The real India groans due to the pandemic! महामारी की मार से कराहता असली भारत!

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Corona
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हिंदी हृदय प्रदेश का असली भारत घोर संकट के दौर से गुजर रहा है। सूबे के शहरों में सरकारी आंकड़े कोरोना के क्रमश: क्षीण होने का दावा कर रहे हैं तो ग्रामीण उत्तर प्रदेश के जिले जिले से कराह और करुण क्रंदन की खबरें हैं।
जौनपुर के पिलकिछा गांव में एक ही दिन दो दर्जन से ज्यादा लाशें जलीं तब सरकार को  कोरोना जांच और सैनिटाइजेशन का ध्यान आया।
इसी बीच यमुना और गंगा नदियों में उतराती लाशों और उन्नाव में घाट किनारे दर्जनों लाशों के दफनाने की तस्वीरों  ने योगी आदित्यनाथ सरकार को फिर याद दिलाया कि कराहते गांवों पर ध्यान दीजिए जहां पंचायत चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर कोरोना ने हमारे निर्दोष अन्नदाताओं पर कहर ढाना शुरू कर दिया है। गुरुवार की शाम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी गंगा में तैरती लाशों को लेकर यूपी और बिहार की सरकार से जवाब तलब किया है।  
पहली बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी करीब इसी वक्त गांवों से  गंगा किनारे ले जाई जा रही लाशों को लेकर अफसरों को हिदायत की बात कही है। योगी ने कहा कि सभी जिलों के अफसरों को नदियों के किनारे मॉनिटरिंग करने का आदेश दिया है। अफसर खुद देखें की कोई शव नदी में न प्रवाहित किया जाए और न ही घाट किनारे दफन हो। इसके लिए हर जिले में नदी किनारे टीमें तैनात की जाएंगी। उन्होंने कहा है कि हम नदियों में जानवरों तक को नहीं फेंकते हैं, इससे जल प्रदूषण फैलता है। इसलिए हमें सख्ती से शवों का जल प्रवाह भी रोकना होगा। वास्तव में पूर्वी यूपी और बिहार में गंगा नदी में संदिग्ध कोविड मरीजों के शवों को तैरते हुए देखे जाने के चार दिन बाद अब उन्नाव से खौफनाक तस्वीर सामने आई। यहां गंगा नदी के किनारे दो स्थानों पर तमाम लाशें  रेत में दफन कर दी गई हैं।  
संयोग की बात है कि ज्यादातरअधिकांश केसरिया कपड़े में लिपटे हुए थे,  हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं हुई कि सभी लाशें कोविड मरीजों की ही हैं। उन्नाव के जिलाधिकारी रवींद्र कुमार कहते हैं कि कुछ लोग शव नहीं जलाते बल्कि नदी के पास रेत में दफन कर देते हैं। जानकारी मिलने के बाद अधिकारियों को घटनास्थल पर भेजा गया दिया है।  उनसे जांच के बाद कार्रवाई करने को कहा है। गांवों में कोरोना की खौफनाक तस्वीर का अंदाजा गोंडा से आए कल के आंकड़ों से लगाया जा सकता है!
यहां शहर के मुकाबले गांवों में में संक्रमण की रफ्तार सात गुना यानि कुल 119 मरीजों में 14 शहर और 105 गांवों के थे। चार मौतें हुईं, वह भी गावों से। पूर्वांचल के ग्रामीण इलाकों के बदतर हालात का अंदाजा इसी बात से लगाइए कि मुख्यमंत्री के जिले गोरखपुर के नेवास गांव मे  पंचायत चुनाव के बाद से 14 लोगो की मौत हो चुकी है। मीडिया में खबर आई तो 90 लोगो की टेस्टिंग हुई जबकि गांव की आबादी है 5 हजार। अधिकांश लोग बुखार, खांसी, सांस फूलने की शिकायत कर रहे हैं। इसे पंचायत चुनाव का असर कहें, लापरवाही या वायरस की गति ,  कोरोना अब शहरों से निकल कर गांवों में पैर पसार चुका है। शहरों में ही कोरोना जांच की हालात इतनी खस्ता है तो गांवों का कोई पुरसाहाल तक नहीं।
प्रदेश के तमाम गांवों से मौतों की खबर आ रही है पर लोगों को पता भी नहीं कि कारण क्या है। प्रदेश के गांवों में हालांकि सरकार ने जांच की कार्यवाही शुरू करने का दावा किया है पर जमीन पर यह होता नजर नहीं आ रहा है। गांवों में जांच के नाम पर महज कुछ खानापूरी ही नजर आ रही है और कोविड के लक्षण मिलने पर दवा पहुंचाना तो दूर की बात है। उत्तर प्रदेश के गांवों से जो ग्राउंड रिपोर्ट मिल रही है उसके मुताबिक हर दूसरे घर में 3-4 लोगों में कोरोना के लक्षण मिल रहे हैं पर या तो लोग टेस्ट कराना नहीं चाहते हैं या हो नहीं रहा है। स्थिति यहां तक बिगड़ चुकी है कि कोरोना के इलाज में प्रयोग होने वाली सामान्य सर्दी जुकाम बुखार तक की दवाएं भी मिलना मुश्कल हो गया है।
हालात हर दिन खराब हो रहे हैं और गांव-गांव अर्थी उठ रही हैं। रात में सोए, सुबह मरे मिल रहे हैं। गांव-गांव बुखार है। सर्दी, खांसी, जुकाम है। आज दिनभर ग्रामीण क्षेत्रों से भयावह खबरें आ रही हैं। कोविड रैपर में लिपटी लाशें यमुना नदी में हमीरपुर में मिलीं। एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी जिले के 8 ब्लॉक के 22 गांवों में पिछले एक महीने के दौरान 70 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। मरने वालों में कोरोना के लक्षण थे, लेकिन किसी का टेस्ट नहीं हुआ था। यहां मेडिकल स्टोर संचालकों का कहना है कि इन दिनों सामान्य बुखार की दवाइयां भी मिलना मुश्किल हो गया है। कोरोना के लक्षण दिखने पर लोगों को टेस्ट कराने की सलाह देते हैं, लेकिन लोग मना कर देते हैं।
किसी तरह उन्हें सप्लीमेंट्री दवाइयां दी जा रही हैं, जिससे वे ठीक हो सकें। जौनपुर के इमिलिया श्मशान घाट पर एक दिन में इतने शव अंतिम संस्कार के लिए आ रहे हैं जितना औसतन एक महीने में आते थे। यही दशा सुल्तानपुर से लेकर सहारनपुर तक है। इसी तरह यूपी के गाजीपुर जिले में एक महीने के अंदर 20 गांवों में 59 से ज्यादा मौतें दर्ज की गयी हैं। पूर्वांचल का ये जिला काफी महत्वपूर्ण है। बनारस से सटे होने के चलते जिले में पिछले एक महीने के अंदर कोरोना के मामलों में 200 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। यहां अब तक 17 हजार 950 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 3,389 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 14 हजार 415 लोग ठीक हो चुके हैं।
संक्रमण के चलते अब तक 146 लोगों की मौत हो चुकी है। कुछ इसी तरह का हाल बनारस से सटे आजमगढ़ जिले का है जहां के  30 गांवों में हर घंटे 2 से 3 लोगों की मौत हो रही है। खुद स्वास्थ्य महकें के अधिकारियों का कहना है कि इस जिले में हर घंटे 2 से 3 लोगों की मौत हो रही है। मरने वाले 98 फीसदी लोग बुखार, स्वाद का न आना, सांस लेने में समस्या झेल रहे थे। पड़ोसी मऊ जिले के 10 गांवों में कोरोना के 3 हजार से ज्यादा संदिग्ध पाए गए हैं। जिले में अब तक सरकारी आंकड़े के अनुसार 7,154 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जा चुके हैं। इनमें 45 की मौत हुई है।
अब हकीकत देखें तो यहां के 28 गांवों में हालात बेहद खराब हैं। मुहम्मदाबाद गोहना, घोसी और मधुबन के गांवों में 3000 से ज्यादा लोग कोरोना के संदिग्ध हैं। अब तक इन गांवों में 15 दिन के अंदर 34 से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है। इन मौतों के ठीक उलट प्रदेश सरकार का कहना है कि कोरोना की जांच के लिए टीम ग्रामीण इलाकों में घर-घर जा रही हैं। अब तक 48 लाख 63 हजार 298 लोगों केब घर टीम पहुंच चुकी है। इनमें 68 हजार 1 सौ 9 लोगों में कोरोना के मामूली लक्षण पाए गए।
उत्तर प्रदेश में जबरदस्त कोरोना प्रसार के बीच चार चरणों में संपन्न हुए पंचायत चुनाव प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों के लिए जानलेवा साबित हुए हैं। प्रदेश भर में पंचायत चुनाव कराने की अहम जिम्मेदारी इन्ही प्राथमिक शिक्षकों को सौंपी गयी थी। प्राथमिक शिक्षकों के संघ के मुताबिक इस पूरी कवायद में 700 से ज्यादा शिक्षकों की जान कोरोना से चली गयी है। शिक्षक संघ ने बाकायदा उन 700 से ज्यादा मृत शिक्षकों की सूची जारी कर सरकार से जवाब मांगा है कि कोरोना की जबरदस्त लहर के बीच आखिर क्यों चुनाव कराए गए। यूपी में पंचायत चुनाव उस समय कराए गए हैं जब कोरोना का प्रसार अपने चरम पर है। चुनाव ड्यूटी के प्रशिक्षण से लेकर मतदान तक संक्रमण को रोकने के कोई उपाय नही किए गए।
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अघ्यक्ष हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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