Navratri Special: साल में 2 नहीं बल्कि 4 बार मनाया जाता है नवरात्र का त्योहार

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Navratri Special: साल में 2 नहीं बल्कि 4 बार मनाया जाता है नवरात्र का त्योहार
Navratri Special: साल में 2 नहीं बल्कि 4 बार मनाया जाता है नवरात्र का त्योहार

व्रत करने से मिलते हैं सभी सुख
Navratri Special, (आज समाज), नई दिल्ली: धार्मिक मान्यता के अनुसार शारदीय नवरात्र में धरती पर मां दुर्गा का आगमन होता है। इस शुभ अवधि के दौरान मां दुर्गा के 9 के रूपों की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही विधिपूर्वक व्रत भी किया जाता है। इससे साधक को जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवी की उपासना और व्रत करने से जीवन में सभी सुख मिलते हैं। साथ ही सभी दुखों का नाश होता है। क्या आप जानते हैं कि साल में नवरात्र कितनी बार मनाए जाते हैं। अगर नहीं पता, तो आइए इस आर्टिकल में बताते हैं इसके बारे में विस्तार से।

रात्रि ही क्यों?

नव शब्द से नई या विशेष रात्रियों का बोध होता है और रात्रि शब्द को सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसा बताया जाता है कि प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों ने रात को दिन से अधिक महत्व दिया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दीवाली, शिवरात्रि, होलिका दहन और नवरात्र समेत कई त्योहारों के दौरान रात के समय में पूजा-अर्चना करने का विधान है।

चैत्र व आश्विन माह के अलावा आषाढ़ और माघ महीने में भी मनाया जाता है नवरात्र का पर्व

साल में 2 नहीं बल्कि चार बार नवरात्र का पर्व मनाया जाता है। चैत्र व आश्विन माह के अलावा आषाढ़ और माघ महीने में गुप्त नवरात्र मनाए जाते हैं। सनातन धर्म में चैत्र और शारदीय नवरात्र को बेहद उत्साह के मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के मंदिरों को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जाता है।

गुप्त नवरात्र में की जाती है तांत्रिक साधनाएं

इस अवधि में मंदिरों में खास रौनक देखने को मिलती है। आषाढ़ और माघ के गुप्त नवरात्र में तांत्रिक साधनाएं की जाती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र शक्ति की साधना के लिए होते हैं।

मां दुर्गा के इन मंत्रों का करें जाप

1. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

2. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।