Parashurama is a Brahmin by birth, a warrior by action: परशुराम जन्म से ब्राह्मण, कर्म से योद्धा

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हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म त्रेता युग में भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में भार्गव वंश में सप्तऋषि में से एक ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के यहां हुआ था।
मान्यता है कि परशुराम के जन्म के पूर्व रेणुका तीर्थ पर जमदग्नि और रेणुका ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि स्वयं भगवान विष्णु रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेंगे। जमदग्नि के पांच पुत्र थे रुमण्वान, सुषेण, वसु, विश्वावसु और राम। पांचों में राम ही सबसे कुशल, निपुण योद्धा और सभी प्रकार से युद्धकला में दक्ष थे। हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है, जो इस वर्ष 14 मई को है। इस तिथि को ‘अक्षय तृतीया’ भी कहा जाता है और मान्यता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य अक्षय रहता है। चूंकि भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, इसीलिए उनकी शक्ति भी अक्षय थी।
मर्यादा पुरूषोत्तम राम भी भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं और परशुराम भी विष्णु के अवतार हैं, इसीलिए परशुराम को भगवान विष्णु और भगवान राम दोनों के समान शक्तिशाली माना गया है। विभिन्न धार्मिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में पृथ्वी पर राजाओं द्वारा किए जा रहे अन्याय, अधर्म, पाप और जुल्म का विनाश करने के लिए विष्णु ने ही भगवान परशुराम के रूप में अवतार लिया था। इनके जन्म का नाम ‘राम’ था लेकिन इनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें पापियों और मदांध असुरों का संहार करने के लिए अनेक अद्वितीय अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए थे, जिसमें परशु (फरसा) भी शामिल था। राम को यह परशु बहुत प्रिय था, जिसे वह सदैव अपने साथ रखते थे और उस परशु को धारण करने के कारण ही वह परशुराम कहलाए।
‘परशुराम’ शब्द दो शब्दों परशु अर्थात फरसा या कुल्हाड़ी तथा राम से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है फरसे के साथ राम। भगवान शिव द्वारा प्रदान किया गया ह्यविजयाह्ण उनका प्रिय धनुष कमान था। भगवान परशुराम को भगवान शिव और विष्णु का संयुक्त अवतार माना जाता है और मान्यता है कि उन्होंने भगवान विष्णु से पालनहार के गुण और दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान शिव से युद्ध कला में निपुणता हासिल की।
बगैर किसी अस्त्र के ही उन्होंने बहुत सारे असुरों का नाश किया। माना जाता है कि भारत के अधिकांश गांव भगवान परशुराम द्वारा ही बसाए गए थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वीरता के साक्षात उदाहरण माने जाने वाले परशुराम ने तीर चलाकर गुजरात से केरल तक समुद्र को पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया, जिस कारण वे भार्गव नाम से भी जाने गए।
परशुराम और भार्गव के अलावा उन्हें रामभद्र, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। भगवान परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं, इसलिए उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है। हिन्दू पुराणों के अनुसार परशुराम को कलियुग में ऋषि के रूप में पूजा जाता है और उन्हें आंठवें मानवतारा के रूप में सप्तऋषि के रूप में गिना जाता है।
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि परशुराम त्रेता युग और द्वापर युग से लेकर कलियुग के अंत तक अमर हैं। उड़ीसा में महेन्द्रगिरी के महेन्द्र पर्वत पर तो आज भी परशुराम की उपस्थिति मानी जाती है। उनकी गिनती महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, मार्कन्डेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है, जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है।
त्रेता युग के दौरान रामायण में और द्वापर युग के दौरान महाभारत में उनकी अहम भूमिका रही है। रामायण में सीता के स्वयंवर के दौरान भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर परशुराम बेहद क्रोधित हुए थे। कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरू होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार पृथ्वी पर भगवान विष्णु का अंतिम अवतार कल्कि अवतार होगा और उसी के साथ कलियुग की समाप्ति होगी।
रामायण, महाभारत, भागवत पुराण, कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रंथों में भगवान परशुराम का उल्लेख है। भीष्म, गुरू द्रोणाचार्य, कर्ण परशुराम के जाने-माने शिष्य थे। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में उन्होंने 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया। उनकी दानशीलता ऐसी थी कि एक बार उन्होंने समस्त पृथ्वी ही ऋषि कश्यप को दान कर दी थी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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