- राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद झारखंड में बड़े राजनेता की पदवी पा गए ‘गुरुजी’
राजीव रंजन तिवारी, (आज समाज): सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि दिल्ली भी दुखी है। आदिवासी समाज की अस्मिता को जल-जंगल-जमीन से जोड़ने वाला नायक जो चला गया। सियासी अस्थिरता के बावजूद बड़े राजनेता की अघोषित पदवी पाने वाले ‘गुरुजी’ यानी शिबू सोरेन की याद उनके प्रेमियों को रुला रही है। नाम के अनुरूप शिबू बेहद शिष्ट, विनीत व विचारशील थे।
एक जननायक का चला जाना हतप्रभ करने वाला
सोमवार की मनहूस सुबह को जब यह पता चला कि शिबू सोरेन नहीं रहे तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। अचानक एक जननायक का चला जाना सबको हतप्रभ कर गया। 81 वर्षीय शिबू सोरेन के निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर दौड़ पड़ी। लोग अपने प्यारे ‘गुरुजी’ की दुखद खबर सुनकर व्यग्र हो गए।
सिर्फ एक नेता नहीं, एक आंदोलनकारी थे शिबू सोरेन
दरअसल, शिबू सोरेन सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी थे, जिन्होंने आदिवासी समाज के हक और सम्मान के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष किया। बचपन से ही उन्होंने देखा कि कैसे आदिवासी समाज के लोगों का शोषण होता है। इसी अन्याय के खिलाफ उन्होंने साठ के दशक से आवाज उठानी शुरू कर दी थी।
1970 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
वर्ष 1970 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की। उनका मुख्य मकसद अलग झारखंड राज्य बनवाना था। इसके लिए उन्होंने जल, जंगल और जमीन के हक में आंदोलन शुरू किया। 1980 में शिबू सोरेन पहली बार सांसद बने। उन्होंने संसद में भी आदिवासी समाज की समस्याओं को जोरदार ढंग से उठाया।
आखिरकार शिबू सोरेन की मुराद पूरी हुई और साल 2000 में झारखंड को बिहार से अलग करके एक नया राज्य बना दिया गया। यह नया राज्य 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया। शिबू सोरेन ने जल, जंगल और जमीन से आमजन को जोड़कर आदिवासी समाज की अस्मिता को पहचान दिलाई।
शिबू सोरेन के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए
राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद झारखंड में बड़े राजनेता की अघोषित पदवी हासिल करने वाले शिबू सोरेन के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। भ्रष्टाचार और हत्या जैसे गंभीर आरोप भी लगे, हालांकि कई मामलों में वे अदालत से बरी भी हो गए। बावजूद इसके वे झारखंड की राजनीति में एक मजबूत जननेता के रूप में पहचाने गए।
स्नेहपूर्वक ‘गुरुजी’ कहते थे लोग
शिबू सोरेन को लोग स्नेहपूर्वक ‘गुरुजी’ कहते थे। नए राज्य के गठन के बाद उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला। हालांकि गठबंधन राजनीति और अस्थिर समीकरणों के कारण वे लंबे समय तक पद पर नहीं रह सके। फिर भी उनकी राजनीतिक विरासत झारखंड की अस्मिता, संघर्ष और आत्मसम्मान की कहानी कहती है।
महाजनों के खिलाफ आंदोलन में निभाई अग्रणी भूमिका
दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा और शराबबंदी को लेकर ऐसा आंदोलन चलाया कि कोयलांचल, संताल और कोल्हान क्षेत्र में उसकी चर्चा होती है। बताते हैं कि महाजनों के खिलाफ आंदोलन में शिबू सोरेन ने अग्रणी भूमिका निभाई। आदिवासियों की जमीन को हथियाने वाले साहूकारों के खिलाफ शिबू सोरेन का आंदोलन चर्चाओं में रहा।
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