Poison speeches’ cannot shake the roots of the nation’s harmony:विष वमन’ देश के सद्भाव की जड़ों को नहीं हिला सकता

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पूरा देश इस समय सरकार की जिस लापरवाही व गैर जिम्मेदारी का परिणाम भुगत रहा है यह किसी से छुपा नहीं है। स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाने के बाद जिंदा लोगों की तो दुर्गति हो रही है और लाखों लोग बेमौत मर ही रहे हैं। परन्तु मरने के बाद लाशों का ऐसा निरादर व तिरस्कार भी देश के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा व सुना गया।
कहीं कूड़ा उठाने वाले वाहन में लाश ले जाई जा रही है तो कहीं साईकिल पर कोई बुजर्ग अपनी पत्नी की लाश ढोने का असफल प्रयास करता दिखाई दे रहा है। कहीं 40-50 लावारिस शव एक साथ गंगा में तैरते दिखाई दे रहे हैं तो कहीं कुत्ते इन्हीं इंसानी लाशों को नोचते नजर आ रहे हैं। देश के अनेक शव गृहों में रखी तमाम लाशों का कोई वारिस सामने नहीं आ रहा तो कहीं शव दाह गृहों में रखी अस्थियों का कोई दावेदार नहीं।
जाहिर है कोरोना महामारी के बेकाबू होने की वजह से यह हालात बद से बदतर हुए हैं। इन बदतरीन हालात में भी जहां मानवता की मशाल थामे अनेकानेक सामाजिक संगठन,संस्थाएं तथा व्यक्तिगत स्तर पर तमाम लोग फरिश्ता बनकर ऐसे संकट के समय मानव सेवा में जुटे हैं जबकि लोगों के अपने सगे संबंधी तथा अपने ही धर्म व जाति के लोग साथ छोड़ चुके हैं। वहीं कुछ मानवता के ऐसे दुश्मन भी हैं जो इस त्रासदी में भी अपने सांप्रदायिकतावादी एजेंडे को आगे बढ़ा कर अपनी राजनैतिक बिसात खेलने में व्यस्त हैं।
ऐसे लोग साम्प्रदायिक विष वमन कर भारतीय संयुक्त समाज में सिर्फ इसलिए जहर घोलना चाहते हैं ताकि उनके आका उनसे खुश होकर उनकी इस विष वमन करने जैसी ‘कारगुजारी ‘ के लिए पुरस्कृत कर सकें। आज देखा भी जा सकता है कि केंद्र से लेकर विभिन्न राज्यों में ऐसे लोगों को प्राथमिकता के आधार पर विधायक,सांसद व मंत्री बनाया जाता है जिन्हें समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोलने का हुनर बखूबी आता हो।
तेजस्वी सूर्या भारतीय जनता पार्टी के ऐसे ही एक सांसद हैं जोकि लोकसभा में बेंगलुरु दक्षिण सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संस्कारित इस सांसद को हर जगह केवल मुस्लिम विरोध या सांप्रदायिकता का जहर घोलने के अवसर की तलाश रहती है। इन्होंने कुछ समय पूर्व अरब की महिलाओं को लेकर ऐसी अभद्र बातें की थीं कि कई मुस्लिम देशों ने भारत सरकार से अपना विरोध दर्ज कराया था। जिन अरब देशों की महिलाओं को तेजस्वी जलील कर रहे थे आज उन्हीं अरब देशों से आॅक्सीजन व अनेक जीवन रक्षक उपकरण बड़ी मात्रा में भारत आ रहे हैं।
परन्तु उस समय इनके विरुद्ध किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई करना तो दूर उल्टे इन्हें बिहार व बंगाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में रखा गया। पिछले दिनों इस महामारी में भी यही ‘महारथी ‘ एक बार फिर बंगलूरू के एक अस्पताल में मुस्लिम समुदाय के लोगों को अकारण बदनाम करते सुनाई दिए। इन्होंने सार्वजनिक रूप से 17 मुस्लिम कर्मचारियों का नाम लेकर उनपर अस्पताल में बेड आवंटन करने में धांधली करने का आरोप लगाया। और जब तेजस्वी के कहने पर मामले की जांच की गयी तो इस मामले में सभी आरोपी हिन्दू निकले। एक भी आरोपी मुसलमान नहीं था। तेजस्वी को अपने झूठ व जहर उगलने वाले इस बयान पर माफी भी मांगनी पड़ी। परन्तु तेजस्वी को नफरत व सांप्रदायिकता का जो जहर घोलना था वह घोल चुके थे और अपने आकाओं को अपनी एक और ‘कारगुजारी’ का सन्देश दे चुके थे।
सवाल यह है कि क्या इस तरह के तत्व जो वक़्त बेवक़्त अपना फन उठाकर समाज में जहर फैलाते रहते हैं। यहां तक कि इस अभूतपूर्व महामारी के संकट के समय भी अपनी ओछी व जहरीली मानसिकता का परिचय देते रहते हैं क्या यह लोग हमारे देश की सांप्रदायिक सौहार्द्र की जड़ों को हिला पाने में सक्षम हैं। यह जानने के लिए इसी महामारी के दौर की तमाम घटनाएं खास तौर पर पवित्र रमजान महीने की अनेक घटनाएं ऐसी हैं जो तेजस्वी सूर्य जैसों की नाकाम कोशिशों पर पानी फेरने के लिए काफी हैं।
कोरोना महामारी के दौरान पूरे देश में एक दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसी घटनाएं हुई हैं जबकि किसी हिन्दू मृतक का अंतिम संस्कार मुसलमानों द्वारा किया गया। यहां तक कि मुस्लमान द्वारा अपने हिन्दू पड़ोसी को मुखाग्नि तक दिए जाने का समाचार मिला है। गुजरात में तो मुसलमानों द्वारा स्वयंसेवकों की एक टीम गठित की गयी जो उन हिन्दुओं का संस्कार कर रही है जिनके अपने सगे संबंधी पीछे हट गए हैं। कोरोना संकट में अब तक का सबसे बड़ा दान देने वाले अजीम प्रेम जी हैं। तमाम मस्जिदों, गुरद्वारों व दरगाहों को कोरोना मरीजों के भर्ती केंद्र के रूप में उपलब्ध कराया गया है। तमाम मुसलमान अपना रोजा छोड़कर रक्तदान व प्लाज्मा दान कर रहे हैं।
अनेक गुरद्वारे आॅक्सीजन का लंगर चला रहे हैं। गोया जिससे जो हो सकता है वह कर रहा है केवल इसलिए ताकि मानवता को जिंदा रखा जा सके। ऐसे लोग आपदा में सेवा का अवसर तलाश रहे हैं न कि अपने व्यक्तिगत राजनैतिक लाभ  लिए आपदा को विपदा में बदलने की कोशिश करें?
हमारे देश के सांप्रदायिक सद्भाव को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करने वाली एक घटना पिछले दिनों महाराष्ट्र के येरवडा में घटी। यहां की 72 वर्षीय हिन्दू महिला छगन बाई अहवाल कोरोना पीड़ित थीं। उन्होंने अपनी बेटी लक्ष्मी से वसीयत की कि यदि उनका देहांत रमजान के पवित्र महीने में हो जाए तो उनकी लाश का दाह संस्कार करने के बजाए किसी कब्रिस्तान में दफ़्न किया जाए। उनकी इच्छानुसार अस्पताल के सभी हिन्दू कर्मचारियों व रिश्तेदारों ने बेटी लक्ष्मी की बात मानते हुए छगन बाई अहवाल को मुस्लिम रीतियों के अनुसार येरवडा के इंद्रानगर कब्रिस्तान में दफ़्न किया। स्थानीय मुसलमानों ने भी छगन बाई की अंतिम इच्छा पूरा करने में पूर्ण सहयोग किया।
‘विष वमन’ करने वाले नेताओं को सोचना चाहिए कि यह वह देश है जहाँ मुस्लिम गणेश चतुर्थी से लेकर गरबा तक और रामलीला व दशहरा से लेकर दीपावली मानाने तक हर जगह नजर आते हैं उसी तरह तमाम हिन्दू रोजा रखने से लेकर मुहर्रम मानाने तक सभी जगह दिखाई देते हैं।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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