Telemedicine is a new possibility …टेलीमेडिसिन एक नई सम्भावना…

0
186

इस कोरोना संकट में बहुत से ज्ञानी लोगों से सुनते आ रहे हैं कि संकट को भी अवसर में बदला जा सकता है, कुछ हद तक यह बात बिल्कुल सत्य है। 1980 में जब मैं चंडीगढ़ आया तो हालात आज जैसे नहीं थे। उस समय शहर की बहुत कम आबादी थी। देखते ही देखते शहर में रहने वालों ने तो अपनी जनसंख्या को दुगना किया ही, साथ ही साथ लाखों की संख्या में आज यहाँ प्रवासी मजदूर और अन्य कारोबारी भी आ गए।
यही नहीं आज चंडीगढ़ से सटे पंचकूला, मोहाली और जीरकपुर की जनसँख्या चंडीगढ़ से भी अधिक है और त्रासदी यह है कि ये लोग भी स्वयं को चंडीगढ़ का ही मानते हैं, अत: चंडीगढ़ ‘ट्राई’ सिटी’ कहलाने लगा। इस सारी जनसँख्या का बोझ पड़ा सड़कों और हस्पतालों पर। पहले चंडीगढ़ में दो ही बढ़िया चीजें थीं एक सड़कें और दूसरा चिकित्सा सुविधा। 80 के दशक में जिस चंडीगढ़ की पीजीआई में इलाज करवाना स्वर्ग समान था, वही आज नरक समान है।
पीजीआई ही क्यों सेक्टर 32 के मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल, सेक्टर 16 के हॉस्पिटल और अन्य छोटी डिस्पेंसरियों में आज जाना सीधा मुसीबत मोल लेना है। यदि हम अकेले पीजीआई की बात करें तो चंडीगढ़ पीजीआई में प्रतिदिन दस हजार मरीज आते हैं। यदि सेक्टर 32 के मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल, सेक्टर 16 के सिविल हॉस्पिटल और छोटी डिस्पेंसरियों की बात करें तो इन सभी सरकारी हस्पतालों में लगभग 25000 मरीज प्रतिदिन डॉक्टरों द्वारा देखे जाते हैं। यही हाल देश के लगभग सभी बड़े शहरों का है। प्रत्येक मरीज के साथ कम से कम एक सहयोगी नहीं तो दो दो भी हस्पताल पहुँच जाते हैं।
इस प्रकार से केवल चंडीगढ़ के सरकारी हस्पतालों में लगभग 50,000 व्यक्ति प्रतिदिन प्रवेश करते हैं। पीजीआई में अब अधिकतर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश तक के लोग इलाज करवाने आते हैं। न मरीज को खड़े होने की जगह, न अटेंडेंट को और न ही कहीं पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने की जगह। मैंने तो रोहतक स्थित पीजीआई भी देखा है; वहाँ तो साक्षात नरक के दर्शन हो जाते हैं। अब बात करते हैं इस कोरोना काल में उभरी नई पद्दति टेलीमेडिसिन की। श्रीमती जी को बीपी की बीमारी है, जो एक क्रोनिक बीमारी होती है और उसका सर्टिफिकेट बन जाये तो आउटडोर इलाज के पैसे डिपार्टमेंट से वापिस मिल जाते हैं। वह सर्टिफिकेट पांच वर्ष के लिए बनता है और उसे फिर रिन्यू करवाने के लिए डॉक्टर के समक्ष पेश होना पड़ता है।
वह सर्टिफिकेट केवल निर्धारित बड़े हस्पतालों में ही बनाया जाता है। कोरोना के समय पिछले महीने उस सर्टिफिकेट की अवधि समाप्त हो गई तो मैंने मेडिकल सुपरिंटेंडेंट, सेक्टर 32, चंडीगढ़ के आॅफिस में फोन किया तो एक अधिकारी ने सुझाव दिया कि मैं टेलीमेडिसिन डिपार्टमेंट में फोन करूँ तो वहाँ आपको जांच लिया जाएगा और दवाई या जो भी करवाई होगी वह बता देंगे। मैंने झिझकते हुए वहाँ फोन किया तो पाया कि इससे बढ़िया तो आजतक कुछ भी नहीं था। अलग अलग मेडिकल विभागों के डॉक्टरों की टीम अलग अलग बैठी है। उनके पास एक मोबाइल फोन है और एक लैंडलाइन है। सभी विभागों के फोन उनकी वेबसाइटों पर दिए हुए हैं।
आपको अपनी पूरी बीमारी की हिस्ट्री, सारे कागजों, रिपोर्टों और यदि किसी अंग की फोटो भेजनी हो तो वह सारा सामान सम्बंधित विभाग के मोबाइल पर व्हाट्सएप के द्वारा भेज देना है। आधे घंटे तक आपके पास डॉक्टर द्वारा पूछे गए प्रश्न आ जायेंगे, आप उनका जवाब देंगे और कुछ देर बाद या तो आपके पास डॉक्टर द्वारा लिखी पर्ची व्हाट्सएप द्वारा आ जायेगी या लिखा आएगा कि लैंडलाइन पर कॉल करें। लैंडलाइन पर इसलिए कि डॉक्टर लैंडलाइन से बात करेंगे और मोबाइल के व्हाट्सएप पर आपकी हिस्ट्री देखते रहेंगे। आप जब कॉल करेंगे तो आपकी डॉक्टर से तसल्ली पूर्वक बात होगी और फिर आपका उपचार शुरू हो जाएगा।
इस टेलीमेडिसिन के द्वारा मैं इन पिछले दो महीनों में अपने परिवार के चार सदस्यों का स्किन, आॅर्थो, और जनरल मेडिसिन/डायबटीज में  इलाज करवा चुका हूँ। यदि डॉक्टर आपको कोई टेस्ट लिखेंगे तो आप वे टेस्ट करवा कर उन्हें पुन: व्हाट्सएप द्वारा भेज सकते हैं, वे आपसे फिर स्वयं सम्पर्क कर लेंगे। डॉक्टर आपको निर्देश देंगे कि आपको कितने दिन बाद दोबारा दिखाना है। इतना सुविधाजनक और इतना सरल तरीका इस देश में कोरोना की वजह से ही सम्भव हो पाया है। इस पद्धति द्वारा अनेक दिक़्कतों से छुटकारा मिल जाता है।
न लाइन में खड़े हो कर पर्ची बनवानी, न डॉक्टर का इंतजार करना, न अपने नंबर की आवाज का इंतजार करना। हाँ यदि सरकार चाहे तो जो 10 या 20 रुपये की फीस होती है वह भी आॅनलाइन दी जा सकती है, बेशक 50 या 100 रुपये किये जा सकते हैं। टेलीमेडिसिन का यह तरीका कोरोना से छुटकारा मिलने के बाद भी जारी रखा जा सकता है। बहुत से ऐसे मरीज होते हैं जिनको डॉक्टर केवल हाल जानकर ही दवाई लिख देते हैं, इस टेलीमेडिसिन के द्वारा ऐसे अनेक मरीजों का इलाज घर बैठे सम्भव है।
यदि डॉक्टर यह समझते हैं कि मरीज को बुलाना आवश्यक है, जैसे आॅपरेशन या अन्य आवश्यकता हो तो डॉक्टर टेलीफोन पर उन्हें सीधे तारीख और समय बता सकते हैं जिससे दोनों को सुविधाजनक रहेगा और भीड़ बढ़ने से बचेगी। आज भारत के हस्पतालों में भीड़ को देखते हुए यह आवश्यक है कि इस पद्धति का अधिक से अधिक प्रयोग हो। हस्पतालों में जाना स्वयं किसी इंफेक्शन या बीमारी को निमंत्रण देना है। इस पद्धति में एक ऐसे सॉफ्टवेयर की आवश्यकता है जिसमें हॉस्पिटल मरीज का पूरा डेटा सुरक्षित रख सके जोकि  बहुत ही आसान काम है। मेरा यह मानना है कि जब भी मरीज डॉक्टर के पास जाता है तो कुछ न कुछ बताना भूल जाता है और बाद में उसे यह मलाल रहता है कि यह बात तो बताई ही नहीं? इसमें आपको सब कुछ डॉक्टर को स्वयं लिखकर भेजना है, अत: आप आराम से सबकुछ सोचकर लिख सकते हैं और यदि कुछ छूट भी जाता है तो आप एक मैसेज और भेज सकते हैं।

वीपी शर्मा
(लेखक स्तंभकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

SHARE