आर्य कॉलेज में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में क्रांतिकारियों की भूमिका पर पुनर्विचार विषय पर हुआ राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन

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Panipat News/National Conference organized at Arya College
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  • आज की इस डिजिटल दुनिया में पुस्तकों का महत्व कम होता जा रहा है : इरफान हबीब
आज समाज डिजिटल, पानीपत :
पानीपत। बुधवार को आर्य कॉलेज के इतिहास विभाग व हरियाणा उच्चतर शिक्षा निदेशालय के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में क्रांतिकारियों की भूमिका पर पुनर्विचार विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करवाया गया। सम्मेलन में मुख्य वक्ताओं के तौर पर एआरएसडी कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अजीत कुमार, मौलाना नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सांइस टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट स्टडीज दिल्ली से प्रो. एस. इरफान हबीब, आईटीएम विश्वविद्यालय ग्वालियर से प्रो. आलोक वाजपेयी, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से प्रो. जयवीर सिंह धनखड़ व पानीपत के आईबी कॉलेज के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रामेश्वर दास ने शिरकत की। कॉलेज प्राचार्य डॉ. जगदीश गुप्ता ने सभी वक्ताओं का कॉलेज प्रांगण में पहुंचने पर पुष्पगुच्छ देकर स्वागत कर अभिनंदन किया व साथ ही इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विजय सिंह व अश्वनी को सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए बधाई दी।

पुस्तकालय जाकर इतिहास की पुस्तकें पढ़नी चाहिए

कॉलेज प्राचार्य डॉ. जगदीश गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की आजादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोए क्रांतिकारियों और शहीदों की उपस्थिति सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। उन्होंने कहा की विद्यार्थियों को अपने इतिहास के बारे में और अधिक जानने के लिए इंटरनेट की बजाए कॉलेज में बने पुस्तकालय जाकर इतिहास की पुस्तकें पढ़नी चाहिए। क्योंकि कई इंटरनेट पर दी गई जानकारी सही नहीं मिलती।

 

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डिजिटल दुनिया में पुस्तकों का महत्व कम हुआ

सुबह के सत्र में मुख्य वक्ता रहे प्रो. एस इरफान हबीब ने अपने संबोधन में बताया कि वो बीते 40 वर्षा से भगत सिंह के विषय से जुडे रहे हैं। भगत सिंह एक क्रांतिकारी, शहीद और राष्ट्रवादी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। लेकिन हम भगत सिंह को हररोज मारते हैं, क्योंकि हम उनके विचारो को नहीं मानते। भगत सिंह अपनी जेब चार-चार किताबें रखकर चलते थे जिससे ये पता चलता है की उनके विचारों में किताबों की कितनी अहमियत है। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा कि आज के इस डिजिटल दुनिया में पुस्तकों का महत्व कम होता जा रहा है।

विद्यार्थी जीवन में टाइम मैनेजमेंट का सबसे बड़ा महत्व

प्रो. अजीत कुमार अपने वक्तव्य में बताया कि विद्यार्थी जीवन में टाइम मैनेजमेंट का सबसे बड़ा महत्व है। कोई भी व्यक्ति टाइम मैनेजमेंट के बिना सफलता हासिल नहीं कर सकता। भारतीय इतिहास में सभी क्रांतिकारी वक्त के पाबंद थे। प्रो. आलोक वाजपेयी अपने वक्तव्य में कहा कि अगर दुनिया में कहीं भी समुदाय पर लडाई लडी गई है तो वे गांधी के चरणों सीखने आए हैं। जो काम महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई के लिए पूरे देश को लामबंद कर दिया, उन्हें समझना आसान नहीं है, उसे समझने के लिए हमें एक खोजी प्रवृति के साथ गांधी को समझने की कोशिश करनी होगी।

 

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इतिहास को समग्रता और व्यापकता से समझने की जरूरत

समापन समारोह में मुख्य वक्ता रहे प्रो. जयवीर सिंह धनखड़ ने कहा कि हमें क्रांतिकारियों को उनकी परिभाषाओं के जरिए समझने की जरूरत है। दुनिया को दो तरीके से बदला जा सकता है एक वैज्ञानिक दूसरा आध्यात्मिक। वर्तमान के दौर में जितने आंदोलनकारी हैं, उन्हें जाति, धर्म और वर्ग में विभाजित करके देखा जा रहा है। जिससे उन आंदोलनकारियों के विचारों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। प्रो. रामेश्वर दास ने बताया कि जो गांधीवादी आंदोलन को समझेगा वही क्रांतिकारी विचारों को समझ सकता है। उन्होंने कहा कि हमें अपने इतिहास को समग्रता और व्यापकता से समझने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आंदोलन अपने अनुभवों से सीखता है और अपनी परिपक्वता की तरफ बढ़ता है। मंच संचालन हिंदी विभाग के प्रो. विजय सिंह ने किया। सम्मेलन में डॉ. अनुराधा सिंह, डॉ. मीनल तालस, प्रो. अंकुर मित्तल, राजेश टूर्ण, डॉ. अकरम, प्राध्यापक अमित, प्राध्यापिका अंजू शर्मा, श्रुति अग्रवाल सहित अन्य सभी मौजूद रहे।

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