत की पुनर विकास यात्रा कैसी रहेगी? भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रनोब सेन द्वारा विस्तृत विश्लेषण, जिसे आइडियाज फॉर इंडिया में प्रकाशित किया गया- बताता है कि भारत की अर्थव्यवस्था न केवल इस वर्ष बल्कि 2021-22 में भी धीमी रहेगी। सेन के मुताबिक भारत की पूर्ण जीडीपी 2019-20 (संकट से पूर्व) के स्तर पर वापस साल 2023-24 तक ही आने की संभावना है। सेन अपने विश्लेषण में लिखते हैं कि जैसे ही स्थितियां ठीक होती हैं, और अगर सरकार 2021-22 के लिए 2020-21 के व्यय बजट को बरकरार रखती है, तो यह संभावना है कि 2021-22 -8.8% की जीडीपी विकास दर का गवाह बने। यह एक भयावह सोच है क्योंकि इसका मतलब है कि देश एक पूर्ण विकसित अवसाद का अनुभव कर सकता है- एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हमारे इतिहास में यह पहला ऐसा अवसर होगा। विश्लेषण के मुताबिक कोविड संकट के साथ-साथ अपर्याप्त राजकोषीय प्रोत्साहन ने अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है, जिस वजह से भारत में एलोंगेटेड(लंबी) यू-शेप रिकवरी देखने को मिल सकती है।

इसके अलावा हाल ही में आया सेंट्रम इंस्टीट्यूशनल रिसर्च का विश्लेषण बताता है कि भारत की आर्थिक रिकवरी वी शेप के बजाय यू या डब्ल्यू शेप की होने की अधिक संभावना है क्योंकि कोविड-19 का प्रभाव एक ऐसे राष्ट्र पर गहरा होगा जो महामारी के पहले से ही आर्थिक विकास के लिए संघर्ष कर रहा था। सेंट्रम के मुताबिक भारत के 25 मार्च से शुरू होने वाल लॉकडाउन ने संक्रमण के फैलव और मृत्यु दर को कम रखा। लेकिन इसने संक्रमण के शिखर को थोड़े समय के लिए ही टाला। कुछ अनुमान कहते हैं कि भारत में संक्रमण नवंबर के आखिर तक चरम पर पहुंच सकता है। सेंट्रम के मुताबिक अगर लंबे समय तक संक्रमण प्रभावी रूप से मौजूद रहेगा तो लोग भी उतने ही लंबे समय तक घर पर रहेगें, जो आर्थिक पुनरुत्थान को प्रभावित करेगा। भारत पिछले 2-3 वर्षों से मांग में कमी देख रहा है। मंदी की आशंका तो पहले से ही थी महामारी ने उसे अप्रिय यथार्थ में बदल दिया। समस्या रोजगार की भी है, क्योंकि रोजगार से ही बाजार में मांग बढ़ती है। अर्थविद् जॉन मेनार्ड केंज के सिद्धांत यूं ही नही आर्थिक नीतियों का प्राण बन गए। उन्होंने सिखाया कि रोजगार ही मांग की गारंटी है, लोग खर्च तभी करेंगे जब उन्हें पता हो कि अगले महीने पैसा आएगा। फिलहाल समस्या गंभीर है, अलग-अलग आंकलन बताते हैं कि मौजूदा वर्ष में चीन को छोड़ सभी जी-20 अर्थव्यवस्थाएं शून्य से नीचे की विकास दर का गवाह बनेंगी। जरूरी है कि भावुकता से ज्यादा वास्तविकता में जिया जाए, तभी पुनर-उत्थान संभव है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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