Why the metros started sinking: क्यों डूबने लगे महानगर

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देश के कई राज्यों मे बारिश से बुरा हाल हुआ पड़ा है। कुछ इलाके तो पूरी तरह जलमग्न हो चुके है जिस वजह से मानव-जीवन अस्त व्यस्त हो गया।
लगातार बारिश से महानगरों का ज्यादा बुरा हाल है। ज्ञात हो अब से दो दशक पूर्व यदि इतनी बारिश आ भी जाती थी तो जान माल का इतना नुकसान नही होता था। क्या कभी यह सोचा है कि अब यह सब क्यों हो रहा है क्योंकि इंसान ने अब प्रकृति व पर्यावरण के साथ ज्यादा छेड़छाड करनी शुरू कर दी। यहां छेडछाड से अभिप्राय है कि पेड़-पौधो का लगातार काटना व वन्य जीवन को समाप्त करना। जबकि एक बात समझने की यह है कि पहले की अपेक्षा बारिश भी कम होने लगी। आईआईटी मुम्बई के शोधकतार्ओं के अनुसार 632 जिलों मे से 238 जिलो मे बारिश का पैर्टन लगातार बहुत जल्दी से बदलता जा रहा है। पिछले कुछ वर्ष के आंकड़ो के अध्ययन को देखें तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव राजस्थान, गुजरात व महानगरों पर पड़ा है।
आज के आधुनिक समय मे जनसंख्या वृध्दि की वजह से जंगलों का विनाश लगातार जारी है। मनुष्य इस बात से जानकर भी अंजान बना हुआ है कि पेड हमारी जिंदगी के पर्यायवाची है। जैसा कि हम यह बात बचपन से पड़ते व समझते आ रहे है पेडो से हमे आॅक्सीजन मिलता है जो इंसान की जिंदगी के लिए बेहद जरुरी है लेकिन हम इस बात को जानकर भी अनजान बने रहते है जिसका दुष्परिणाम अब लगातार देखने को मिल रहा है। जंगल प्रकृति की सबसे बड़ी देन मानी जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया मे हर साल एक करोड हेक्टेयर इलाके के वन काटे जा रहे है। अकेले भारत मे 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मे फैले जंगल कट रहे है।
इस वजह से हर देश के हर राज्य का मौसम प्रभावित होने लगा। शहरीकरण के लालच व विकास की भूख ने हमारे जीवन से हरियाली को खत्म कर दिया। इसकी वजह से एक अन्य कू-प्रभाव पडने लगा,महानगरों मे मनुष्य की आयु 60 से 65 वर्ष तक ही सीमित होकर रह गई लेकिन आज भी गांव मे 90 से 100 वर्ष तक उम्र बची है। अब से लगभग ढाई दशक पूर्व इतनी बीमारियां नही हुआ करती थी लेकिन आज के युग मे रोजाना एक नई बीमारी का जन्म होने लगा। छोटी उम्र मे मधुमेह व हार्ट अटैक बीमारी देश के भविष्य को खोखला कर रही है। वनों की कटाई से मिट्टी, पानी व वायु सरक्षण होता है जिसके फलस्वरुप हर वर्ष 16,400 करोड़ से अधिक वृक्षों की अनुमानित मात्रा मे कमी आ गई। वनों की कटाई भूमि की उत्पादकता पर विपरित प्रभाव डालती है। बाढ़ व सूखा, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति का नुकसान, वायु प्रदुषण, ग्लोबल वार्मिंग, पक्षियों व जानवरों की विलुप्त जातियां के अलावा भी कई अन्य तरह के नुकसान होने लगे। यदि हम दिल्ली व एनसीआर की ही बात करें तो यहां जंगल व हरियाली के नाम पर सब शून्य समान हो गया। यदि हम उदाहरण के तौर पर दिल्ली से सटे नोएडा व ग्रेटर नोएडा के अलावा गाजियाबाद के राज नगर को देखें तो इन इलाको से दिल्ली मे हर मौसम का असर बना रहता था लेकिन अब यहां इतनी बडी बडी व ज्यादा बिल्डिगें बन चुकी कि राजधानी के मौसम मे भारी असमानता आने लगी। इसके अलावा प्रदूषण भी लोगो की जान पर बन आया। इतिहास मे हमने सुना व स्वयं देखा भी है कि स्कूलों की छुट्टी गर्मियों व सर्दियों की पड़ती थी लेकिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली मे पिछले तीन वर्षों से प्रदूषण की छुट्टी पडने लगी। इस बात को कैसे भी हल्के मे नही ले सकते।
आखिर यह बात समझने की है कि अब महानगरों की दिशा व दशा लगातार चिंताजनक होती जा रही है। यदि इस मामले मे गंभीरता नही दिखाई तो आने वाली पीढी के लिए बहुत बड़ा खतरा होना तयशुदा है। जैसा कि भारत बहुत बडा जनसंख्या वाला देश बन चुका है। बढ़ती जनसंख्या के कारण रोजाना विकास करना अनिवार्य हो गया। अब लोगों को गांव का माहौल कम भाने लगा।
हर व्यक्ति सभी तकनीकियों का फायदा उठाना चाहता है लेकिन विकास व तरक्की के साथ हमे प्रकृति के साथ संपर्क की ओर भी ध्यान देना पडेगा। यह बात गौर करने वाली है जहां ज्यादा वृक्ष या हरियाली होती है वंहा कितनी भी बारिश आ जाए लेकिन मानव जीवन को खतरा नही होता होता क्योंकि जंगल,वन व हरियाली उस क्षेत्र को प्रभावित नही होने देते। महानगरों का आलम तो यह है कि यहां दो दिन की बारिश मे टू-व्हीलर व कारें तैरने लगती है क्योंकि पानी के रिसाव की सीमा बहुत ही सीमित स्तर पर बनाई जाती है।

योगेश कुमार सोनी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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